Friday 5 July 2013

सोफियअन्द्रेयेव्ना तोल्स्तोया की डायरी


(प्रसिद्ध रूसी लेखक लियो तोल्सतोय की पत्नी की डायरी से : अनुवाद रूपसिंह चन्देल)

जनवरी १४, १८६३ : लेव की आध्यात्मिक गतिविधियां इन दिनों शांत प्रतीत हो रही हैं, फिर भी मैं जानती हूं कि उनकी आत्मा कभी नहीं सोती बल्कि सदैव नीतिपरक समस्याओं में व्यस्त रहती है.
जनवरी १७, १८६३ : अभी मैं गुस्से में थी. मैं उनसे उनकी प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति को प्यार करने प्रकृति के कारण नाराज थी, जबकि मैं चाहती हूं कि वह केवल मुझे ही प्रेम करें. इस समय मैं अकेली हूं और देख सकती हूं कि मैं पुनः दुराग्रही हो गयी हूं. यह उनकी सहृयता और भावप्रवण समृद्धता है जो उन्हें विशिष्ट बनती है. लेकिन जब उन्हें क्रोध आता है वह उग्र हो उठते हैं. तब वह मुझे इस सीमा तक परेशान और उत्पीड़ित करते हैं कि झुक जाने में ही मुझे मुक्ति मिल पाती है. लेकिन उनका क्रोध शीघ्र ही समाप्त हो जाता है और फिर वह बिल्कुल परेशान नहीं करते.
फरवरी २५, १८६५ : कल लेव ने कहा कि उन्होंने अपने को एक तरुण की तरह अनुभव किया और मैंने उनकी बात भलीप्रकार समझी-----उन्होंने कहा कि युवा अनुभव करने का अर्थ है कि सब कुछ उसकी सामर्थ्य में है. दुन्याशा कहती है कि वह बूढ़ी हो गयी है. क्या यह सच हो सकता है ? वह कभी प्रफुल्ल नहीं रहते. मैं प्रायः उन्हें नाराज कर देती हूं. उनका लेखन उन्हें व्यस्त रखता, लेकिन वह उन्हें सुख नहीं दे पाता.
मार्च ६, १८६५ : लेव चुस्त, प्रसन्न, स्वतंत्र, और एक संकल्प के साथ काम कर रहे हैं. मैं अनुभव करती हूं कि उनमें स्फूर्ति और सामर्थ्य है और मैं उन पर रेंगती एक मामूली कीड़ा हूं और उन्हें नष्ट कर रही हूं.
मार्च १५, १८६५ : मै भयानकरूप से उन्हें प्यार करती हूं. उनके साथ रहने वाला कोई उनके प्रति बुरा नहीं हो सकता. उनके आत्मज्ञान और सभी मामलों में उनकी ईमानदारी मुझे अपनी नजरों में गिरा देती है और मुझे आत्मविश्लेषण करने और अपनी रंचमात्र त्रुटियों को खोज लेने के लिए प्रेरित करती है.
मार्च २६, १८६५ : लेव की इच्छा एक कवि की भांति जीवन जीने और उसका उपभोग करने की है. मैं सोचती हूं कि ऎसा इसलिए है क्योंकि उनके अंदर मौजूद कविता अत्यंत सुन्दर, अत्यंत प्रचुर और अत्यंत अमूल्य है.
मार्च १२, १८६६ : मास्को में हमने छः सप्ताह बिताये. ७ को लौटकर लेव मूर्तिकला और जिमनास्टिक की कक्षाओं में गये. हमने दिलचस्प समय बिताया . लेव ने अपने चितकबरे घोड़े को सजाया.
जुलाई १९, १८६६ : हमारा एक नया कारिन्दा, अपनी पत्नी के साथ यहां आया हुआ है. वह युवा , सुदर्शना और निहिलिस्ट है. उसने और लेव ने साहित्य और दर्शन पर लंबी और जीवंत चर्चा की---- मैं कहना चाहूंगी---- बहुत लंबी और गैरजरूरी. निश्चित ही वह मुझे बोर और उसकी चाटुकारिता कर रहे थे.
अगस्त १०, १८६६ : कल बिबिकोव ने हमें एक भयानक कहानी सुनाई. सेन के एक लिपिक को अपने कम्पनी कमांडर के मुंह पर मारने के लिए गोली मार दी गई. कोर्ट मार्शल में लेव ने उसे बचाने का प्रयास किया, लेकिन दुर्भाग्य से बचाव, सामान्यतया, एक औपचारिकता से अधिक नहीं था.
जनवरी १२, १८६७ : लेव पूरी सर्दियों भर आवेश और क्षोभ सहित, कभी-कभी आंखों में आंसू भरे निरन्तर लिखते रहे.
मार्च १५, १८६७ : कल रात १० बजे हमारे वनस्पति उगाने के तापघर में आग लग गयी और जलकर वह धराशायी हो गया. मैं सो रही थी. लेव ने मुझे जगाया और मैंने खिड़की से लपटें देखीं. लेव ने माली के बच्चों और चीजों को वहां से हटाया ---- सभी पौधे (उन्हें उनके दादा ने लगाया था और जिन्होंने तीन पीढ़ियों को खुशी प्रदान की थी ) नष्ट हो गये थे. जो नष्ट नहीं हुए या तो उनपर बर्फ जम गयी थी अथवा वे झुलस चुके थे----- लेव को देख मुझे बहुत दुख हो रहा था, क्योंकि वह बहुत दुखी दिख रहे थे----. वह अपने पौधों और फूलों के प्रति बहुत अनुरक्त थे और उन्हें पर्याप्त समय देते थे. उनके लगाये पौधे जब फलने-फूलने लगे थे तब वह प्रसन्न हुए थे.
अक्टूबर ६, १८७८ : सुबह मैंने लेव को नीचे की मंजिल में डेस्क पर लिखते हुए पाया. उन्होंने कहा कि वह अपनी नयी पुस्तक के प्रारंभ को दसवीं बार पुनः लिख रहे थे. यह एक मुझिक (रूसी कृषक) द्वारा अपने मालिक के विरुद्ध चलाये गये मुकदमे की जांच-पड़ताल से प्रारंभ होता है. लेव ने मामले को रिकार्ड से सीधे लिया था, यहां तक कि तारीखें भी सही दी थीं. इस मुकदमें की कहानी सेण्ट पीटर्सबर्ग और अन्य स्थानों के किसानों और उनके मालिकों को चित्रित करती एक झरने की भांति बहती है.
अक्टूबर २३, १८७८ : शाम के समय लेव ने वेबर का सोनाटा और शुबर्ट बजाया, कुछ को वायलिन में-----. आज उन्होंने कहा कि उन्होंने इतनी अधिक ऎतिहासिक सामग्री पढ़ी है कि वह उससे थक गये हैं, और अब डिकेन्स की ’मार्टिन शुजविट’ (Martina Chuzzlewit) पढ़ते हुए आराम कर रहे थे. मैं जानती हूं कि जब लेव अंग्रेजी उपन्यासकारों की ओर उन्मुख होते हैं तब वह कुछ नया लिखने वाले होते हैं.
