Tuesday 9 July 2013

जिब्रान के जीवन महिलाएं में


बलराम अग्रवाल

जिब्रान के जीवनीकार इस बात पर एकमत हैं कि उनके जीवन में अनेक महिलाएँ आईं। उनका नाम अपनी उम्र से अधिक की अनेक महिलाओं के साथ जुड़ता रहा। उनमें उनकी चित्रकार व लेखक साथी, मित्र और प्रशंसक सभी शामिल थीं। उदाहरण के लिए, फ्रेडरिक हॉलैंड डे की गर्लफ्रैंड लुइस गाइनी; आर्टिस्ट लीला कैबट पेरी, अद्भुत फोटोग्राफर सारा कोट्स सीअर्स, अमेरिकी लेखिका गर्ट्यूड स्टेन, अमेरिकी समाजवादी नाट्य-लेखिका चार्ल टेलर आदि। उनके निकटतम मित्र मिखाइल नियामी ने उनकी जीवनी लिखी। पाठकों ने उसका गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया क्योंकि उसमें जिब्रान की छवि को सूफी-हृदय के साथ-साथ औरतखोर और शराबखोर बताकर धूमिल किया गया था।
जहाँ तक महिलाओं का संबंध है, माँ कामिला रहामी, बहनों मरियाना व सुलताना के अलावा उनमें उनकी अनेक चित्रकार व लेखक साथी, मित्र और प्रशंसक सभी शामिल थीं। इनमें से कुछ के साथ उनका भावनात्मक और शारीरिक दोनों तरह का रिश्ता रहा हो सकता है लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया जा सकता कि वह ‘औरतखोर’ थे। वस्तुत: तो वह अपने समय में चिंतन, कला और लेखन के उस उच्च शिखर पर थे जिस पर रहते हुए ‘गिरी हुई हरकत’ करने का अर्थ था — अमेरिकी और अरबी — कला व साहित्य के दोनों ही क्षेत्रों में अपनी छवि पर कालिख पोत डालना। ब्रेक्स का कहना है कि ‘जिब्रान बचपन से ही अपनी महिला मित्रों में प्रेमिका के बजाय माँ की छवि तलाशते थे। यह उनकी मनोवैज्ञानिक आवश्यकता थी।’ मेरी हस्कल ने लिखा है — ‘जिब्रान ने कितनी ही बार मुझे खींचकर खुद से सटाया। हमने परस्पर कभी सहवास नहीं किया। सहवास के बिना ही उसने मुझे भरपूर आनन्द और प्रेम से सराबोर किया। उसके स्पर्श में संपूर्णता थी। वह ऐसे चूमता था जैसे अपनी बाँहों में भरकर ईश्वर किसी बच्चे को चूमता है।… वह अपना बना लेने, आत्मा को जीत लेने वाले व्यक्तित्व का स्वामी था। उसमें बच्चों-जैसी सरलता, राजाओं-जैसी भव्यता और लौ-जैसी ऊर्ध्वता थी।’ इसी प्रकार एक और क्षण को याद करते हुए मेरी ने लिखा है: ‘हताशा और उदासी के पलों में एक बार मैं जिब्रान के सामने निर्वस्त्र हो गई। जिब्रान ने भर-निगाह नीचे से ऊपर तक मेरे बदन को निहारा और गहरे विश्वास के साथ कहा — तुम अनुपम सौंदर्य की स्वामिनी हो। उसने बेतहाशा मेरी छातियों को चूमा, लेकिन सहवास नहीं किया। हमारा मानना था कि शारीरिक सहवास संबंधों को दुरूह बना देता है।’
विलियम ब्लेक का कहना था कि ‘सेक्स ऊर्जा का ही एक रूप है।’ जिब्रान ने उस ऊर्जा को बरबाद होने से बचाया और उसके प्रवाह को कविता और कला की ओर मोड़ दिया। इस रहस्य का उद्घाटन स्वयं जिब्रान ने मेरी के सामने किया था।
जिब्रान के जीवन, पेंटिंग्स और लेखन का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन करके 1973 में ‘जिब्रान खलील जिब्रान: फि दिरासा तहलिलिया तरकीबिया’ शीर्षक से अरबी में पुस्तक लिखने वाले प्रो॰ ग़ाज़ी ब्रेक्स ने लिखा कि ‘उन दिनों, जब मिशलीन जिब्रान को छोड़कर चली गई, वे मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत आहत हुए। उन्होंने इस बारे में मेरी को पत्र लिखा कि इस ‘प्यास’ को मैं ‘सिर्फ काम, काम, काम’ में खुद को डुबोए रखकर बुझा रहा हूँ।
जिब्रान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण महिला नि:संदेह उनकी माँ ‘कामिला’ थीं। उनका जन्म बिशेरी में 1864 में हुआ था। वह अपने पिता की सबसे छोटी संतान थी। कामिला का विवाह अपने चचेरे भाई हाना ‘अब्द अल सलाम रहामी’ के साथ हुआ था। जैसा कि उन दिनों अधिकतर लेबनानी करते थे, विवाह के बाद हाना रोज़ी-रोटी की तलाश में अपनी पत्नी के साथ ब्राजील चला गया। लेकिन कुछ ही समय बाद वह वहाँ बीमार पड़ गया और नन्हे शिशु बुतरस (पीटर) को कामिला की गोद में छोड़कर स्वर्ग सिधार गया। कामिला बच्चे को लेकर पुन: अपने पिता स्टीफन रहामी के घर लौट आईं। स्टीफन रहामी मेरोनाइट पादरी थे। उन्होंने कामिला का दूसरा विवाह कर दिया, लेकिन वह पति भी अधिक दिन जीवित न रह सका।
कामिला बहुत कम पढ़ी महिला थीं क्योंकि उस ज़माने में, वह भी गाँव में, लड़कियों को अधिक पढ़ाना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। लेकिन वह बेहद समझदार थीं तथा अरबी और फ्रांसीसी भाषा धाराप्रवाह बोलती थीं। उनका कंठ बहुत मधुर था और वे चर्च में धार्मिक भजन बड़ी तन्मयता से गाती थीं। जिब्रान का पिता बनने का सौभाग्य जिस आदमी को मिला उसने उस वक्त, जब विधवा कामिला अपने पिता के बगीचे में कोई गीत गुनगुना रही थीं, उनके गाने को सुना और दिल दे बैठा। उसने कामिला से विवाह का प्रस्ताव उनके घर भिजवाया। यह प्रस्ताव मान लिया गया। उसके पिता यानी खलील के दादा भी एक जाने-माने मेरोनाइट पादरी थे। बहुत सम्भव है कि कामिला के पिता इसलिए भी उनके बेटे के साथ अपनी बेटी का विवाह करने के प्रस्ताव पर आसानी से सहमत हो गए हों। वह परिवार यों भी काफी धनी था। जिब्रान का पिता बादशाह के लिए रिआया से कर वसूल करने का ठेका लेता था और खाली समय में भेड़ों की खरीद-फरोख्त का व्यापार भी चलाता था। इसी ग़लतफ़हमी में जिब्रान के कुछ जीवनीकारों ने उनके पिता को ‘गड़रिया’ भी लिख दिया है जो गलत है।
