Friday, 5 July 2013

बेबी हलधर की बेस्टसेलर ‘आलो अंधारी’


जब वह चार साल की थी, तो उसकी मां चली गयी. 12 साल की थी, तो शादी हो गयी. पति बात-बात पर उसेमारता-पीटता. किसी तरह छुटकारा मिला और 25 साल की उम्र में वह अपने तीन बच्चों को लेकर काम की तलाश में निकल पड़ी. काम जरूरी था, क्योंकि बच्चे भूखे थे. घरेलू नौकरानी का काममिला. यहां भी बदकिस्मती ने साथ नहीं छोड़ा. घर बदलता रहा, लेकिन किस्मत नहीं बदली. हर जगहशोषण की शिकार हुई. आखिर किस्मत को भी उस पर तरस आया और उसे एक रिटायर्ड शिक्षाविद व मुंशी प्रेमचंद के पोते प्रबोध कुमार के यहां काम मिला. जब भी वह उनकी किताबों की सेल्फ साफ करती, कुछ किताबें निकाल कर पढ़ने लगती. प्रबोध ने उसे देखा, तो बोले, क्यों नहीं तुम कुछ लिखना शुरू करती हो. उसे एक पेन और एक नोटबुक दिया और इस तरह शुरुआत हुई उस बेस्टसेलर बुक की, जिसे लिखनेवाली थी बेबी हलधर.
बेबी हलधर का जीवन शुरू से ही विपदाओं से भरा रहा, लेकिन उनके पढ़ने की आदत ने उन्हें एक घरेलू नौकरानी से सिलेब्रेटी राइटर तक पहुंचा दिया. बेबी ने अपनी बायोग्राफी में अपनी जिंदगी की घटनाओं को बहुत ही सपाट तरीकेसे लिखा है. तब उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि नोटबुक में लिखी उसकी कहानी कभी पुस्तकका भी रूप लेगी. वह तो घर के सारे काम निबटा करबच्चों को सुलाने के बाद रात के वक्त सिर्फ इसलिए लिखा करती थी, ताकि उसे खुद को अपना दुखड़ा सुना कर सुकून मिल सके. उनकी पुस्तक ‘आलो अंधारी’ 2006 में बंग्ला भाषा में प्रकाशित हुई, जिसका बाद में दूसरी भाषाओं में भी उसका अनुवाद हुआ. उस समय बेबी 31 साल की थीं. उनकी यह पुस्तक बेस्टसेलर साबित हुई. लिखने का काम उनका जारी है, लेकिन अभी भी उन्होंने प्रबोध के यहां काम करना नहीं छोड़ा है.
बेबी हलधर की जिंदगी कई मायने में आम लोगों के लिए सीख है. इतने संघर्षो के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और लिखने-पढ़ने के शौक को कभी बोझ न मानते हुए व्यस्तता के बीच भी समय निकाला और सबसे महत्वपूर्ण कि बेस्टसेलर पुस्तक की लेखिका बनने के बाद भी उसने अपना अतीत को याद रखा.

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