Friday 24 January 2014

सोच रहा हूँ
सोचना बंद कर दूँ
और सुखी रहूँ !
-रामकुमार कृषक

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‘क‘ से काम कर, ‘ख‘ से खा मत, ‘ग‘ से गीत सुना
‘घ‘ से घर की बात न करना, ङ खाली।
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !
‘च‘ को सौंप चटाई, ‘छ‘ ने छल छाया
‘ज‘ जंगल ने ‘झ‘ का झण्डा फहराया
झगड़े ने ञ बीचोबीच दबा डाली,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली!
‘ट‘ टूटे, ‘ठ‘ ठिटके, यूँ ‘ड‘ डरा गया
‘ढ‘ की ढपली हम, जो आया बजा गया।
आगे कभी न आई ‘ण‘ पीछे वाली,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली!
-रामकुमार कृषक

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हम नहीं खाते, हमें बाज़ार खाता है
आजकल अपना यही चीज़ों से नाता है।
है ख़रीददारी हमारी सब उधारी पर
बेचनेवाला हमें बिकना सिखाता है।
-रामकुमार कृषक

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मोदी मोदी मच रहा, भारत भर में शोर
मोदी के संग हो लिए ठग, ठाकुर औ चोर।
- सांड़ बनारसी

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'दिल के दरिया में उतरा था पहली दफा
ना तो कश्ती मिली, ना किनारा मिला।
- डा.ईश्वरचंद त्रिपाठी

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