खलील जिब्रान के मन में अपनी माँ के लिए असीम लगाव था। अपनी पुस्तक ‘द ब्रोकन विंग्स’ में उन्होंने लिखा है: "इस जीवन में माँ सब-कुछ है। दु:ख के दिनों में वह सांत्वना का बोल है, शोक के समय में आशा है और कमजोर पलों में ताकत।"
अप्रैल 1902 में छोटी बेटी सुलताना के देहांत के बाद, पहले ही टी.बी. से ग्रस्त कामिला पर भी बीमारी ने अपना ज़ोर दिखाया। फरवरी 1903 में उन्हें अपना ऑपरेशन कराना पड़ा, लेकिन वे स्वस्थ नहीं हो पाईं। उसी वर्ष जून में मरियाना और जिब्रान को अकेला छोड़कर वे स्वर्ग सिधार गईं।
मरियाना जिब्रान की छोटी बहिन थी और सुलताना की बड़ी। इस बारे में कि उसके भाई को लेबनान और यूरोप भेजा जाए या नहीं, लड़की होने के नाते उससे पूछने की जरूरत नहीं समझी गई। लेकिन केवल दो साल के अन्तराल में जब माँ, बहिन और घर चलाने वाला भाई पीटर टी.बी. से चल बसे, तब मरियाना ने अपने भाई खलील को, जिसकी साहित्यिक रचनाएँ अरब-संसार को जगाने का और ओटोमन राजवंश में सनसनी फैलाने का काम कर रही थीं, तथा खुद को अकेला पाया तथापि उसने समझदारी और साहस से काम लिया और अपने बड़े भाई की अभिभावक बन गई। मरियाना ने महसूस किया कि साहित्यिक महानता और धन-सम्पत्ति अक्सर एक-साथ नहीं मिलतीं और मिलती भी हैं तो जीवन के अन्तिम पड़ाव में। जिब्रान की शिक्षा अरबी में हुई थी। इसलिए उनकी रचनाओं और पुस्तकों से घर चलाने लायक आमदनी तब तक प्रारम्भ नहीं हुई थी।
अकेले रह जाने के बाद, मरियाना ने अपने भाई को ऐसा कोई भी काम नहीं करने दिया जो उसे अपने साहित्यिक और कलापरक रुचि को छोड़कर करना पड़े। अपना और भाई का खर्चा चलाने के लिए उसने सिलाई और बुनाई जैसे छोटे कार्य करने प्रारम्भ किए। उसने भाई को प्रेरित किया कि जब तब उसके पास प्रदर्शनी लगाने योग्य पेंटिंग्स न हो जायँ, वह चित्र बनाता रहे। मरियाना के पास उसकी प्रदर्शनी का आयोजन कराने लायक भी रकम नहीं थी। लेकिन जिब्रान ने उन दिनों बोस्टन में रहने वाली एक लेबनानी महिला से बीस डॉलर उधार लेकर चित्र-प्रदर्शनी लगाई। उक्त महिला ताउम्र जिब्रान के उस उधारनामे को अपनी सबसे बड़ी पूँजी मानती रही।
जिब्रान की शिक्षा पर खर्च की गई रकम सूद समेत वापस मिली; न केवल साहित्य-जगत व शेष समाज को बल्कि धन की शक्ल में उनकी बहन मरियाना को भी। शेष समाज को इस रूप में कि उक्त धन से मरियाना ने लेबनान स्थित मठ ‘मार सरकिस’ को खरीदकर उसे जिब्रान की कलाकृतियों व साहित्य आदि के प्रेमियों व शोधार्थियों तथा पर्यटकों के लिए ‘जिब्रान म्यूज़ियम’ में तब्दील कर दिया। एक अनुमान के मुताबिक 1944-45 में जिब्रान की कलाकृतियों और किताबों से मिलने वाली रॉयल्टी की सालाना रकम लगभग डेढ़ मिलियन डॉलर थी जो उसके गृह-नगर बिशेरी को भेज दी जाती थी। यद्यपि अपनी बहन मारियाना के जीवन-यापन हेतु उसका भाई अच्छी-खासी रकम छोड़ गया था। फिर भी, अन्तिम वर्षों तक वह मेरी हस्कल की तरह नर्सिंग होम में अपनी सेवाएँ देती रही। 1968 में उसका निधन हो गया। बारबरा यंग से मरियाना का रिश्ता हमेशा मधुर रहा। बारबरा ने अपनी पुस्तक ‘द मैन फ्रॉम लेबनान’ मरियाना को ही समर्पित की।
सुलताना जिब्रान की सबसे छोटी बहन थी। उम्र में वह उनसे चार साल छोटी थी। उसका जन्म सन 1887 में हुआ था। लेबनान के पारम्परिक विचारधारा वाले परिवारों में उन दिनों लड़कियों की स्कूली शिक्षा को महत्वहीन समझा जाता था। दूसरे, यह परिवार अपने पोषण की समस्या से जूझ रहा था। इसलिए न तो जिब्रान की बहन मरियाना ने कभी स्कूल का मुँह देखा और न ही सुलताना ने। लेबनान में अपनी पढ़ाई पूरी करके जिब्रान बोस्टन चले आए थे। तत्पश्चात 1902 में एक अमेरिकी परिवार के गाइड और दुभाषिए के रूप में वे पुन: लेबनान गए। परन्तु सुलताना के गम्भीर रूप से बीमार हो जाने की खबर पाकर वह टूर उन्हें अधूरा ही छोड़कर वापस आना पड़ा। उसे टी.बी. हुई थी। 4 अप्रैल 1902 में मात्र 14 वर्ष की उम्र में सुलताना का निधन हो गया। खलील जिब्रान के परिवार में टी.बी. से एक के बाद एक तीन मौतें जल्दी-जल्दी हुईं जिनमें सुलताना पहली थी। अपने पहले प्यार को केन्द्र में रखकर जिब्रान ने अरबी में एक उपन्यास लिखा है। इतनी गहराई से उक्त क्षणों का अंकन कोई अन्य लेखक नहीं कर पाया। जिब्रान के कुछ जीवनीकारों का मानना है कि बेरूत में अध्ययन के दौरान जिब्रान को एक लेबनानी युवती से प्रेम हो गया था जिसका नाम सलमा करामी था।
जिब्रान की उम्र अठारह वर्ष थी जब प्रेम ने अपनी जादुई छुअन से उनकी आँखें खोलीं और यह चमत्कार करने वाली पहली युवती सलमा करामी थी। यह करिश्मा पढ़ाई के दिनों में तब हुआ जब गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए जिब्रान अपने पिता के पास बिशेरी आए थे।