अक्टूबर २४, १८७८ : वह अभी तक लिख नहीं सके हैं. आज उन्होंने कहा : "सोन्या, यदि मैं लिखता हूं, तो उसे इतना बोधगम्य होना चाहिए कि छोटे बच्चे भी उसके प्रत्येक शब्द को समझ सकें.
नवम्बर १, १८७८ : कल सुबह लेव ने मुझे अपनी नयी पुस्तक का प्रारंभिक अंश पढ़कर सुनाया था. उनकी परिकल्पना स्पष्ट, गहन और रुचिकर है. यह एक किसान द्वारा जमीन के एक टुकड़े को लेकर अपने मालिक के विरुद्ध दायर एक मुकदमें से प्रारंभ होता है, फिर मास्को में प्रिंस चेर्निशेव और उनके परिवार के आगमन, और एक धर्मानुरागी वृद्धा के उद्धारक मन्दिर की आधार शिला रखने आदि को चित्रित करता है. शाम के समय अचानक लेव लंबे समय तक पियानो बजाते रहे. इस दिशा में भी वह बहुत प्रतिभा संपन्न हैं.
नवम्बर ४, १८७८ : लेव मुश्किल से ही कुछ लिखते हैं और उदास हैं----- मैं बच्चों को पढ़ाती हूं. लेव और मुझमें सेर्गेई को फ्रेंच पढ़ाने को लेकर बहस हुई. मैं मानती हूं कि उसे फ्रेंच साहित्य पढ़ना चाहिए, जबकि लेव ऎसा नहीं चाहते.
नवम्बर ११, १८७८ : लेव---- को शिकायत है कि वह नहीं लिख सकते. शाम के समय जब वह डिकेंस का ’डाम्बे एण्ड सन’ पढ़ रहे थे, अचानक मेरी ओर मुड़कर बोले, "आह, अभी क्या ही खूबसूरत विचार मुझे आया !" मैंने पूछा, वह क्या था, लेकिन उन्होंने बताया नहीं. फिर उन्होंने स्पष्ट किया, "मैं एक वृद्धा के विषय में सोच रहा हूं, वह कैसी दिखनी चाहिए, उसकी आकृति, उसके विचार, और विशेषकर----- उसकी अनुभूतियां. यही मुख्य बात है ---- उसका अनुभव करना. उदाहरण के लिए उसका पति गेरासिमोविच आधा सिर घुटाये जेल में बैठा है, जबकि वह निर्दोष है; यह अनुभूति एक क्षण के लिए भी उससे अलग नहीं होनी चाहिए.
नवम्बर ६, १८७८ : लेव ने आज कहा कि सब कुछ सुस्पष्ट होता जा रहा है. उनके चरित्र जीवन से ग्रहण किये गये हैं. आज उन्होंने काम किया और अच्छी मनःस्थिति में थे. वह जो कुछ कर रहे हैं उस पर विश्वास करते हैं. लेकिन उन्होंने सिर दर्द की शिकायत की, और उन्हें खांसी है.
मार्च २४, १८८५ : कल लेव क्रीमिया से वापस लौटे. वह विशेषरूप से उरूसोव के साथ गये थे , जो बीमार हैं. क्रीमिया में उन्हें सेवस्तोपोल के युद्ध की याद ताजा हो आयी थी. वह पहाड़ों पर चढ़े और समुद्र की प्रशंसा की. सिमीज जाते हुए, वह और उरूसोव उस स्थान से गुजरे जहां युद्धकाल में लेव अपनी तोप के साथ रुके थे. वहां उन्होंने केवल एक बार उसे दागा था. यह लगभग तीस वर्ष पहले की बात है. वह उरूसोव के साथ यात्रा कर रहे थे जब अचानक वह गाड़ी से नीचे कूद गये और कुछ देखने लगे. उन्हें सड़क के पास तोप का एक गोला दिखाई दे गया था. क्या वह वही गोला था जिसे सेवस्तोपोल युद्ध के दौरान लेव ने दागा था ! उस स्थान पर किसी और ने तोप नहीं दागी थी. उस क्षेत्र में केवल एक ही तोप थी.
जून १८, १८८७ : लेव हमारी दो बेटियों और कुजमिन्स्की की दो लड़कियों के साथ चहल-कदमी करते युए यसेन्की गये. दूसरी शाम उन्होंने घण्टॊं पियानो बजाकर अपना मन बहलाया. वायलिन पर मोजार्ट, वेबर और हेदन बजाया. प्रतीत होता था कि इससे उन्हें अत्यधिक आनंद प्राप्त हुआ था. अमेरिका में मिली अपनी सफलता से , अथवा कहना चाहिए कि जिस सहानुभूतिपूर्वक उनके काम को वहां स्वीकार किया गया , उससे वह अत्यंत प्रसन्न हैं. लेकिन सफलता और यश में उनकी बहुत रुचि नहीं है. आजकल वह अधिक ही प्रसन्न दिखाई देते हैं और प्रायः कहते हैं कि जीवन कितना अद्भुत है.
जुलाई २, १८८७ : शाम सेर्गेई वाल्ट्स (जर्मन नृत्य) नृत्य कर रहा रहा था. लेव अंदर आये और मुझसे बोले, "अब हमे नृत्य करने दो". युवाओं को आनंदित करते हुए हमने नृत्य किया. वह बहुत प्रफुल्ल और फुर्तीले हैं, लेकिन कमजोर हो गये हैं. जब वह घास लगाते अथवा टहलते हैं, जल्दी ही थक जाते हैं. स्त्राखोव के साथ विज्ञान , कला और संगीत पर उन्होंने लंबी चर्चा की. आज उन्होंने फोटोग्राफी पर भी चर्चा की.
अगस्त १९, १८८७ : कलाकार, रेपिन, यहां आए हुए थे. वह ९ को पहुंचे और १६ की शाम को गये. उन्होंने लेव निकोलायेविच के दो पोट्रेट बनाए. पहला नीचे की मंजिल में उनकी स्टडी में उन्होंने बनाना प्रारंभ किया, लेकिन रेपिन उससे असंतुष्ट थे और उन्होंने ऊपर की मंजिल पर ड्राइंगरूप में रोशनी की पृष्ठभूमि के सामने बनाना प्रारंभ किया. पोट्रेट अप्रत्याशित रूप से अच्छा है. वह अभी यहीं सूख रहा है. उन्होंने पहला बहुत तेजी से समाप्त किया था और उसे मुझे भेंट किया था.
शाम के समय लेव ने हम सभी को गोगोल का ’डेड सोल’ पढ़कर सुनाया.
दिसम्बर २८, १८९० : कल उहोंने (तोल्स्तोय) लेव (तोल्स्तोय का बेटा) को बताया कि उन्होंने ’क्रुट्जर सोनाटा’ लिखते समय किस प्रकार का साहित्यिक प्रयोग किया. उन्होंने कहा कि एक बार अभिनेता अन्द्रेयेव बुरलक ने, जो स्वयं एक अच्छे कथाकार हैं, उनसे --- एक कहानी लिखने का अनुरोध किया और बताया कि वह रेल में यात्रा करते समय एक ऎसे सज्जन से मिले थे जिसकी पत्नी उसके प्रति बेवफा थी. लेव निकोलायेविच ने उसी विषय का उपयोग करने का निर्णय किया था.
