Thursday 25 December 2014

नाजिम हिकमत की अन्तिम कविता

(चित्र : अपनी पत्नी पिराये के साथ एक भावपूर्ण मुद्रा में नाज़िम हिकमत )
क्या मेरे शव को ले जाया जायेगा नीचे अपने आँगन से ?
तुम कैसे उतारोगे मेरे ताबूत को तीन मंजिल नीचे ?
लिफ्ट में वह समाएगा नहीं
और सीढियां बहुत संकरी हैं
आँगन में होगी थोडी सी धूप
और होंगे कबूतर और बच्चों की चील-पों
फर्श हो सकता है चमकता हो बारिश में
और कूड़े-दान पड़े हों इधर-उधर बिखरे
अगर यहाँ की रीतियों के अनुसार मैं यहाँ से गया
चेहरा आसमान की ओर खुला हुआ
कोई कबूतर मुझ पर बीट कर सकता है
जो कि एक शगुन है
बैंड-बाजा यहाँ पहुंचे न पहुंचे
बच्चे ज़रूर आयेगे मेरे पास, मेरे निकट
बच्चों को पसंद हैं शव-यात्राएं
जब निकलेगा मेरा शव
तो किचन की खिड़की मुझे ताकती होगी
बालकनी में सूखते कपड़े
हिलते हुए करेंगे मुझे बिदा
मैं यहाँ खुश था
कल्पनातीत खुशी थी मेरे पास
मित्रो ! तुम सब जियो लम्बी उम्र
और जीवन पर्यन्त रहो सुखी.

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