इस प्यार की गहराई का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिब्रान ‘मार सरकिस’ मठ को खरीदकर बाकी ज़िन्दगी वहीं बिताने पर आमादा थे क्योंकि सलमा वहीं एक बार उन्हें मिली थी। अनुमान है कि सलमा करामी एक विवहित महिला थी। पहले प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। इस तरह जिब्रान के पहले प्यार का दु:खद अन्त हो गया। ‘द ब्रोकन विंग्स’ में जिब्रान ने सलमा को प्रस्तुत किया है जो एक आध्यात्मिक जीवनी तथा उनकी अपनी प्रेम-कहानी है। अपने प्रथम संस्करण से ही यह अरबी भाषा की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक रही है।
जिब्रान के आधिकारिक जीवनीकार और पड़ोसी दावा करते हैं कि जिब्रान की पहली प्रेमिका का नाम हाला अल-दहेर था और प्रेम की वह कहानी बेरूत में नहीं, बिशेरी में घटित हुई।
जिब्रान गर्मी की छुट्टियाँ बिशेरी जाकर बिताते थे। पिता ने एक बार किसी बात पर उनकी पिटाई कर दी थी इसलिए वह उसी मकान में रुकने के बजाय अपनी एक आंटी के यहाँ रुकना पसंद करते थे।
बिशेरी में ही जिब्रान के एक स्कूल-अध्यापक सलीम अल-दहेर भी रहते थे जो बहुत धनी थे। जिब्रान ने प्रभावित करने के लिए उनके घर जाना शुरू कर दिया। किसी घरेलू कार्यक्रम में सलीम ने जिब्रान को भी वेंकट हाल में बुलाया जहाँ उनकी मुलाकत सलीम की 15 वर्षीया बेटी हाला से हुई। हाला उनके साथ बातचीत से बहुत प्रभावित हुई और अक्सर मिलने लगी।
1899 की छुट्टियों में, जिब्रान जब दोबारा गाँव आए, हाला के भाई इसकंदर अल-दहेर को दोनों के बीच प्रेमालाप का पता चल गया। उसने ‘टैक्स इकट्ठा करने वाले एक ओछे आदमी के बेटे के साथ’ अपनी बहन के मिलने पर पाबंदी लगा दी। लेकिन हाला की बहन सैदी ने गाँव के जंगल में ‘मार सरकिस’ मठ के निकट उनकी मुलाकतें कराने का इंतजाम कर दिया।
स्कूल जाने से पूर्व अपनी अंतिम मुलाकत के समय जिब्रान ने हाला को अपने बालों की एक लट, घूमने की अपनी छड़ी तथा सेंट की एक शीशी दी जिसे उन्होंने अपने आँसुओं से भरा था।
कुछ सप्ताह बाद, जिब्रान ने हाला से उनके साथ भाग चलने का प्रस्ताव रखा जिसे उसने मना कर दिया। हाला ने उनसे कहा — ‘अगर आप पेड़ से कच्चा फल तोड़ते हो तो फल और पेड़ दोनों का नुकसान करते हो। पका हुआ फल खुद ब खुद डाल से टपक जाता है।’
फ्रांसीसी दार्शनिक ला रोश्फूकौड ने कहा है कि — ‘आग धीमी हो तो हवा का हल्का-सा झोंका भी उसे बुझा देता है; लेकिन वह अगर तेज हो तो हवा पाकर और तेज़ भड़कती है।’ प्रेम की इस असफलता रूपी आँधी में जिब्रान के अन्तस में विराजमान कलाकार और कथाकार को उस आग-सा ही भड़का डाला।
सलमा करामी की कहानी को बहुत से लोग एक 22 वर्षीया लेबनानी विधवा सुलताना ताबित से भी जोड़ते हैं। वह भी उन्हें पढ़ाई के दौरान ही मिली थी। जिब्रान ने मेरी को भी इस बरे में बताया था। सुलताना के साथ जिब्रान ने किताबों और कविताओं का खूब लेन-देन किया। लेकिन लोक-लाज के डर से सुलताना जिब्रान के साथ अधिक आगे नहीं बढ़ पाई और अपने-आप में सिमटकर रह गई। 1899 के असफल प्रेम की उन स्मृतियों को जिब्रान ने 1912 में प्रकाशित अपनी अरबी पुस्तक अल-अजनि: आह अल-मुतकस्सिरा में लिखा जिसका अंग्रेजी अनुवाद 1957 में ‘द ब्रोकन विंग्स’ नाम से प्रकाशित हुआ। ‘द ब्रोकन विंग्स’ को स्वयं जिब्रान ने एक आध्यात्मिक जीवनी कहा है। इसकी नायिका सलमा करामी वस्तुत: सुलताना ताबित की प्रतिनिधि है।
लेबनानी लेखक सलीम मुजाइस ने ‘लेटर्स ऑव खलील जिब्रान टु जोसेफिन पीबॅडी’ पुस्तक प्रकाशित कराई है। यह अरबी में है। इसमें जिब्रान के 82 पत्रों और जोसेफिन की डायरी ‘साइकिक’ को तारीख दर तारीख शामिल किया गया है। इस तरह आप दो प्रेमियों के उद्गार बिना किसी बाहरी टीका-टिप्पणी के पढ़ते चले जाते हैं। जिब्रान पर केन्द्रित जोसेफिन की कविताओं को भी इसमें दैनिक डायरी के तौर पर शामिल किया गया है। यहाँ तक कि जोसेफिन से संबंधित जिब्रान के काम पर की गई तत्कालीन टिप्पणियाँ भी इसमें शामिल हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि जिब्रान को लिखे गए जोसेफिन के पत्र अप्राप्य हैं। बहरहाल, जिब्रान द्वारा लिखे गये पत्रों को जोसेफिन ने सँभालकर रखा।
1898 में जिब्रान जब बोस्टन से लेबनान गए, तब तीसरे ही महीने अनपेक्षित रूप से उन्हें जोसेफिन का पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि — मि. डे ने मुझे अपने पास रखी आपके बहुत-सी पेंटिंग्स और ड्राइंग्स दिखाईं। आपके बारे में बहुत-सी बातें हमारे बीच हुईं। आपके काम को देखकर मैं पूरे दिन रोमांचित रही क्योंकि उनके माध्यम से आपको समझ पा रही हूँ। मुझे लगता है कि आपकी आत्मा एक सुंदर सृष्टि में वास करती है। सौभाग्यशाली लोग ही अपनी कला में सौंदर्य की सृष्टि करने में सक्षम हो पाते हैं। अपनी रोज़ी को दूसरों के साथ बाँटकर वे पूर्ण सुख का अनुभव करते हैं। मैं भीड़भाड़ वाले शहर के एक शोरभरे इलाके में रहती हूँ। अपने-आप को मैं ऐसे बच्चे-जैसा पाती हूँ जो ‘स्व’ की तलाश में भटक रहा है। क्या तुमने कभी बियाबान देखा है? मैं समझती हूँ कि तुम चुप्पी को सुन सकते हो। अपनी खबर देते रहना, मैं अपने बारे में लिखती रहूँगी।