जनवरी १७, १८९१ : डिनर के समय हम मजाक कर रहे थे कि यदि सभी भद्र लोग एक सप्ताह के लिए नौकरों से अपना स्थान बदल लें तो कैसा रहे ! लेव नाराज हो गये और नीचे चले गये. मैं उनके पास गयी और पूछा क्या बात थी ? उन्होंने कहा, "अतिरस्करणीय विषय पर मूर्खतापूर्ण बातें ! मैं पर्याप्त बर्दाश्त करता हूं क्योंकि हम नौकरों से घिरे हुए हैं, और तुम उनका मजाक करती हो खासकर बच्चों के सामने. यह मुझे आहत करता है."
मार्च ६, १८९१ : डिनर के बाद, अभ्यास के लिए, छोटे बच्चों के साथ हम लेव के साथ खेलने लगे. प्रतिदिन डिनर के बाद लेव उन्हें घर के आस-पास ले जाते हैं. उनमें से एक को एक खाली बास्केट में बैठाते हैं, उसका ढक्कन बंद कर देते हैं और वहां से चले जाते हैं. कुछ देर बाद वह लौटकर आते हैं और पूछते हैं कि बास्केट के अंदर जो भी है, अनुमान लगाये कि वह किस कमरे में बैठा है.
मार्च २२, १८९१ : डिनर के बाद लेव और मैंने पियानो पर युगलवादन किया . शाम को सालीटेयर (ताश का खेल ) के बजाय, उन्होंने अविरंजित (कोरे) धागों का गोला मेरे लिए उछाला. सभी धागे उलझे हुए थे, और उन्हें सुलझाने के काम में वह गहराई से तल्लीन हो गये थे.
(अप्रैल २० के लगभग ) १८९१ : जार से मेरे मिलने जाने का लेव विरोध कर रहे थे. पहले वह और जार एक दूसरे की उपेक्षा करते रहे थे और अब मेरे कहने का प्रयास हमें क्षति पहुंचा सकता है और उसके अप्रिय परिणाम हो सकते हैं.
मई २२, १८९१ : हमारा इरादा शाम पढ़ने का था, लेकिन साहित्य, प्रेम , कला और पेण्टिंग के विषय में दिलचस्प चर्चा छिड़ गई थी. लेव ने कहा कि उस पेण्टिंग्स से घृणा उत्पन्न करने वाला कुछ और नहीं हो सकता, जिसमें कामुकता को चित्रित किया गया हो. उदाहरणस्वरुप एक सन्यासी का एक स्त्री पर दृष्टि रखना, अथवा क्रीमियन तातार द्वारा एक लड़की का घोड़े पर बैठाकर अपहरण करना, अथवा एक व्यक्ति का अपनी पुत्रवधू की ओर लंपटतापूर्वक देखना. ये बातें कैनवस में उतारे बिना ही जीवन में पर्याप्त बुरी हैं.
सितम्बर १९, १८९१ : नोवोये व्रेम्या समाचार पत्र की एक कटिंग के साथ लेस्कोय से एक पत्र प्राप्त हुआ. कटिंग का शीर्षक है -- " दुर्भिक्ष पर एल.एन.तोल्स्तोय के विचार." लेव निकोलायेविच द्वारा दुर्भिक्ष को लेकर लेश्कोव को लिखे एक पत्र में से लेश्कोव ने कुछ अंश प्रकाशित करवा दिए थे. अंश में कहीं कहीं भोंडें शब्द हैं और निश्चित ही उसे प्रकाशित करवाने की लेव की मंशा नहीं थी. इससे लेव दुखी थे. पूरी रात वह सो नहीं पाये, और अगली सुबह उन्होंने कहा कि दुर्भिक्ष के कारण वह अशांत रह रहे थे, कि अकाल-ग्रस्त लोगों के भोजन के लिए जन-भोजनालय खोले जाने चाहिए, कि मुख्य बात यह कि दुर्भिक्ष से निबटने के लिए निजी स्तर पर प्रयत्न किये जाने चाहिए और यह कि वह आशा करते थे कि मुझे आर्थिक सहयोग देना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह योजना का कार्य संभालने के लिए पिरोगोवो के लिए प्रस्थान करेंगे और उस विषय पर लिखेंगे. किसी को किसी विषय पर तब तक आलेख नहीं लिखना चाहिए जब तक उसने स्वयं उस विषय का अनुभव प्राप्त न किया हो और यह आवश्यक है, कि अपने भाई और उस क्षेत्र के आस-पास के जमींदारों के सहयोग से दो-तीन जन-भोजनालय खोलूं, जिससे उस विषय पर लिख सकूं."
अक्टूबर ८, १८९१ : अभी मैंने अपनी डायरी में पिछला उल्लेख देखा. मैंने लिखा था कि लेव और तान्या पिरोगोवो और दूसरे गांवों में अकाल की जानकार प्राप्त करने के लिए जा चुके थे. पिरोगोवो में उनके भाई सेर्गेई द्वारा निरुत्साह प्रदर्शित करने के बाद लेव और तान्या बिबीकोव के यहां गये और वहां दुर्भिक्ष के शिकार लोगों की सूची तैयार की. तान्या बिबीकोव परिवार में ठहर गयी जबकि लेव ने कुछ धनी महिलाओं के यहां जाने के लिए अपनी यात्रा जारी रखी और वहां से वह स्वेचिन के यहां गये. बिबीकोव और उन महिलाओं ने जन-भोजनालयों के विचार के प्रति ठण्डा रुख प्रदर्शित किया. कोई भी अपना पैसा देना नहीं चाहता. सभी अपने मामलों तक ही सोचते हैं. केवल स्वेचिन ने ही सहानुभूति प्रकट की.
लेव और तान्या पांचवें दिन वापस लौट आये, और २३ को एपीफैन उयेज्द के लिए रेल द्वारा माशा के साथ उन्होंने पुनः प्रस्थान किया. वे राफेल अलेक्जेयेविच पिसारेव के यहां ठहरे, जहां से उन्होंने प्रभावित (दुर्भिक्ष) गांवों में जांच-पड़ताल की. रायेव्स्की उनसे वहां आ मिले , और उन लोगों ने भूखे लोगों के लिए जन-भोजनालयों के विषय में चर्चा की. लेव ने तुरंत निर्णय किया कि वह अपनी दो पुत्रियों के साथ रायेव्स्की के यहां जाड़ा बिताने और जन-भोजनलाय खोलने के लिए चले जायें. उन्होंने, सौ रूबल, जो मैंने उनको यहां से जाने से पहले दिये थे, आलू और लाल शलगम खरीदने के लिए दिए.
मार्च २, १८९४ : क्या ही चमकदार धूपवाला दिन था. यह देख लेव निकोलायेविच ने विशेष उत्साहित भाव से दुनायेव के साथ मशरुम खरीदने बाजार के लिए प्रस्थान किया. उन्होंने बताया कि वह किसानों को मशरूम, शहद, करौंदा आदि बेचता हुआ देखना चाहते थे.
