Wednesday 8 October 2014

जयप्रकाश त्रिपाठी

जीवन असली, 
नकली जीवन, 
नकली बातें, 
जैसे अपनी आंख मूंद कर 
खुद से भाग रहे हों 
ऊबड़-खाबड़, 
कभी इधर की, 
कभी उधर की 
पगडंडी पर 
एक-अकेले, 
जोड़-जुटाकर 
रिश्ते-नाते....
गुनगुनाते हुए
कि अपने लिए
जिये तो क्या जिये...!

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