भारत पहुंचने वाले पहले यूरोपीय नागरिक भले ही पुर्तगाल के वास्को डि गामा रहे हों लेकिन विविधताओं से भरे इस देश के बारे में किताब लिखने वाले पहले यूरोपीय लेखक लुडोविको डि वार्थेमा थे। उनकी ये किताब 'आइटिनरेरी' 1510 में रोम में प्रकाशित हुई। ये किताब इतनी पसंद की गई कि इसका 50 भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस किताब को पहली 'बेस्ट सेलर' यानी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब कहा जाता है। 16वीं सदी के शुरुआती सालों में भारत की यात्रा करने वाले डि वार्थेमा ने भारत का बेहद सजीव वर्णन किया। इस किताब की प्रति आज कल दिल्ली में चल रही एक प्रदर्शनी में रखी गई है। दिलचस्प बात ये है कि डि वार्थेमा ने भारत की यात्रा किसी व्यावसायिक या सैन्य उद्देश्य से नहीं की थी, बल्कि वो तो 1502 में अपने आनंद के लिए भूमध्य सागर में पूर्व की तरफ यात्रा पर निकल गए। डि वार्थेमा मिस्र, अरब प्रायद्वीप और फारस (ईरान) होते हुए भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचे। उन्होंने खंबाट, चौल, गोवा, मंगलौर, कालीकट, कोच्चि, श्रीलंका, बर्मा और उसके बाद जावा तक का दौरा किया। डि वार्थेमा की किताब में उस समय के भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक गतिविधियों और रहन-सहन को चित्रों के साथ दर्शाया गया है। इन चित्रों में सामूहिक स्नान करती महिलाओं, कन्ऩड़ रीति रिवाजों से होती शादी, खेतों में काम करते किसान और राजसी ठाट बाट को दिखाया गया है। डि वार्थेमा की मूल किताब की दुनिया में इस वक्त सिर्फ दो प्रतियां ही हैं। इनमें से एक इटली की राजधानी रोम में है और दूसरी उरबानिया शहर में। दिल्ली की प्रदर्शनी में इस किताब के विशेष संस्करण लाए गए हैं।
Friday, 5 July 2013
पहली बेस्ट सेलर बुक डि वार्थेमा की ‘आइटिनरेरी’
भारत पहुंचने वाले पहले यूरोपीय नागरिक भले ही पुर्तगाल के वास्को डि गामा रहे हों लेकिन विविधताओं से भरे इस देश के बारे में किताब लिखने वाले पहले यूरोपीय लेखक लुडोविको डि वार्थेमा थे। उनकी ये किताब 'आइटिनरेरी' 1510 में रोम में प्रकाशित हुई। ये किताब इतनी पसंद की गई कि इसका 50 भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस किताब को पहली 'बेस्ट सेलर' यानी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब कहा जाता है। 16वीं सदी के शुरुआती सालों में भारत की यात्रा करने वाले डि वार्थेमा ने भारत का बेहद सजीव वर्णन किया। इस किताब की प्रति आज कल दिल्ली में चल रही एक प्रदर्शनी में रखी गई है। दिलचस्प बात ये है कि डि वार्थेमा ने भारत की यात्रा किसी व्यावसायिक या सैन्य उद्देश्य से नहीं की थी, बल्कि वो तो 1502 में अपने आनंद के लिए भूमध्य सागर में पूर्व की तरफ यात्रा पर निकल गए। डि वार्थेमा मिस्र, अरब प्रायद्वीप और फारस (ईरान) होते हुए भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचे। उन्होंने खंबाट, चौल, गोवा, मंगलौर, कालीकट, कोच्चि, श्रीलंका, बर्मा और उसके बाद जावा तक का दौरा किया। डि वार्थेमा की किताब में उस समय के भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक गतिविधियों और रहन-सहन को चित्रों के साथ दर्शाया गया है। इन चित्रों में सामूहिक स्नान करती महिलाओं, कन्ऩड़ रीति रिवाजों से होती शादी, खेतों में काम करते किसान और राजसी ठाट बाट को दिखाया गया है। डि वार्थेमा की मूल किताब की दुनिया में इस वक्त सिर्फ दो प्रतियां ही हैं। इनमें से एक इटली की राजधानी रोम में है और दूसरी उरबानिया शहर में। दिल्ली की प्रदर्शनी में इस किताब के विशेष संस्करण लाए गए हैं।
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