जून १, १८९७ : लेव निकोलायेविच कला के विषय में एक आलेख लिख रहे हैं और मैं डिनर के समय से पहले उनसे मुश्किल से ही मिल पाती हूं. तीन बजे उन्होंने मुझे घुड़सवारी पर चलने के लिए आमन्त्रित किया----- दुन्यायेव के साथ हम जसेका के खूबसूरत ग्राम्यांचल से होकर गुजरे. हम एक बेल्जियन कम्पनी द्वारा परिचालित अयस्क खदान के निकट रुके, और पुनः एक परित्यक्त बंजर स्थान (’डेड किंगडम’ ) पर ठहरे, और दर्रा से नीचे उतरे और फिर ऊपर चढ़े. लेव निकोलायेविच असाधारणरूप से मेरे प्रति सहृदय और भद्र थे.
जून ७, १८९७ : लेव निकोलायेविच ने ----- तान्या द्वारा नियमित मंगायी जाने वाली कला पत्रिका ’सैलोन’ में ड्राइंग देखते हुए प्रसन्नतापूर्वक शाम व्यतीत की.
जून १७, १८९७ : आज मरणासन्न मुझिक कोन्स्तान्तिन को देखने लेव निकोलायेविच दो बार गये थे.
जून १९, १८९७ : हम लोग लेव निकोलायेविच से मिले, क्योंकि वह उस व्यक्ति से मिलने जा रहे थे, जिसे खोद्यान्का दुर्घटना** पर कविता लिखने के लिए जेल में डाल दिया गया था. लेव निकोलायेविच व्यग्रतापूर्वक कला पर अपना आलेख लगातार लिख रहे हैं और उसे वे लगभग समाप्त कर चुके हैं. वह दूसरा कुछ भी नहीं कर रहे. शाम को रेव्यू ब्लैंच (Revue Blanche) से उन्होंने हमें एक फ्रेंच कॉमेडी पढ़कर सुनाई.
(** खोद्यान्का दुर्घटना १८ मई , १८६६ को घटित हुई थी. खोद्यान्सकोये के दलदले मैदान में निकोलस द्वितीय के राज्याभिषेक के अवसर पर उपहार प्राप्त करने के लिए हजारों की संख्या में एकत्रित लोग दलदले मैदाने में खराब बनी छत के ढह गिरने से कुचलकर मारे गये थे.)
जुलाई १५, १८९७ : इस समय सुबह के दो बजे हैं और मैं लगातार नकल (पाण्डुलिपि की ) तैयार कर रहीं हूं. यह भयानक रूप से थकाऊ और श्रमसाध्य कार्य है. बड़ी बात यह कि जो कुछ भी मैं आज नकल करूंगी, निश्चित ही उसे खारिज कर लेव निकोलायेविच कल पूरी तरह उसका पुनर्लेखन करेंगे. वह कितना धैर्यवान और अध्यवसायी हैं----- यह आश्चर्यजनक है.
अगस्त १, १८९७ : आज लेव निकोलायेविच ने तीन घण्टे तक रुचिपूर्वक लॉन टेनिस खेला, फिर घोड़े पर कोज्लोव्का चले गये. वह अपनी बाइसिकल पर जाना चाहते थे, लेकिन वह टूटी हुई थी. हां, आज उन्होंने बहुत लिखा, और सामान्यतया फुर्तीले, प्रसन्न और स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे. वह कितने असाधारण हैं.
अगस्त ५, १८९७ : शाम . लेव निकोलायेविच घोड़े पर ग्यासोयेदोवो उन परिवारों को पैसे देने गये जिनके घर जल गये थे. इन दिनों वह कसात्किन, गिन्त्सबर्ग, सोबोलेव, और गोल्डेनवाइजर के लिए कला पर अपना आलेख पढ़ रहे हैं.
दिसम्बर २१, १८९७ (मास्को) : आज सुबह लेव निकोलायेविच ने हमारे बगीचे की बर्फ की सफाई की और स्केटिगं की, फिर वह घोड़े पर सवार होकर वोरोब्वायी हिल्स और उससे आगे गये. किसी कारण वह काम करने की मनः स्थिति में नहीं हैं.
दिसम्बर २९, १८९७ : डिनर के बाद लेव निकोलायेविच और मैंने शुबर्ट का ट्रैजिक सिम्फनी बजाया . पहले उन्होंने कहा कि संगीत नीरस और निरर्थक है. फिर उन्होंने आनंदपूर्वक बजाया, लेकिन जल्दी ही थक गये.
जनवरी ६, १८९८ : लेव निकोलायेविच अभी तक भी काकेशस के जीवन और भौगोलिक स्थितियों ----- सभी कुछ का अध्ययन कर रहे हैं. शायद काकेशस सम्बन्धी कुछ लिखना चाहते हैं.
जनवरी ८, १८९८ : कल रात रेपिन ने हमारे साथ भोजन किया और पेण्टिंग के लिए कोई विषय सुझाने के लिए लेव निकोलायेविच से कहते रहे. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि मृत्यु से पहले अपने में बची ऊर्जा का वह भरपूर उपयोग पेण्टिंग के लिए करें और कुछ ऎसा महत्वपूर्ण करें जो उनके श्रम की सार्थकता सिद्ध कर सके. लेव निकोलायेविच अभी तक उन्हें कोई सुझाव नहीं दे पाये लेकिन उस विषय में निरंतर सोच अवश्य रहे हैं.
जनवरी २१, १८९८ : सोन्या ममोनोवा, लेव निकोलायेविच और मैं पूरे दिन साधारण जन के लिए एक ग्रामीण समाचार पत्र के विषय में चर्चा करते रहे. समाचार पत्र का उद्देश्य उनके पढ़ने के लिए कुछ रुचिकर सामग्री देना होगा. लेव निकोलायेविच ने इस विचार को इतनी गंभीरता से लिया कि उन्होंने सितिन (लोकप्रिय और पुनर्मुद्रित पुस्तकों के प्रकाशक) को आमन्त्रित किया कि आकर वह उस कार्य को सम्पन्न करने के लिए वित्तीय सहायता पर चर्चा करें.
जनवरी २६, १८९८ : अभी लेव निकोलायेविच आये और बोले, "मैं तुम्हारे साथ बैठना चाहता हूं," उन्होंने सात पाउण्ड के दो ’वेट’ दिखाये जिन्हें उन्होंने जिमनास्टिक व्यायाम के लिए आज ही खरीदा था. वह बहुत उदासीन हैं और कहते रहे ,"मैं एक सत्तर वर्षीय व्यक्ति जैसा अनुभव करता हूं." सच यह है कि वह अगस्त में सत्तर वर्ष के हो जायेगें, यही , अब से छः महीने बाद. आज अपरान्ह उन्होंने बर्फ साफ की और स्केटिंग किया. लेकिन मानसिक कार्य से वह थकान
अनुभव करते हैं, और यही सर्वाधिक उनकी चिन्ता का कारण है.
