Tuesday 16 September 2014

यह कविता हमारे पीले फफोलों का कर्सद-गीत है / महाभूत चन्दन राय

हम जादूगोड़िया आदिवासी हैं, जादूगोड़ा की जादुई मिट्टी के जादूगर
अपने ही देश में जलावतनी, हम जल रहे हैं रोटी-रोजगार-यूरेनियम में !
तुम्हारा राष्ट्रवाद यूरेनियम खनन का पेटू है
और हम यूरेनियम से परिगलित दहकते वनफूल
जहाँ तुम्हारे बहरुपिए कर्तव्यों का गन्दा ख़ून हमारी आत्माओं का रोज़ विघटन करता है
तुम्हारा घिनौना रेडियो-एक्टिव पाप हमारी बेटियों में रोप रहा है पीले ढढढ़े
तुम्हारे यूरेनियम ने 'मरू-बांझ' बना दी हमारी बहुओं की कोख
चबा लिया हमारा बचपन !
स्वतंत्रता-समानता-न्याय का तुम्हारा ढोंग, तुम्हारी दरिद्र सभ्यता का परिचायक
अरण्य-हत्यारो ! नीतियों के नकदी-कुमारो !
तुम्हारा ’आदिवासी’ अपहरणकर्ता राष्ट्रवाद
बनाना चाहता है हमें अपना ’ओनरशिप बण्डल’
तुमने हमारा कोयला लूटा, तुम्हारी जीडीपी हमारा बाक्साईट निगल गई
तुम्हारी औपनिवेशिक भूख गटक कर गई हमारा अभ्रक
रोज़ अपने जंगलों में किलसते-तड़पते हम आदि-ग्रामीण
’वन-मरघट में पड़ा मृत-भारत है।’
तुमने छीन ली हमारे प्राण-प्यारे जंगलों के अधरों की मुस्कराहट
आदि-ग्रामों को बना दिया कंकालगढ़, तुम्हारी भूख ने हमारे पर्वत खा डाले,
रक्त-पिपासु नीतियां पी गई मां सी दिल-अजीज हमारी नदियां !
आह रे ! ताजा महकता बेंग साग, हाय ! करहाते पलाश के फूल
पाला था जिसे अपनी छातियों से लगा के, आह ! तुमने हमारे जीवन के रंग भी हर लिए
महुए की दर्द से बिलखती आवाज़ पर कौन सा मृत्यु-गीत गाएं हम
साल, जो था हमारी प्राण-वायु, उसके प्राण भी हर लिए
आदिवासियत से खुख्खल इंसानियत के कंगालों
हमारे जंगल ख़ाली करो, जंगल हमारी आत्मा है
और हम अपनी आत्मा का सौदा नहीं करते !
तुमने हमारी ज़मीनें छीनी, जंगल लूटे, हमारी छीपियों से छीन लिए हमारे निवाले
क्योंकि हमारे पास भूख थी, हमारे पास मां थी, हमें हर हाल में बचाना था अपनी मां को
हमने आवाज़ उठाई, हम चीख़े बेतहाशा अपने कण्ठ फाड़कर
हमने मरघटों को अपना विद्या-पीठ बनाया
और तुमने बना दिया हमारे बच्चों की विद्यापीठ को भी मरघट,
अन्धी राष्ट्र-प्रतिबद्धता के काणे आकाओं
तुम क्या पढ़ोगे हमारी देह पर उगा पीला फफोलापन
आओ हमारी आदि संस्कृति के दलालो !
आओ अपने व्यापारिक कैमरों के साथ आओ
हमारी संस्कृति का पोर्निकरण करो, नंगे जिस्मों को दुहो
एक सुपरहिट धरावाहिक बनाओ और बेचो
अपने बाज़ारों में करो हमारे दुखों को भूगोलिकरण, पढ़ो पूंजीवादी पहाड़े
यह कविता हमारे पीले फफोलों का कर्सद-गीत है,
यह कविता मुखाग्नि है, तुम्हारी पार्थिव कर्तव्य-निष्ठा का श्राद्ध-कर्म है
तुम्हारी डर्टी पालिटिक्स के आइसोटोपिक चेहरे पर यह कविता एक त्यागपत्र है
तुम्हारी समूची कल्ट मानवाधिकारों की बाज़ारू सूची से
यह कविता हमारे इनकार का दिनांकन है....।

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