जिब्रान ने 3 फरवरी 1899 को लेबनान से उत्तर दिया — ‘ओ, कितना खुश हुआ मैं? कितना प्रसन्न? इतना कि मेरी कलम की जुबान उस प्रसन्नता को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं ढूँढ़ पा रही है। अपनी भावना के शब्दों को अंग्रेजी में सोचते हुए मुझे परेशानी होती है। मुझे अपने विचार अंग्रेजी में व्यक्त करना नहीं आता। मुझे लगता है कि आपसे कहने को मेरे पास ऐसा बहुत-कुछ है जो आपकी दोस्ती को मेरे दिल में बरकरार रखे। मेरे दिल में आपके लिए हमेशा असीम धरती और सागरों से भी ऊपर प्यार कायम रहेगा। आपका खयाल हमेशा मेरे दिल के पास रहेगा और हमारे बीच कभी दूरी नहीं रहेगी। आपने अपने खत में लिखा है कि ‘मैं अच्छी चीजों का खयाल रखती हूँ’ और कुछ मामलों में मैं बिल्कुल कैमरे की तरह हूँ तथा मेरा हृदय (फोटो लेने वाली) प्लेट है। मि. डे की प्रदर्शनी में आपसे बातचीत को मैं कभी भूल नहीं सकता। मैंने उनसे पूछा था — ‘काली पोशाक वाली महिला कौन है?’ उन्होंने कहा — ‘वह युवा कवयित्री मिस पीबॅडी हैं और उनकी बहन एक आर्टिस्ट है… ’ ‘क्या कभी अँधेरे सुनसान कमरे में बैठकर बारिश के शांतिप्रद संगीत को आपने सुना है?… इस खत के साथ याददाश्त के तौर पर मैं छोटा-सा एक चित्र भेज रहा हूँ।’
जिब्रान की मेरी हस्कल से बढ़ती निकटता से रुष्ट होकर जोसेफिन ने 1906 में लायोनल मार्क्स से विवाह कर लिया। कच्ची उम्र के उस प्रेम का इस प्रकार अंत हो गया और जोसेफिन जिब्रान के एक असफल प्रेम की पात्रा बनकर रह गई। दोनों के बीच 1908 तक खतो-किताबत चला। बहुत-से खत बेतारीख हैं। बहुत-से खत नाराज़गी के दौर में जोसेफिन ने फाड़कर फेंक दिए हो सकते हैं। तत्पश्चात् ‘द मास्क ऑव द बर्ड’ देखने आने से पहले 1914 तक जोसेफिन जिब्रान से नहीं मिली। इसी फरवरी माह में जोसेफिन ने जिब्रान को चाय पर आमंत्रित किया और अपने बच्चों की फोटो-अलबम दिखाई। उन्होंने मिसेज फोर्ड में और एडविन रोबिन्सन में डिनर भी किए। उस मुलाकात के बाद जिब्रान ने मेरी हस्कल को लिखा था — ‘वह इस दुनिया की नहीं, कैम्ब्रिज की महसूस होती है। जोसेफिन बिल्कुल नहीं बदली: अभी भी वैसे ही कपड़े पहनती है।’
जिब्रान की पहली चित्र-प्रदर्शनी आयोजित करने वाली जोसेफिन थी। उसी ने सर्वप्रथम जिब्रान के चित्रों की तुलना अपने समय के महान चित्रकार विलियम ब्लेक के चित्रों से की। जिब्रान की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले उसी ने किया। जिब्रान पर कविता सबसे पहले उसने लिखी। जिब्रान के चित्रों और पेंटिंग्स में उतरने वाली वह पहली महिला थी। जिब्रान ने डे के हाथों उसे अपनी एक पेंटिंग ‘टु द डीयर अननोन जोसेफिन पीबॅडी’(अजनबी प्रिय जोसेफिन पीबॉडी को) लिखकर भेंट की थी। जोसेफिन जिब्रान का पहला सच्चा प्यार और कल्पना थी। जोसेफिन ही थी जिसने जिब्रान को प्रेम, पीड़ा, व्यथा, हताशा और उल्लास का अनुभव कराया।
1902 में अपनी छोटी बहन सुलताना की मृत्यु के बाद खलील बहुत दु:खी थे। उसी दौरान उन्हें कला कर्म छोड़कर घरेलू व्यवसाय भी सँभालना पड़ा था। तब जोसेफिन ने बोस्टेनियन कला समाज से जोड़े रखने में उनकी असीम मदद की थी। धीरे-धीरे उसने जिब्रान के दिल में अपनी जगह मजबूत कर ली। उसके आने से जिब्रान ने जीवन में बदलाव महसूस किया। जोसेफिन जिब्रान की सांस्कृतिक विद्वत्ता व पृष्ठभूमि के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के चित्रों से सजे उनके पत्रों और बातचीत के मृदुल तरीके से बहुत प्रभावित थी। जोसेफिन की देखभाल ने जिब्रान का दु:ख-दर्द कम करने तथा कैरियर को सँभालने में काफी मदद की।
जोसेफिन का जन्म 1874 में हुआ था। 14 वर्ष की उम्र में ही उसकी कविताएँ पत्रिकाओं में प्रकाशित होनी प्रारम्भ हो गई थीं। उसकी पहली पुस्तक ‘ओल्ड ग्रीक फोक स्टोरीज टोल्ड अन्यू’ (पुरानी ग्रीक लोककथाएँ नए अंदाज़ में, 1897) थी। उसके बाद कविता संग्रह ‘वेफेअरर्स’ (1898) आया। सन 1900 में जोसेफिन का एकांकी ‘फोर्च्यून एंड मैन्ज़ आईज़’ तथा 1901 में काव्य-नाटक ‘मार्लो’ प्रकाशित हुआ। सन 1903 तक उसने वेलेसले में अध्यापन किया।
विवाह के बाद वह जर्मनी चली गई जहाँ उसका पति एक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था। बाद में वे बोस्टन लौट आए। 1907 में जोसेफिन का काव्य-नाटक ‘द विंग्स’ प्रकाशित हुआ और उसी साल उसने पहली बच्ची एलिसन को जन्म दिया। जुलाई 1907 में उसके बालगीतों का संग्रह ‘बुक ऑव द लिटिल पास्ट’ आया। 1909 में उसका नाटक ‘द पाइड पाइपर’ आया जिसने लगभग 300 प्रतियोगियों के बीच ‘स्टार्टफोर्ड सम्मान’ जीता। 1911 में जोसेफिन की पुस्तक ‘द सिंगिंग मैन’ आई। उसमें उसने 1900 के आसपास लिखी अपनी कविता ‘द प्रोफेट’ को भी शामिल किया था जिसमें उसने जिब्रान के बचपन की कल्पना की थी। 1913 में जोसेफिन ने यूरोप, ग्रीस, फिलिस्तीन और सीरिया की यात्राएँ कीं। वापस आने पर उसने ‘द वुल्फ ऑव गुब्बायो’ नामक पुस्तक प्रकाशित कराई। उसकी कविताओं की एक पुस्तक ‘हार्वेस्ट मून’ भी आई।
1918 में जोसेफिन का नाटक ‘द कमेलिअन’ और 1922 में ‘पोर्ट्रेट ऑव मिसेज डब्ल्यू’ आया।