फरवरी १, १८९८ : कला पर बात करते हुए आज लेव निकोलायेविच ने बहुत से कामों का उल्लेख किया जिन्हें वह महत्वपूर्ण मानते हैं. उदाहरण के लिए ---- शेव्जेन्को का ’दि सर्वेण्ट गर्ल’ , विक्टर ह्यूगो के उपन्यास , क्राम्स्काई की मार्च करती हुई सेना और खिड़की से उसे देखती एक युवा स्त्री, बच्ची और धाय की ड्राइंग, साइबेरिया में सोते हुए अपराधियों और उनके साथ जाग रहे एक वृद्ध की सुरीकोव की ड्राइंग, और उन्ही की एक अन्य ड्राइंग जिसे उन्होंने लेव निकोलायेविच की कहानी ’गॉड नोज दि ट्रुथ’ के लिए बनाया था. उन्होंने एक मछुआरे की पत्नी की कहानी -- मुझे याद नहीं किसकी --- संभवतः ह्यूगो की -- का भी उल्लेख किया जिसके स्वयं अपने पांच बच्चे थे, लेकिन जिसने एक दूसरे मछुआरे की पत्नी के जुड़वां बच्चों को पालन-पोषण के लिए लिया था, प्रसव के दौरान जिसकी मृत्यु हो गयी थी. जब उस भली महिला का पति घर आया और उसकी पत्नी ने उन बच्चों की मां की मृत्यु के विषय में उसे बताया, वह बोला, "अच्छा , हमें उन बच्चों को घर ले आना चाहिए." उसके बाद उसकी पत्नी ने पर्दा हटाते हुए उसे दिखाया कि यह काम वह पहले ही कर चुकी थी. चर्चा में उन्होंने बहुत-सी अन्य बातों का उल्लेख किया.
फरवरी १६, १८९८ : शाम लेव निकोलायेविच ने शिलर का ’रॉबर्स’ पढ़ा, और उसे लेकर बहुत उत्साहित थे.
मार्च १४, १८९८ : कल एस.आई. तानेयेव हमारे यहां आए-------उन्होंने सुन्दर स्वर संगति के साथ पियानो बजाया और उसके विषय में लेव निकोलायेविच की राय जाननी चाही. बहुत गंभीरता और आदर के साथ लेव निकोलायेविच ने उनसे कहा कि उनकी स्वर-संगति में, जैसा कि सभी नये संगीत में है, राग, लय अथवा संगति का भी तर्क-संगत विकास नहीं है. कोई जैसे ही राग पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करता है, वैसे ही वह टूट जाता है, जैसे ही कोई लय पकड़ता है, वह बदल जाती है. व्यक्ति हर समय असंतोष अनुभव करता रहता है, जब कि वास्तविक कला में व्यक्ति ऎसा अनुभव नहीं करता. प्रारंभ से ही पदबन्ध अनिवर्य होता है.
अप्रैल १५, १८९८ : लेव निकोलायेविच ने घोषणा की इल्या के साथ रहने के लिए वह परसों देहात के लिए प्रस्थान करेंगे, क्योंकि शहरी जीवन उन्हें कष्टप्रद लगता है और यह कि जरूरमंद लोगों में बांटने के लिए उनके पास १४०० रूबल हैं.
अप्रैल २१, १८९८ : शाम के समय तानेयेव आ गये और उन्होंने और लेव निकोलायेविच ने अनेक दिलचस्प विषयों पर जीवंत बातें की. त्रुबेत्स्कोई भी आ मिले. उन्होंने कला, संगीत-शिक्षालय संबन्धी मामलों, जीवन की संक्षिप्तता और समय प्रबन्धन की योग्यता जिससे भले कामों में प्रत्येक मिनट का उपयोग हो सके और लोग और कार्य लाभान्वित हों सकें आदि विषयों पर चर्चा की.
जून १२, १८९८ : शाम के समय, लेव निकोलायेविच ने , जो बाल्कनी में बैठे हुए थे, हल करने के लिए हमें एक पहेली दी. उन्होंने अपनी मन पसंद घास काटने वाली समस्या दोहराई. वह इस प्रकार है :
घास के दो मैदान हैं. एक बड़ा और एक छोटा. घास काटने वाले बड़े मैदान में पहुंचे और पूरी सुबह घास काटते रहे. अपरान्ह समय, आधे काटने वालों को छोटे मैदान में भेज दिया गया. दिन समाप्त होने तक बड़ा घास का मैदान पूरी तरह काट दिया गया था, जबकि छोटे घास के मैदान में एक व्यक्ति के लिए पूरे एक दिन का काम शेष था.
तो कितने घास काटने वाले थे ? उत्तर है -- आठ. ३/४ काटने वालों ने बड़े और ३/८ ने अर्थात २/८ और १/८ ने, दूसरे शब्दों में, एक आदमी ने, दूसरे मैदान को काट लिया. यदि एक व्यक्ति १/८ है तब कुल आठ व्यक्ति होने चाहिए.
यह लेव निकोलायेविच की मनपसंद पहेली है और वह सभी को उसे हल करने में लगा देते हैं.
अगस्त २२, १८९८ : शाम लेव निकोलायेविच ने हम लोगों को ’दि मदर’, ’दि कूपन’, ’कुज्मिक - अलेक्जेण्डर प्रथम’ जैसे कहानी के विषय सुनाकर अत्यंत सजीव और प्रभावशाली ढंग से मनोरंजन किया.
अगस्त २२, १८९८ : सुबह लेव निकोलायेविच ने ’रेसरेक्शन’ पर काम किया और आज के अपने काम से बहुत प्रसन्न थे. जब मैं उनके पास गयी वह बोले, "वह उससे शादी नहीं करेगा.मैंने इसे समाप्त कर दिया. मैं निष्कर्ष के विषय में सुस्पष्ट हूं और इससे मुझे अच्छा अनुभव हो रहा है."
सितम्बर ११, १८९८ : लेव की बहन मारिया निकोलायेव्ना बहुत खुशमिजाज, स्नेही, सहृदय, और जिन्दादिल इंसान हैं. शाम बहुत देर पहले वह और लेव निकोलायेविच यहां अपने बचपन को याद कर रहे थे. वह बहुत मनोरंजक था. मारिया ने हमें बताया कि एक बार, जब लेव १५ वर्ष के थे, वे पिरोगोवो जा रहे थे और केवल प्रदर्शन के लिए वह ५ वर्स्ट (वेर्स्त) तक गाड़ी के पीछे दौड़ते रहे थे. घोड़े दौड़ रहे थे और लेव पिछड़े नहीं थे. जब उहोंने गाड़ी रोंकी तब उनकी सांस इस प्रकार फूल रही थी कि उन्हें देख मारिया फूट-फूटकर रो पड़ी थीं.
एक और समय अंकल युश्कोव की जागीर पानोवो के गांव कजान गुबेर्निया में कुछ युवा स्त्रियों को दिखाने के लिए कपड़ों सहित ही उन्होंने तालाब में छलांग लगा दी थी. अचानक उन्हें पता लगा कि पानी उनके सिर से बहुत ऊपर था और यदि किसी घसियारन ने अपना रस्सा डालकर उन्हें नहीं बचाया होता तो निश्चित ही वह डूब गये होते.
