Monday 10 November 2014

मैं इन रस्तों का मतवाला राही हूं/जयप्रकाश त्रिपाठी

खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं,
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं।

मैं समस्त सुबहों-शामों में शामिल हूं, मैं जन-मन के संग्रामों में शामिल हूं
मैं तरु की पत्ती-पत्ती पर चहक रहा, मैं रोटी की लौ में निश-दिन लहक रहा
मैं जन के रंग में, मन की रंगोली में, मैं बच्चे-बच्चे की मीठी बोली में
आंखों के ये तारे रस्ते मेरे हैं, खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं,
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं......

इतने सृजन किये हैं जिनके हाथों ने, इतने सुमन दिये हैं जिनके हाथों ने
इतना ताप पिया है जिनके जीवन ने, अपने आप जिया है जिनके जीवन ने
जिनके आजू-बाजू पर्वत चलते हैं, जिनकी चालों पर भूचाल मचलते हैं
इनके प्यारे-प्यारे रस्ते मेरे हैं, खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं,
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं.......

मैं इन रस्तों का मतवाला राही हूं, इन रस्तों का हिम्मत वाला राही हूं
युगों-युगों से थिरक रहा हूं यहां-वहां, इन रस्तों के राहीजन हैं जहां-जहां,
मैं हूं इनके शब्द-शब्द में महक रहा, मैं इनकी मशाल में कब से धधक रहा
ये सारे उजियारे रस्ते मेरे हैं, खुशियों के ये सारे रस्ते मेरे हैं,
जग के सब दुखियारे रस्ते मेरे हैं.........

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