दिसम्बर 1902 से जनवरी 1904 के बीच लिखित जोसेफिन की डायरी ‘साइकिक’ में जिब्रान पर 51 पेज लिखे गये हैं। उसकी मृत्यु 1922 में हुई। उसको श्रद्धांजलिस्वरूप लिखे अपने एक अरबी लेख (अंग्रेजी रूपांतर ‘अ शिप इन द फोग’) में जिब्रान ने लिखा — “सफेद परिधान वाले इस सफेद सैनिक-जुलूस के ऊपर वह काल की चुप्पी और असीम की जिज्ञासा के बीच सफेद फूलों-सी मँडराती है।"
खलील जिब्रान के जीवन में बारबरा यंग (Barbara Young) का साथ अन्तिम सात वर्षों में रहा। इस दौरान वह उनकी पहली शिष्या रही जिसने उनकी प्रशंसापरक जीवनी ‘द मैन फ्रॉम लेबनान’ लिखी।
“जिब्रान ने अगर कभी कोई कविता न लिखी होती या कोई भी पेंटिंग न बनाई होती तो भी काल के सीने पर उनके मात्र हस्ताक्षर ही अमिट होते। उन्होंने अपनी चेतनशक्ति से अपने युग की चेतना को झकझोर कर रख दिया है। जिसकी आत्मिकउपस्थिति अभूतपूर्व और अमिट है — वह जिब्रान है।” बारबरा ने लिखा।
1923 में बारबरा ने ‘द प्रोफेट’ का एक पाठ सुना। उसे सुनकर जिब्रान को उसने अपने प्रशंसापरक मनोभाव लिखे। जवाब में उसे जिब्रान का गरिमापूर्ण पत्र मिला जिसमें उन्होंने उसे ‘कविता पर बात करने और पेंटिंग्स देखने आने’ का न्योता दिया था।
“मैं,” उसने लिखा, “ओल्ड वेस्ट टेन्थ स्ट्रीट की पुरानी इमारत में गई। चौथे माले तक सीढ़ियाँ चढ़ीं। वहाँ उसने ऐसे मुस्कराते हुए मेरा स्वागत किया गोया हम बहुत-पुराने दोस्त हों।”
कद में बारबरा जिब्रान से ऊँची थीं, गोरी थीं और आकर्षक देह्यष्टि की स्वामिनी थीं। उसका परिवार इंग्लैंड के डिवोन स्थित बिडेफोर्ड से ताल्लुक रखता था। वह अंग्रेजी अध्यापिका थीं। वह किताबों की एक दुकान भी चलाती थीं और उक्त चौथे माले तक सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरान्त जब तक जीवित रहीं, जिब्रान के बारे में लेक्चर देती रहीं। जिब्रान के देहांत के बाद उसने जिब्रान पर अपनी अपूर्ण पुस्तक ‘गार्डन ऑफ द प्रोफेट’ को तरतीब दी और प्रकाशित कराया।
बारबरा यंग और दूसरे जीवनीकारों ने जिब्रान के बारे में लिखा है कि वह दुबले-पतले, पाँच फुट चार इंच ऊँचे मँझोले कद के व्यक्ति थे। उनकी मोटी-मोटी उनींदी-सी भूरी आँखें देर में झपकती थीं। बाल अखरोट के रंग वाले थे। मूँछें इतनी घनी थीं कि दोनों होंठों को ढँके रखती थीं। उनका शरीर गठीला और पकड़ मजबूत थी।
जिब्रान के देहावसान के समय बारबरा अस्पताल में उनके निकट ही थीं। उनकी मृत्यु के तुरन्त बाद उसने जिब्रान के स्टुडियो से, जहाँ वह अठारह साल तक रहे थे, कीमती पेंटिंग्स और दूसरी चीजें काबू में ले लीं और उन्हें लेबनान में उसके गृह-नगर बिशेरी स्थित उनके घर भेज दिया।
भाषण के अपने दौरों के दौरान बारबरा जिब्रान की साठ से ज्यादा पेंटिंग्स जनता को दिखाती थीं। इन सब का या जिब्रान की बनाई अन्य अधूरी पेंटिंग्स का, लेखों का, पत्रों का क्या हुआ? उन्हें पाने के लिए उसे उन लोगों का पता लगाना था जिन्होंने उन्हें खरीदा, उपहार में पाया या कबाड़ में डाल रखा हो और दयालुतापूर्वक जो उन्हें वापस दे सकें। जब तक वह सारी सामग्री सामने नहीं आ जाती, जिब्रान की सम्पूर्ण जीवनी नहीं लिखी जा सकती थी। कम-से-कम बारबरा द्वारा लिखा जाने वाला अध्याय तो नहीं ही पूरा होने वाला था।
सम्पर्क के बाद सात सालों में वह सम्बन्ध कितना प्रगाढ़ हुआ? इसका उत्तर बारबरा के लेखन का आकलन करने वाले विशेषज्ञ समय-समय पर देते रहते हैं। वह जिब्रान के साथ कभी नहीं रहीं। वह न्यूयॉर्क के अपने अपार्टमेंट में रहती थीं।
“एक रविवार को,” बारबरा ने लिखा है, “जिब्रान के एक बुलावे पर मैं उसके स्टुडियो में गई। जब पहुँची, अपनी डेस्क पर बैठा वह एक कविता लिख रहा था। लिखते समय आम तौर पर वह फर्श पर घूमता रहता था और एक या दो लाइनें जमीन पर बैठकर भी लिखता था।
“उसका कविता लिखना, उठकर बार-बार घूमना शुरू कर देना जब तक जारी रहा, तब तक मैं इन्तजार करती रही। अचानक मुझे एक बात सूझी। अगली बार जैसे ही उसने घूमना शुरू किया, मैं उसकी मेज पर जा बैठी और उसकी पेंसिल उठा ली। जैसे ही वह घूमा, मुझे वहाँ बैठा पाया।
“तुम कविता सोचो, मैं लिखती हूँ।” मैंने कहा।
“ठीक, तुम और मैं एक ही कविता पर काम करने वाले दो कवि हैं।” कहकर वह रुका। फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद बोला,“हम दोस्त हैं। मुझे तुमसे और तुम्हें मुझसे कुछ नहीं चाहिए। हम सहजीवी हैं।”
जैसे-जैसे उन्होंने साथ काम किया और जैसे-जैसे वह उसके सोचने और काम करने के तरीके के बारे में उलझती चली गई, उसने उसके बारे में एक किताब लिखने का अपना निश्चय उस पर जाहिर कर दिया। जिब्रान ने इस पर खुशी जाहिर की और “उसके बाद वह उसे अपने बचपन की, अपनी माँ और परिवार की तथा जीवन की कुछ विशेष घटनाएँ भी बताने लगा।
‘सैंड एंड फोम’ में जिब्रान ने एक सूक्ति लिखी है — “एक-दूसरे को हम तब तक नहीं समझ सकते जब तक कि आपसी बातचीत को सात शब्दों में न समेट दें।” शायद यही विचार रहा होगा कि एक दिन जिब्रान ने बारबरा से पूछा, “मान लो तुम्हें यह कहा जाय कि सिवा सात शब्दों के तुम सारे शब्द भूल जाओ। तब वे सात शब्द, जिन्हें तुम याद रखना चाहोगी, कौन-से होंगे?”