सितम्बर २८, १८९८ : मिखाइल स्ताखोविच ----- लेव निकोलायेविच ऑरेल से साथ आये. लेव निकोलायेविच अपने उपन्यास ’रेसरेक्शन’ के सम्बन्ध में वहां एक जेल देखने गये थे. वह उसमें गहनता से तल्लीन हैं. पाण्डुलिपि पर निरंतर काम कर रहे हैं और अनुवाद के लिए उसके अनेक अध्याय विदेश भेज चुके हैं. आज उन्होंने एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति से लंबी बातचीत की, जिसे एक बार हड़ताल में भाग लेने के कारण देश से निकाल दिया गया था और चार महीने उसने जेल में काटे थे. लेव निकोलायेविच उसकी कहानियों से मंत्रमुग्घ थे.
नवम्बर १४, १८९८ : अपने पति के कार्य के विषय में मैंने उनसे लंबी वार्ता की-----उन्होंने कहा कि ’युद्ध और शांति’ के बाद वह अपने अच्छे ’फार्म’ में नहीं हैं और ’रेसरेक्शन’ से बहुत अधिक संतुष्ट हैं.
दिसम्बर १६, १८९८ : लेव निकोलायेविच ने पुनः हमें जेरोम के. जेरोम (Jerome K. Jerome) पढ़कर सुनाया, और हंसे. हमने लंबे समय से उन्हें हंसते हुए नहीं देखा था.
जनवरी १४, १८९९ : हमने एक खूबसूरत शाम बितायी. लेव निकोलायेविच ने हमें चेखव की दो कहानियां सुनाईं -- ’डार्लिंग’ और दूसरी आत्महत्या के विषय में , जिसका नाम मैं भूल चुकी हूं, लेकिन मैं कहूंगी कि अपनी प्रकृति में वह निबन्ध अधिक थी.
जनवरी १७, १८९९ :लेव निकोलायेविच ने म्यासोयेदोव और बत्यर्स्काया जेल के जेलर का स्वागत किया, जिन्होंने जेल से संबन्धित तकनीकी पक्ष , कैदियों और उनके जीवन आदि के विषय में बहुत-सी सूचनाएं उन्हें प्रदान कीं. ’रेसरेक्शन’ के लिए यह सामग्री बहुत महत्वपूर्ण है.
जून २६, १८९९ : लेव निकोलायेविच ने एक ’स्नैग’ पर प्रहार किया : रेसरेक्शन में सीनेट ट्रायल का एक दृश्य. उन्हें एक ऎसे व्यक्ति की तलाश है जो सीनेट की बैठकों के विषय में बता सकता हो, और प्रत्येक के साथ अपनी मुलाकात को मजाक में कह सके. " मेरे लिए एक सीनेटर खोज दो." यह ऎसे ही है जैसे लेव निकोलायेविच दूर चले गये हैं: वह अकेले, पूरी तरह अपने काम में डूबे रहते हैं, अकेल टहलने जाते हैं, अकेले बैठते हैं, आधा भोजन समाप्त होने के समय नीचे आ जाते हैं, बहुत कम खाते हैं और पुनः गायब हो जाते हैं. कोई भी देख सकता है कि उनका मस्तिष्क पूरे समय व्यस्त रहता है और किसी न किसी तरह यह उनकी शुरूआत है. वह बहुत कठोर श्रम कर रहे हैं.
दिसम्बर ३१, १८९९ : १४ नवम्बर को, हमारी तान्या का विवाह मिखाइल सेर्गेई सुखोतिन से हुआ. हमने, उसके मां-पिता (तान्या के) ने उतना ही दुखी अनुभव किया जितना वान्या की मृत्यु पर किया था. लेव निकोलायेविच ने जब तान्या को गुडबॉय कहा तब वह रो पड़े थे----- वह इस प्रकार बिलख रहे थे मानो उनके जीवन का अत्यन्त प्रिय उनसे अलग हो रहा था.
तान्या का अभाव लेव निकोलायेविच को इतना खला और वह इतना अधिक रोये कि अंततः २१ नवम्बर को पेट और लिवर में तेज दर्द से वह बीमार हो गये. लगभग छः सप्ताह व्यतीत हो चुके हैं. अब वह स्वस्थ हो रहे हैं.
नवम्बर १३, १९०० : तान्या और उसका पति हमसे मिलने आये. लेव निकोलायेविच इतना प्रसन्न हुए कि उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास न करते हुए कहा, "तो तुम आ गयी ? यह अप्रत्याशित है ."
नवम्बर २४, १९०० : लेव निकोलायेविच एक पागलखाने के विक्षिप्तों के लिए आयोजित संगीत समारोह में उपस्थित रहे.
दिसम्बर ७, १९०० : लेव निकोलायेविच ग्लेबोव में आन्द्रेमेन द्वारा आयोजित २३ ब्लालाइका (गिटार की तरह का एक तिकोना रूसी तीन तारा वाद्ययंत्र) बजाने वालों के संगीत समारोह में आमंत्रित थे. उनके ऑर्केस्ट्रा में अन्य लोक वाद्ययंत्र यथा -- ’झेलीका’ और ’गुस्की’ भी शामिल थे.
यह बहुत मनोहर था, विशेषरुप से रूसी गायन, और शुमन वाल्ज वारम (Shumann Waltz Warum) भी. लेव निकोलायेविच ने उन्हें सुनने की इच्छा व्यक्त की और विशेषरूप से उनके लिए समारोह की व्यवस्था की गई थी.
फरवरी १२, १९०१ : हमने अपने घर में ९ को एक संगीत समारोह का आयोजन किया ---- जब अतिथिगण चले गये और लेव निकोलायेविच ड्रेसिंग गाउन पहन चुके और सोने के लिए जाने ही वाले थे, कि विद्यार्थियों, कुछ युवतियों और क्लिमेन्तोवा-मरोम्त्सेवा (जो ड्राइंग रूम में ठहरी हुई थीं) ने रूसी, जिप्सी और कामगारों के गीत गाना प्रारंभ कर दिया. वे हंस रहे थे और नाच रहे थे ---- लेव निकोलायेविच उनका उत्साह बढ़ाते हुए और अपनी पसंदगी व्यक्त करते हुए एक कोने में बैठ गये थे. वह उनके साथ लंबे समय तक बैठे रहे थे.
मार्च ६, १९०१ : कई घटनाओं के दौरान हम जन-सामान्य की भांति रहे बजाय घरेलू ढंग से रहने के . २४ फरवरी को चर्च से लेव निकोलायेविच का बहिष्करण संबन्धी समाचार सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ . फरमान को उच्चवर्ग ने रोष और सामान्यजन ने आश्चर्य और असंतोषपूर्वक ग्रहण किया. तीन दिनों तक लेव निकोलायेविच के सम्मान में जय-जयकार की जाती रही. ताजे फूलों से भरे टोकरे घर लाये जाते रहे, और उन पर तारों, पत्रों और संदेशों की वर्षा होती रही. लेव निकोलायेविच के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने और धर्म-सभाओं और आर्कबिशप के विरुद्ध रोष अभी तक समाप्त नहीं हुआ. उसी दिन मैंने एक पत्र लिखा और उसे पोबेदोनोत्सेव और विशप को भेजा. उसी रविवार, २४ फरवरी, को लेव निकोलायेविच और दुनायेव की लुव्यान्स्काया स्क्वायर पर अकस्मात भेंट हो गयी, जहां हजारों की संख्या में लोग एकत्रित थे. एक ने लेव निकोलायेविच को देख लिया और बोला, "वह जा रहा है, मनुष्य के रूप में शैतान." बहुत से लोगों ने मुड़कर देखा और लेव निकोलायेविच को पहचानकर चीखने लगे , "लेव निकोलायेविच -- हुर्रा---- लेव निकोलायेविच हुर्रा. अभिवन्दन , लेव निकोलायेविच. महान व्यक्ति को सलाम, हुर्रा."
