Friday, 5 July 2013

‘मैं मैड्रिड से हेमिंग्वे बोल रहा हूँ’


मनीषा पांडेय

उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक ने अभी दस्तक ही दी थी कि पूरी दुनिया युद्ध की लपटों में जल उठी। यह शुरुआत थी - प्रथम विश्व युद्ध की। अमरीका का एक युवा पत्रकार, जिसने उस समय अपने करियर की शुरुआत ही की थी, युद्ध की रिपोर्टिंग कर रहा था। लेकिन शायद सिर्फ इतना उसकी तड़प को शांत करने के लिए काफी नहीं था। हालाँकि पिता इसके सख्त खिलाफ थे, लेकिन युवा पत्रकार ने सेना में भर्ती होने की ठान ली थी। वह युद्ध की विभीषिका को और नजदीक से देखना-महसूस करना चाहता था। लेकिन वह सेना में नहीं जा सका। उसकी दृष्टि कमजोर थी। वह सेना के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।
लेकिन उसके बाद इटली की सीमा पर रेड क्रॉस के कार्यकर्ताओं के साथ उसे दिन-रात घायलों की सेवा करते देखा गया। वह व्यक्ति अर्नेस्ट हेमिंग्वे था - उन्नीसवीं शताब्दी का एक महानतम लेखक और बुद्धिजीवी, जिसने आगे चलकर ‘द ओल्ड मैन एंड सी’, ‘ए फेयरवेल टू आर्म्स’ और ‘फॉर व्हूम द बेल टॉल्स’ जैसी उन अविस्मरणीय कृतियों की रचना की, जो मानव सभ्यता की इमारत में नींव का पत्थर हैं।
उन्नीसवीं सदी पूरी दुनिया में साहित्यिक और कलात्मक उत्थान की सबसे सुनहरी सदी थी। दो महायुद्धों की विभीषिका ने सभ्यता और सृजन में मनुष्य की आस्था को और गहरा किया। वही आस्था, जो तमाम संत्रासों के बावजूद हेमिंग्वे की रचनाओं में नजर आती है, जो अल्बेयर कामू के प्लेग में है, स्टीफेन ज्विग के उपन्यासों और रिल्के की कविताओं में है।
21 जुलाई, 1899 को शिकागो के उपनगर ओक पार्क में अर्नेस्ट मिलर हेमिंग्वे का जन्म हुआ था। हेमिंग्वे से अठारह महीने बड़ी एक बहन भी थी। बहुत कोमल और संवेदनशील माँ ग्रेस के गले में सुर था और हृदय में संगीत। लेकिन अठारहवीं सदी के सामंती समाज में एक स्त्री की नियति से लड़कर निकल पाना इतना आसान भी न था। पति और परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से लदा जीवन कठिन था। हालातों ने उसे मनोरोगी बना दिया था। हेमिंग्वे को कला के बुनियादी संस्कार अपनी माँ से ही मिले। लंबे-लंबे बालों वाले अर्नेस्ट को बचपन में माँ फ्रॉक पहनाकर और लड़कियों की तरह सजाकर रखा करती थी।
हेमिंग्वे कभी कॉलेज नहीं गए। मार्कशीट और नंबरों वाली पढ़ाई का उसके लिए कोई खास अर्थ नहीं था। इसके बजाय उसने ‘द कैनस सिटी स्टार’ में बतौर रिपोर्टर नौकरी कर ली, और यहीं से उसके लिखने की शुरुआत हुई। हेमिंग्वे ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गोला-बारूद और तोप की गूँजों के बीच युद्ध की रिपोर्टिंग की थी। लेकिन मृत्यु से उसका पहला साक्षात्कार बहुत भयावह था। इटली में मिलान की सीमा पर पहली बार उसने युद्ध के नृशंस परिणाम देखे। चारों ओर खून से लथपथ क्षत-विक्षत लाशें पड़ी थीं और उसने अपने हाथों से इन लाशों को ढोया। हालाँकि उसकी आने वाली जिंदगी में मृत्यु का यह भयावह मंजर कई बार दोहराया जाना था।

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