“मैं सिर्फ पाँच ही गिना सकी,” बारबरा ने लिखा है, “ईश्वर, जीवन, प्रेम, सुन्दरता, पृथ्वी… और… और,” और फिर जिब्रान से पूछा, “दूसरे कौन-से शब्द वह चुनेगा?” जिब्रान ने कहा,“सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शब्द हैं — तुम और मैं… इन दो के अलावा किसी अन्य की आवश्यकता नहीं है।” उसके बाद उसने ये सात शब्द चुने — तुम, मैं, त्याग, ईश्वर, प्रेम, सुन्दरता, पृथ्वी।
“स्टूडियो में जिब्रान को सलीका पसन्द था।” बारबरा ने लिखा है, “विशेषत: उस वक्त, जब वह मनोरंजन कर रहा हो या खाना खा रहा हो। एक शाम जिब्रान ने कहा कि — पूरब में पूरे कुनबे के लोगों का एक ही बड़े बर्तन में खाना खाने का चलन है। आज शाम अपन क्यों न एक ही कटोरे में सूप पिएँ!” हमने वैसा ही किया। जिब्रान ने एक काल्पनिक लाइन सूप में खींचकर कहा, “उधर का आधा सूप तुम्हारा है और इधर का आधा मेरा। देखो, हममें से कोई भी दूसरे के हिस्से का सूप न पी ले!” उसके बाद उसने जोर का ठहाका लगाया और अपने हिस्से का सूप पीते हुए हर बार हँसा।
एक अन्य अध्याय में बारबरा ने लिखा है : “एक शाम, जब हम ‘सी एंड फोम’ पर काम कर रहे थे, अपने लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुर्सी पर न बैठकर मैंने फर्श पर कुशन डाले और उन पर बैठ गई। उस पल मैंने सोचने की प्रक्रिया के साथ अनौपचारिक हो जाने का अभूतपूर्व रोमांच महसूस किया। मैंने कहा — “मुझे लगता है कि मैं जाने कितनी बार इस तरह तुमसे सटकर बैठती रही हूँ, जब कि इससे पहले कभी भी नहीं बैठी!” जिब्रान ने कहा, “हजार साल पहले हम ऐसे बैठते थे और हजारों साल तक ऐसे ही बैठा करेंगे।”
“और ‘जीसस, द सन ऑव मैन’ रचने के दौरान जब-तब कुछ अजीब घटनाएँ मैंने महसूस करनी शुरू कीं। मैंने कहा — ‘यह तो एकदम जीती-जागती-सी बातें हैं। लगता है कि मैं खुद वहाँ थी।’ वह लगभग चीखकर बोला, ‘तुम वहाँ थीं! और मैं भी!’ ”
मूल अरबी से जिब्रान की अनेक पुस्तकों का अंग्रेजी में रूपान्तर करने वाले जोसेफ शीबान ने एक स्थान पर लिखा है : “जिब्रान के देहावसान के दो साल बाद बारबरा की मुलाकात इन पंक्तियों के लेखक से क्लीवलैंड शहर में हो गई। उसने मुझसे पूछा — “अरबी सीखने में कितना समय लग सकता है?” मैंने उससे कहा कि “जिब्रान की किसी भी किताब का अनुवाद करने के लिए अरबी भाषा के सांस्कृतिक पक्ष की जानकारी जरूरी है जिसमें कई साल लग सकते हैं, केवल बोलना सीखना है तो अलग बात है। कुल मिलाकर अरबी एक कठिन भाषा है।”
बारबरा यंग ने अपनी पुस्तक में लिखा है: "एक बार कुछ महिलाएँ जिब्रान से मिलने आईं। उन्होंने उससे पूछा: अभी तक शादी क्यों नहीं की? वह बोला: देखो… यह कुछ यों है कि… अगर मेरी पत्नी होती, और मैं कोई कविता लिख रहा होता या पेंटिंग बना रहा होता, तो कई-कई दिनों तक मुझे उसके होने का याद तक न रहता। और आप तो जानती ही हैं कि कोई भी अच्छी महिला इस तरह के पति के साथ लम्बे समय तक रहना नहीं चाहेगी।"
उनमें से एक महिला ने, जो मुस्कराकर दिए हुए उसके इस जवाब से सन्तुष्ट नहीं थी, उसके जख्म को और कुरेदा, "लेकिन, क्या आपको कभी किसी से प्यार नहीं हुआ?” बड़ी मुश्किल से अपने-आप पर काबू पाते हुए उसने जवाब दिया : “मैं एक ऐसी बात आपको बताऊँगा जिसे आप नहीं जानतीं। धरती पर सबसे अधिक कामुक सर्जक, कवि, शिल्पकार, चित्रकार, संगीतकार… आदि-आदि ही हैं और सृष्टि के आरम्भ से यह क्रम चल रहा है। काम उनमें एक सुन्दर और अनुपम उपहार है। काम सदैव सुन्दर और लज्जाशील है।” सम्भवत: इसी प्रसंग को जिब्रान ने ‘The Hermit and The Beasts’ का रूप दिया है जो उनके देहांत के उपरांत सन 1932 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘द वाण्डरर’ में संग्रहीत हुई।
बोस्टन में जिब्रान एमिली मिशेल नामक एक अत्यन्त सुन्दर और आकर्षक युवती के सम्पर्क में रहे जिसे प्यार से ‘मिशलीन’ (Micheline) पुकारा जाता था। एक जीवनीकार ने लिखा है कि मिशलीन ने पेरिस तक जिब्रान का पीछा नहीं छोड़ा। वह उनसे विवाह करने की जिद करती रही; लेकिन जब उन्होंने मना कर दिया तो वह हमेशा के लिए उनकी ज़िन्दगी से गायब हो गई। इस संबंध में दो प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं — पहला यह कि पेरिस जाने से पहले जिब्रान ने उसकी पेंटिंग बनाई थी; और दूसरा यह कि अपनी एक पुस्तक उन्होंने मिशलीन को समर्पित की थी।