भीड़ बढती गयी, आवाजें ऊंची होती गईं. घबडाये हुए कोचवान ने गाड़ी रोक दी.
अंत में एक छात्र गाड़ी के निकट आया. लेव निकोलायेविच और दुनायेव की उतरने में उसने सहायता की. भीड़ देखकर एक सशस्त्र घुड़सवार पुलिस वाला आगे बढ़ा, घोड़े की लगाम पकड़ उसे रोका और हस्तक्षेप करते हुए उसने उन्हें वापस गाड़ी में बैठा दिया.
कई दिनों तक मेरे घर में सुबह से शाम तक आने वालों की भीड़ के कारण उत्सवजनित कोलाहल होता रहा.
मार्च २६, १९०१ : एक महत्वपूर्ण दिन. लेव निकोलायेविच ने”जार और उनके एड्जूटेण्ट’ के नाम एक पत्र भेजा.
मार्च ३०, १९०१ : कल की बात है. हमने रेपिन के साथ खुशनुमा शाम व्यतीत की . उन्होंने कहा कि सेण्टपीटर्सबर्ग में पेरेद्विझिनिकी प्रदर्शनी में, जहां उन्होंने लेव निकोलायेविच का पोट्रेट प्रदर्शित किया हुआ है (अलेक्जेण्डर तृतीय म्यूजियम में ) वहां दो डिमांस्ट्रेशन हुए थे. पहले में अनेकों लोगों ने पोट्रेट के सामने फूल चढ़ाए थे. गत रविवार, २५ मार्च, १९०१ को , दूसरे में एक बड़ी भीड़ एक बड़े प्रदर्शनी कक्ष में एकत्र हुई थी. एक छात्र ने एक कुर्सी पर खड़े होकर पोट्रेट के फ्रेम के चारों ओर फूलों का गुलदस्ता रखा, फिर उसने प्रशंसापूर्ण भाषण दिया, जिसके बाद भीड़ चीखकर हुर्रा बोली और, मानों स्वतः, फूलों की वर्षा हुई. परिणामस्वरुप पोट्रेट को उतार लिया गया और उसे मास्को में प्रदर्शित नहीं किया जायेगा. अन्य प्रदेशों के विषय में कुछ नहीं कहा गया.
जुलाई ३, १९०१ : जून २७ की रात लेव निकोलायेविच अस्वस्थ हो गये------ आज उन्होंने मुझसे कहा, "मैं अब चौराहे पर खड़ा हूं, और आगे जाने वाला मार्ग (मृत्यु की ओर) अच्छा है, और पीछे (जीवन) का भी अच्छा था. यदि मैं अच्छा हो जाता हूं, तो यह केवल विलम्बन ही होगा." वह रुके, सोच में डूब गये, और फिर बोले, "लोगों से कहने के लिए अभी भी मेरे पास बहुत कुछ है."
जब हमारी बेटी माशा उनके लिए उनका बिल्कुल हाल में लिखा आलेख, जिसकी प्रतिलिपि एन.एन.घे ने अभी-अभी तैयार की थी, उन्हें दिखाने के लिए लेकर आयी, उसे देखकर वह ऎसा प्रसन्न हुए जैसे एक शय्यासीन बीमार मां अपने प्रिय नन्हें बच्चे को लाये जाने पर होती है. उन्होंने तुरंत घे से कहा कि वह उसमें किंचित परिवर्तन करें. कल उन्होंने दूर के एक गांव में अग्निकांड के शिकार लोगों के प्रति अपना विशेष सरोकार प्रकट किया, जिनके लिए उन्होंने कुछ दिन पहले मुझसे पैंतीस रूबल लिये थे, और जानना चाहा कि क्या कोई यहां आया था. उन्होंने मुझसे पूछा कि उनमें से क्या कोई सहायता के लिए आया था !.
जुलाई २२, १९०१ : लेव निकोलायेविच अब स्वस्थ हो रहे हैं.
कल शाम तुला से हमें एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसे निकोलई ओबोलेन्स्की ने हमारे लिए पढ़ा. वे सभी लेव निकोलायेविच के स्वास्थ्य-लाभ से प्रसन्न थे. उन्होंने उन्हें सुना, हंसे और बोले, "यदि पुनः मेरे मरने के लक्षण प्रकट हों, तो मुझे इस सबसे एक बार फिर गुजरना होगा. इस बार यह मूर्खों जैसा व्यवहार नहीं होगा. यह सब पुनः प्रारंभ होना, झुण्ड का झुण्ड लोगों, संवाददाताओं, पत्रों और तारों का आना, मेरे लिए शर्मनाक होगा---- सब छोटी-सी बात के लिए. नहीं, यह असंभव होगा. पूर्णतया अशोभन------."
----- कल, जब लेव निकोलायेविच ने कहा कि यदि वह दोबारा बीमार पड़ें, वह एक शालीन मृत्यु चाहेंगे. मैंने टिपणी की, ’वृद्धावस्था उकताऊ होता है. मैं भी जल्दी ही मर जाना चाहूंगी." इस पर लेव निकोलायेविच ने प्रबल विरोध करते हुए कहा, "नहीं, हमें जीवित रहना है. जिन्दगी इतनी अद्भुत है."
दिसम्बर ९, १९०१ (क्रीमिया, गास्वरा) : लेव निकोलायेविच के लिए हम सितम्बर ८, से यहां रह रहे हैं, लेकिन उनके स्वास्थ में अधिक सुधार नहीं है.
दिसम्बर २३, १९०१ : लेव निकोलायेविच अब बेहतर हैं. आज वह लंबी दूरी तक टहले और सीढि़यां चढ़कर मैक्सिम गोर्की से मिलने गये.
जनवरी १६, १९०२ : जार निकोलस द्वितीय को लिखे लेव निकोलायेविच के पत्र को तान्या ने फेयर किया और उसे ग्रैण्ड ड्यूक निकोलई मिखाइलोविच को डाक से भेज दिया. निकोलई मिखाइलोविच ने वायदा किया था कि परिस्थितियां अनुकूल देखकर वह उसे जार को दे देंगे. यह एक तीखा पत्र है.
जनवरी २५, १९०२ : निदान में बायें फेफड़े में सूजन पता चली है. यह दाहिने में भी फैल चुकी है. इस समय हृदय भी भलीभांति काम नहीं कर रहा है.
