अल्केमिस्ट एक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास है। इसमें प्रतीकात्मक रूप से सुख क्या है और उसकी खोज कैसे की जाये उसके उपाय बताये गये है।सत्य ,यथार्थ तथा ईश्वर के अनेक स्तर व तल है। इन सब की परवाह किये बिना जिए । कीमियागर कभी पारस पत्थर कभी बना पाये या नहीं , आत्मा होती है या नहीं , सब कुछ निश्चित है या नहीं इस फेर में न पडे। इस पहेली को सुलझाने में सारा जीवन व्यतीत हो जायेगा। प्रकृति के सकेंतो को पढतें हुए , कर्म करते हुए , स्वीकार भाव से जिये। इस दौरान वह जान पाता है कि खजाना भीतर है, कहीं बाहर नहीं है। जीवन वर्तमान में एवं कर्म में है। इस कृति की तुलना हरमन हेस के ’’सिद्धार्थ’’से की जा सकती है। मैंने दो वर्षा में इस कृति को आठ-दस बार पढा हैे हर बार नये आयाम मेरे समक्ष प्रकट होता है। इसके बावजूद हर बार कुछ न कुछ छुट जाने का अहसास होता है ।
यह एक गडरिये सान्टियागों की खजाने की खोज की कहानी है जो असल में जीवन के उद्देश्य की पहचान और इसकी खोज से सम्बधं रखती हैं।इस यात्रा में उसका सामना मानसिक रूप से प्रेम-घृणा,सुख-दुख,सन्तोष-असन्तोस, सफलता-असफलता,से होता है। भौगोलिक रूप से उसका सामना विस्तृत रेगिस्तान ,पारस पत्थर, कीमीयागर, एवं पिरामिड से होता हैैै । इस यात्रा में उसे प्यार मिलता है-जिसमें प्रतिक स्वरूप दो औरतों से भेंट होती है। सच्चे प्रेम का अर्थ ईश्वर की बनाइ्र हर वस्तु से प्रेम करने से है। जब कोई अपनी सुविधा व स्वार्थ से उसकी बनाई एक वस्तु से प्रेम करता है और दूसरी से नफरत तो समझिए वह प्रेम कर ही नहीं रहा है। पे्रम सामंजस्य व सहयोग का जनक है जो अततः सृजन को जन्म देता है। स्वयं अस्तित्व भी प्यार है। प्यार दैहिक संबन्ध मात्र नहीं है। यह एक सहज घटना है । प्यार करने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती है।सकारण प्रेम कारण लुप्त होते ही लुप्त होे जाएगा।
कीमियागर बिना मेहनत छोटे रास्ते से लोहे से सोना बनाना चाहते थे । बिना काम किये जीवन का आनन्द खोजते थे। भौतिक वस्तुओं की नश्वरता देखकर आध्यात्मिक सत्य को जानने में व्यस्त थे।
इस उपन्यास कें सभी पात्र सजीव , दक्ष व अपनी भूमिका में रचे बसे लगते है। सबकी सोच अपने-अपने दृष्टिकोण से व्यावहारिक व वास्तविक है। इसे एक उपन्यास से बढकर धर्म ग्रन्थ या दर्शन शास्त्र कहे तो कोई बुराई नहीं हैै। इसकी कथा वस्तु अत्यंत रोचक व रहस्यमयी है। पात्रों का वर्णन जीवंत है। संवाद उम्दा व सटीक है। वातावरण सहज व वास्तविक लगता है। भाषा शैली विशिष्ट है। उपन्यास नियति के निष्पक्ष स्वीकारभाव और पुरूषार्थ के जरिए इसे पाने की शिक्षा प्रदान करता है।
किसी ज्ञान व विचार को मौलिक व नया कहना सही नहीं होगा। मेरी राय में समस्त ज्ञान व विचार पहले से मौजूद है। इन्हें सरल ,सहज, रोचक , और सुग्राहय बनाकर पेश करना लेखके का उद्देश्य हो सकता है जिसमें पाओलो कोयलो पूर्णतया सफल हुए हैं।
उपन्यास में दिल को छुने वाले कुछ वाक्यो को उदृत किये बिना मैं अपनी बात पुरी नहीं करना चाहता ।
’’अपनी नियति को पा लेना ही हमारा सबसे बडा धर्म है । बाकी सब चीजें एक जैसी है।’’
’’अगर तुम भय के अधीन हो गये तो फिर अपने दिल से बातचित नहीं कर पाओगें।’’
’’ जब तुम वास्तव में कोई वस्तु पाना चाहते हो तो सम्पूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद के लिए षंडयत्र रचती है।’’
’’ यह दुनिया तो ईश्वर का दृष्टिगोचर स्वरूप है। कीमियागरी के जरिये किसी भी स्युल पदार्थ को आध्यात्मिक स्तर पर उसके सम्पर्ण स्वरूप में ढाला जा सकता है। ’’ जब कोई तुम्हें प्यार करता है तो तुम्हारे सृजन की कोंई सीमा नहीं रहती । जब प्यार होता है, तो जो कुछ भी घटित हो रहा हो, उसे समझने की जरूरत नहीं पडती क्योंकि सब कुछ तो तुम्हारे भीतर घटित हो रहा होता है।
’’तुम खजाने को पा सको इसके लिए तुम्हे कुछ चिन्हों का अनुकरण करना होेगा । ईश्वर ने हर व्यक्ति के लिए पथ बनाया है। तुम्हें बस उन चिन्हो को पहचानना और समझना होगा जो उसने तुम्हारे लिए छोडे है।’’
’’खुशी पाने का राज है इस विश्व की सब सुन्दरतम् वस्तुओं को देखना और चम्मच वाली तेल की बून्दों को न भुलना।’’
’’बहुत साधारण दिखने वाली चीजें हमारे जीवन में असाधारण होती है, मगर इस बात को अक्लमंद लोग ही समझ पाते है।’’
’’तुम्हें हमेशा यह मालुम होना चाहिए कि तुम चाहते क्या हों?’’
कल मरना किसी और दिन मरने से बदतर नहीं है। हर दिन आता है रहने के लिए या फिर इस दुनिया से चले जाने के लिए । हर चीज एक ही वस्तु पर निर्भर करती है वह है ’’मकतूब!’’
’’ कुछ भी सीखने का एक ही तरीका है…..वह है कर्म।
’’ कीमियागरी और कुछ नहीं उस विश्वात्मा से तादात्म्य स्थापित करने की कला है और वह खजाना तुम्हारे लिए सुरक्षित रखा गया है कीमियागरी उसे पाने की विधि मात्र है। ( uthojago.wordpress.com से साभार)
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