लेकिन कई जीवनीकार इस कहानी को विश्वसनीय नहीं मानते। इसका कारण जिब्रान और मिशलीन के बीच किसी पत्रात्मक प्रमाण का प्राप्त न होना भी है। खलील जिब्रान साहित्य के एक अमेरिकी शोधकर्ता जोसेफ शीबान अनेक स्रोत तलाशने के उपरान्त जिब्रान के जीवन में मिशलीन नाम की किसी युवती के अस्तित्व को नकारते हुए लिखते हैं — “पेरिस में जिब्रान अपने एक जिगरी लेबनानी दोस्त यूसुफ हवाइक के साथ काम करते थे। यूसुफ ने उन दो वर्षों के संग-साथ पर एक पुस्तक लिखी है। उन्होंने जिब्रान का एक पोर्ट्रेट भी बनाया था जो बहु-प्रचलित और बहु-प्रशंसित है। दोनों दोस्त एक ही अपार्टमेंट में नहीं रहते थे लेकिन मिलते रोजाना थे। पैसा बचाने की नीयत से अक्सर वे एक ही मॉडल को किराए पर लेकर काम चलाते थे। हवाइक ने उन लड़कियों का, जिनसे वे मिले और उन रेस्टोरेंट का, जहाँ वे खाना खाते थे, जिक्र किया है। उसने एक रूसी लड़की ओल्गा और दूसरी रोसिना का तथा एक बहुत खूबसूरत इटेलियन लड़की का भी जिक्र किया है जिन्हें मॉडलिंग हेतु उन्होंने किराए पर लिया। लेकिन हवाइक ने मिशलीन का कहीं भी जिक्र नहीं किया है।”
लेकिन सत्य यह है कि मिशलीन नाम की युवती जिब्रान के जीवन में न केवल आई, बल्कि उसने सकारात्मक भूमिका भी अदा की। वह मेरी हस्कल के स्कूल में फ्रेंच भाषा की अध्यापिका थी और मेरी की दोस्त भी थी। मिशलीन को जिब्रान की पहली ‘मॉडल’ बनने का सौभाग्य प्राप्त था। दोनों के बीच गहरा प्यार हो गया। मिशलीन ने जिब्रान को फ्रांस चलने के लिए उकसाया और हर संभव सहायता देने का वादा भी किया। उसी को केन्द्र में रखकर जिब्रान ने एक कविता ‘द बिलविड’ लिखी जिसमें उन्होंने पहले चुम्बन की व्याख्या की।
“ग़ज़ब का चेहरा… जानती हो सौंदर्य के दर्शन मुझे तुममें होते हैं। पता है, अपने चित्रों में बार-बार जिस चेहरे का उपयोग मैं करता हूँ वह हू-ब-हू तुम्हारा न होकर भी तुम्हारा होता है… जिसे मैं चित्रित और पेंट करना चाहता हूँ, वह चेहरा… गहराई और कामनाभरी वे आँखें तुम्हारे पास हैं। यही वह चेहरा है जिसके माध्यम से मैं अभिव्यक्त हो सकता हूँ।”
8 नवम्बर, 1908 को लिखे अपने एक पत्र में जिब्रान ने मेरी को लिखा था — अकादमी के प्रोफेसर्स कहते हैं — “मॉडल को उतनी खूबसूरत मत चित्रित करो, जितनी वह नहीं है।” और मेरा मन फुसफुसाया — “ओ, काश मैं उसे केवल उतनी सुंदर बना पाता जितनी कि वास्तव में वह है।”
जिब्रान ने 3 मार्च 1904 को बोस्टन के डे’ज़ स्टुडियो में अपनी पेंटिंग्स की पहली प्रदर्शनी लगाई थी। वहीं पर उनकी मुलाकात उम्र में दस साल बड़ी वहाँ की मार्लबोरो स्ट्रीट स्थित गर्ल्स केम्ब्रिज स्कूल की मालकिन व प्राध्यापिका मेरी एलिजाबेथ हस्कल (Mary Elizabeth Haskell) से हुई। वह मुलाकात जिब्रान के फोटोग्राफर मित्र फ्रेडरिक हॉलैंड डे ने कराई थी या जोसेफिन ने, इस बारे में विचारकों के अलग-अलग मत हैं। कुछ का कहना है कि डे ने तो कुछ का कहना है कि जोसेफिन ने। जो भी हो, आगामी 25 वर्ष तक उनकी दोस्ती निर्बाध चलती रही। मई 1926 में मेरी ने एक धनी दक्षिण अमेरिकी भूस्वामी जेकब फ्लोरेंस मिनिस (Jacob Florance Minis) से विवाह कर लिया और मेरी एलिज़ाबेथ हस्कल के स्थान पर मेरी हस्कल मिनिस नाम से जानी जाने लगीं। टेलफेअर म्यूजियम को, जो खलील जिब्रान के कलाकर्म का अमेरिका में सबसे बड़ा संग्रहालय है, मेरी ने अपने संग्रह से निकालकर उनकी 100 से अधिक पेंटिंग्स उपहार में दीं। जिब्रान के जीवन में मेरी हस्कल के आगमन ने उनके लेखकीय जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला। मेरी मजबूत इच्छा-शक्ति वाली, आत्मनिर्भर, शिक्षित व ‘स्त्री स्वातंत्र्य आंदोलन’ की सक्रिय नेत्री थीं। जोसेफिन पीबॅडी की रोमांटिक प्रकृति से वह एकदम अलग थीं। यह मेरी ही थीं जिन्होंने जिब्रान को अंग्रेजी लेखन की ओर प्रेरित किया। उन्होंने जिब्रान से कहा कि अंग्रेजी में नया लिखने की बजाय वह अपने अरबी लेखन को ही अंग्रेजी में अनूदित करें। जिब्रान के अनुवाद को संपादित करके चमकाने का काम भी मेरी ने ही किया। जिब्रान के मन्तव्यों को समझने के लिए मेरी ने अरबी भी सीखी। जिब्रान के एक जीवनीकार ने यह भी लिखा है कि जिब्रान अपनी हर पुस्तक की पांडुलिपि को प्रकाशन हेतु भेजने से पहले मेरी को अवश्य दिखाया करते थे। अपनी पुस्तक ‘द ब्रोकन विंग्स’ तथा ‘टीअर्स एंड लाफ्टर’ के समर्पण पृष्ठ पर जिब्रान ने लिखा है —
To M.E.H.
