Sunday 24 August 2014

'बेरोजगार की आखिरी रात'

'बेरोजगार की आखिरी रात' पुस्तक का जुलाई माह में अमेरिका के प्रतिष्ठित आथर हाउस में प्रकाशन हुआ है। यह किताब ई-बुक के रूप में अमेजॉन.इन पर उपलब्ध है। इसके लेखक दविंद्र सिंह गुलेरिया लगभग आठ साल तक अमर उजाला में रहे हैं। उन्होंने दिसंबर 2013 में चंडीगढ़ से अमर उजाला से इस्तीफा दिया था। उस समय वह पंजाब संस्करण के प्रभारी थे। कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के रहने वाले गुलेरिया सात साल से अधिक समय तक अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी रहे। करीब दो माह तक वह हिमाचल अमर उजाला के संपादकीय विभाग के प्रभारी भी रहे। चूंकि वह ईमानदार आदमी हैं, चापलूसी न तो करते हैं और न ही करवाते हैं, बस काम से मतलब रखते हैं। उदय कुमार ने उनको अमर उजाला में बहुत परेशान किया।
उदय कुमार द्वारा गलत तबादले करने के कारण शिमला डेस्क पर चार पद एक साल से अधिक समय तक खाली रहे थे। गुलेरिया शिमला में अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी थे तो उन्होंने कई बार खाली पदों को लेकर अवगत करवाया, पर पद नहीं भरे गए। हर दिन तीन या चार एडिशन बिना सब एडिटर के होते थे। गुलेरिया ने जैसे-तैसे एक साल से अधिक समय तक काम चलाया। उन्होंने साल में लगभग 25 साप्ताहिक अवकाश लगाए, जिसका उन्हें कुछ नहीं मिला। इसका इनाम उन्हें
अप्रैल 2013 में चंडीगढ़ ट्रांसफर के रूप में मिला था। गुलेरिया की जगह उदय कुमार ने शिमला में अपना आदमी बैठाया था। साथ में डेस्क पर खाली पड़े सारे पद एकदम से भर दिए थे ताकि उनका आदमी डेस्क पर फेल न हो जाए।
जो काम गुलेरिया अकेले देखते थे, उसको देखने के लिए दो आदमी लगा दिए थे। पर फिर भी वे काम ढंग से नहीं कर पाते थे। यहां तक कि डेस्क के लोग भी इससे बहुत दुखी थे। उदय कुमार की इस टुच्ची राजनीति के कारण गुलेरिया ने अमर उजाला छोड़कर हमीरपुर से प्रकाशित हो रहे डीएनएस ज्वाइन कर लिया था। दविंद्र सिंह गुलेरिया छात्र समय से ही लिखते रहे हैं। उन्होंने पहली किताब 17 साल की आयु में लिखी थी। इसे प्रकाशित करने के लिए हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी शिमला ने अप्रैल, 1995 में दो हजार रुपए स्वीकृत किए थे। गुलेरिया को आज भी इस बात की टीस है कि उनके साथ इस तरह से अन्याय किया गया। पर उन्हें खुशी है कि अमेरिका के प्रकाशन हाउस ने उनकी किताब छापकर विरोधियों को इसका करारा जवाब दिया है। (भड़ास4मीडिया से साभार)

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