Tuesday, 22 September 2015

जयप्रकाश त्रिपाठी

जो है, क्या-क्या है, जो नहीं है, 
क्या नहीं है, मेरे पास, उनके पास...।
सब चेहरे, सब खुशियां, सब सुबहें उनके वश में,
उजियारे, रंग सारे, उनके मन में, उनके रस में,
जो भी है, सब वहीं है, उनके पास, उनके पास...।
सब कर्ज-कर्ज किस्से, सब दर्द-दर्द लम्हे,
जले सर्द-सर्द चेहरे, जो बुझे-से, मेरे हिस्से,
मेरे नाम सब उधारी, कई खाते हैं, बही है, 

मेरे पास, मेरे पास...।