I present this book — first breeze in the tempest of my life — to that noble spirit who walks with the tempest and loves with the breeze.
KAHLIL GIBRAN
M.E.H. मेरी एलिजाबेथ हस्कल के प्रथम-अक्षर हैं। इनके अतिरिक्त उनकी कुछ अन्य रचनाओं पर भी ‘Dedicated to M.E.H.’ लिखा मिलता है। जैसे कि, उनकी रचना ‘द ब्यूटी ऑव डैथ’ भी M.E.H. को ही समर्पित है।
मेरी ड्राइंग़्स दिखाने और बोस्टन-समाज में घुल-मिल जाने के अवसर देने की दृष्टि से अपनी कक्षाओं में जिब्रान को आमन्त्रित करती रहती थी। वह उनके कलात्मक विकास में निरन्तर रुचि लेती थीं। पेंटिंग्स पर बातचीत के लिए कक्षा में बुलाए जाने पर जिब्रान को वह हर बार पारिश्रमिक भी देती थीं। मेरी ने ही अपने खर्चे पर जिब्रान को ड्राइंग की उच्च शिक्षा हेतु पेरिस के फ्रेंच आर्टिस्टिक स्कूल ऑव एकेडेमी जूलियन भेजा था।
दिसम्बर 1910 में मेरी ने एक दैनिक जर्नल शुरू किया जिसमें वह जिब्रान के जीवन से जुड़ी अपनी स्मृतियों व पत्रांशों को प्रकाशित करती थीं। यह जर्नल 17 वर्ष 6 माह तक लगातार छ्पा। उसी वर्ष जिब्रान ने मेरी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे मेरी ने उम्र में दस साल का लम्बा अन्तर कहकर ठुकरा दिया। मेरी नि:संदेह इतनी कम उम्र के पुरुष से विवाह करने से डर गई थी। इस प्रसंग को आधार बनाकर जिब्रान ने ‘सेवेन्टी’ शीर्षक से कथारूप दिया है जो ‘द वाण्डरर’ में संग्रहीत है। लेकिन इस घटना के बाद भी दोनों की दोस्ती बरकरार रही। दोनों के विवाह में एक रोड़ा ‘धन’ भी था। मेरी जिब्रान की आर्थिक मददगार थी और जिब्रान को डर था कि यह बात उनके वैवाहिक सम्बन्ध पर विपरीत असर डालने वाली सिद्ध हो सकती है। इस मसले पर उनमें अक्सर तकरार भी हो जाती थी।
जून 1914 से सितम्बर 1923 तक प्रकाशित पुस्तकों द मैडमैन (1918), द फोररनर (1920) तथा द प्रोफेट (1923) के बारे में जिब्रान ने मेरी से हर संभव मदद प्राप्त की। जीवन के अन्तिम वर्ष मेरी ने नर्सिंग होम्स में सेवा करते हुए बिताए। 1964 में मेरी का निधन हो गया।
लेबनान के महाकवि एवं महान दार्शनिक खलील जिब्रान (1883–1931) के साहित्य–संसार को मुख्य रूप से दो प्रकारों में रखा जा सकता है, एक:जीवन–विषयक गम्भीर चिन्तनपरक लेखन, दो : गद्यकाव्य, उपन्यास, रूपककथाएँ आदि। मानव एवं पशु–पक्षियों के उदाहरण लेकर मनुष्य जीवन का कोई तत्त्व स्पष्ट करने या कहने के लिए रूपककथा, प्रतीककथा अथवा नीतिकथा का माध्यम हमारे भारतीय पाठकों व लेखकों के लिए नया नहीं है। पंचतन्त्र, हितोपदेश इत्यादि लघुकथा–संग्रहों से भारतीय पाठक भलीभाँति परिचित हैं। खलील जिब्रान ने भी इस माध्यम को लेकर अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। समस्त संसार के सुधी पाठक उनकी इन अप्रतिम रचनाओं के दीवाने है। खलील जिब्रान की अधिकतर लघुकथाएँ ‘दि मैडमैन’, ‘दि फॉरनर’, ‘दि वांडर’ एवं ‘सन एण्ड फोम’ इन चार संग्रहों में समाहित हैं। इन सभी पुस्तकों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में समय–समय पर अनुवाद होता रहा है। मराठी में काका कालेलकर, वि.स.खंडेकर, रं.ग. जोशी, श्रीपाद जोशी आदि। उर्दू में बशीर, गुजराती में शिवम सुन्दरम और हिन्दी में किशोरी रमण टंडन और हरिकृष्ण प्रेमी आदि। इन सभी लेखकों ने अपनी सोच एवं उद्देश्य को लेकर यह अनुवाद कार्य किया है। हिन्दी भाषा में जिब्रान की लघुकथाओं के जितने भी अनुवाद हुए हैं, उनमें अपवाद को छोड़कर कोई भी अनुवादक/रूपान्तरकार इन अर्थपूर्ण लघुकथाओं के साथ पूर्ण न्याय नहीं कर सका है। इस पृष्ठभूमि में सुकेश साहनी द्वारा किया गया अनुवाद अधिक सरस और पठनीय है। किसी भी अक्षर साहित्य का हूबहू अनुवाद असम्भव होता है। फिर भी ऐसी कालजयी रचनाओं की आत्मा को पहचानकर उसके शिल्प–सौन्दर्य को अनुवाद की भाषा में प्रस्तुत करना एक समर्थ लेखक के लिए एक अग्निपरीक्षा होती है। जिब्रान की लघुकथाओं का हिन्दी भाषा में सटीक एवं सरस अनुवाद कर सुकेश साहनी ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। जिब्रान की मूलत : अंग्रेजी में लिखी लघुकथाओं का अनुवाद उनके समक्ष ही उनकी मातृभाषा अरबी में हो चुका था। अरबी अनुवाद से अनुवादकों ने उर्दू में बेहतरीन तजुर्मान किए हैं। संस्कृत के विशेष नामों की तरह ही अरबी के विशेषनामों का शुद्ध रूप अंग्रेजी भाषा के माध्यम से हमेशा ठीक से समझा जा सकता है, कहना कठिन हैं। कई लघुकथाओं में जिब्रान द्वारा प्रयुक्त संज्ञाएँ बड़ी अर्थपूर्ण हैं।

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