Monday 13 October 2014

नरेश सक्सेना

बह रहे पसीने में जो पानी है वह सूख जाएगा
लेकिन उसमें कुछ नमक भी है जो बच रहेगा
टपक रहे ख़ून में जो पानी है वह सूख जाएगा
लेकिन उसमें कुछ लोहा भी है जो बच रहेगा
एक दिन नमक और लोहे की कमी का शिकार
तुम पाओगे ख़ुद को और ढेर सारा ख़रीद भी लाओगे
लेकिन तब पाओगे कि अरे हमें तो अब पानी भी रास नहीं आता
तब याद आएगा वह पानी जो देखते-देखते नमक और लोहे का साथ छोड़ गया था
दुनिया के नमक और लोहे में हमारा भी हिस्सा है
तो फिर दुनिया भर में बहते हुए ख़ून और पसीने में हमारा भी हिस्सा होना चाहिए।

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