जनवरी २६, १९०२ : मेरे लेव निकोलायेविच मर रहे हैं ---- उन्होंने ये पंक्तियां कहीं किसी दिन पढ़ी थीं, "बूढ़ी औरत तड़प रही है, बूढ़ी औरत खांस रही है, बूढ़ी औरत के लिए यह उचित समय है कि वह अपने कफन में सरक जाये." वह जब इन पंक्तियों को दोहरा रहे थे तब उन्होंने इशारा किया कि उनका संकेत अपनी ओर ही था और उनकी आंखों में आंसू आ गये. फिर उन्होंने कहा, "मैं इसलिए नहीं रो रहा हूं कि मुझे मरना है, बल्कि मृत्यु की सुन्दरता पर रो रहा हूं."
जनवरी २७, १९०२ : आज मैं उनके पास गयी ---- और पूछा, "आप कष्ट में हैं ?" "नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूं " उन्होंने कहा. माशा बोली, "पापा, अच्छा महसूस नहीं कर रहे, नहीं ?" और उन्होंने उत्तर दिया, "शारीरिकरूप से बहुत खराब, लेकिन मानसिक तौर पर -- अच्छा, सदैव अच्छा ----." हमारे प्रति उनका व्यवहार सुखद और स्नेहमय है. ऎसा प्रतीत होता है कि हमारी देखभाल से वह प्रसन्न हैं, जिसके लिए वह कहते रहते हैं "शानदार, अत्युत्तम."
जनवरी ३१, १९०२ : कल उन्होंने तान्या से कहा, "उन्होंने एडम वसील्येविच (काउण्ट ओल्सूफ्येव) के विषय में क्या कहा ----- वह सहजता से मर गये थे. मरना इतना आसान नहीं है, यह बहुत कठिन है. इस सुविदित मनोदशा को निकाल देना कठिन है." उन्होंने अपने कृशकाय शरीर की ओर इशारा करते हुए कहा था.
फरवरी ७, १९०२ : उनकी स्थिति लगभग, कहा जाय यदि पूरी तरह से नहीं, तो भी निराशाजनक है. सुबह से उनकी नब्ज हल्की है और उन्हें कपूर के दो इंजेक्शन दिए गये ----- लेव निकोलायेविच ने कहा, "तुम लोग मेरे लिए अपना सर्वोत्तम कर रहे हो----कैम्फर और बहुत कुछ दे रहे हो---- लेकिन मैं फिर भी मर रहा हूं."
एक और समय, उन्होंने कहा, "भविष्य की ओर देखने का प्रयत्न मत करो, मैं स्वयं कभी ऎसा नहीं करता."
फरवरी २०, १९०२ : लेव निकोलायेविच अधिक प्रसन्न हैं. कल उन्होंने डॉ. वोल्कोव से कहा था ,"मुझे प्रतीत होता है कि मैं अभी रहने वाला हूं" मैंने उनसे पूछा, "आप जीवन से हतोत्साहित क्यों हैं ?" और अचानक उन्होंने उत्साहपूर्वक उत्तर दिया "जीवन से हताश ? कोई कारण नहीं ! मैं बेहतर अनुभव कर रहा हूं. " शाम को उन्होंने मुझे लेकर चिन्ता प्रकट की . मैंने कहा मैं थकी हुई हूं. मेरा हाथ दबाते और स्नेहपूर्वक मेरी ओर देखते हुए उन्होंने कहा, "प्रिये, तुम्हे धन्यवाद, मैं बहुत अच्छा अनुभव कर रहा हूं."
फरवरी २८, १९०२ : आज उन्होंने तान्या से कहा, "लंबे समय के लिए बीमार पड़ना अच्छा है. यह किसी को मृत्यु के लिए अपने को तैयार करने के लिए एक समय देता है."
फिर, पुनः वह तान्या से बोले, "मैं हर बात के लिए तैयार हूं. जीने के लिए तैयार हूं, और मरने के लिए भी तैयार हूं."
मार्च ११, १९०२ : लेव निकोलायेविच स्वस्थ हो रहे हैं---- उन्होंने कहा, "मैं एक कविता रच रहा हूं. पंक्तियां इसप्रकार हैं :
"मैं सब जीत लूंगा, सोना बोला."
मैंने उसे इस प्रकार व्यक्त किया :
"मैं कुचल और तोड़ दूंगा, सामर्थ्य बोला,
मैं पुनर्चना कर दूंगा, मस्तिष्क बोला."
जून २२, १९०२ (यास्नाया पोल्याना ) : आज हम क्रीमिया से घर वापस लौट आए.
अगस्त ९, १९०२ : लेव निकोलायेविच ’हाजी मुराद’ लिख रहे हैं और आज अच्छी प्रकार काम नहीं हुआ, ऎसा प्रतीत होता है. वह लंबे समय तक एकांतवास में बैठे, जो इस बात का संकेत है कि उनका दिमाग व्यस्त है और वह अभी तक नहीं समझ पाये कि वह क्या चाहते हैं.
अगस्त ११, १९०२ : लेव निकोलायेविच ने कहा कि लेस्कोव ने कहानी के लिए उनका ’प्लाट’ लिया, उसे तोड़ा-मरोड़ा और प्रकाशित करवा लिया. लेव निकोलायेविच का ’आइडिया’ इस प्रकार था : एक लड़की से बताने के लिए कहा गया कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है, सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय क्या है, और किस काम को सबसे महत्वपूर्ण समझती है. कुछ सोच-विचार के बाद उसने उत्तर दिया, इस क्षण सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति आप हैं, वर्तमान समय सबसे महत्वपूर्ण है, और इस क्षण आप जो काम कर रहे हैं, वही अच्छा और महत्वपूर्ण काम है.
फरवरी २०, १९०३ : लेव निकोलायेविच के पास एक मिलनेवाला आया है ---- एक बूढ़ा व्यक्ति जिसने निकलस प्रथम के अधीन एक सैनिक के रूप में कार्य कि था, काकेशस का युद्ध लड़ा था और अब वह उन्हें उन दिनों के संस्मरण सुना रहा है.
जुलाई १०, १९०३ : लेव निकोलायेविच निकलस प्रथम काल के इतिहास में डूबे हुए हैं और उन्हें जो भी हस्तगत होता है उसे एकत्रित कर रहे हैं और पढ़ रहे हैं. उस सबका प्रयोग ’हाजी मुराद’ में होगा.
जनवरी १४, १९०९ : आज मैंने ---- उस कहानी को फेयर करना प्रांरभ किया, जिसे लेव निकोलायेविच ने अभी पूरा किया है .
उसका थीम --- क्रान्तिकारी, मृत्युदंड और उनके उद्देश्य हैं. रोचक हो सकती है. लेकिन ढंग वही है ---- मुझिकों के जीवन का वर्णन. संदेह नहीं, वह क्रान्ति को काव्यात्मक बनाना चाहेंगे, बावजूद अपनी ईसाइयत के प्रति झुकाव के. वह निःसंदेह उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं, क्योंकि ऊंची हैसियत, अथवा सत्ता की क्रूरता से उन्हें घृणा है.
अप्रैल ७, १९१० : हम इससे क्रुद्ध हैं कि लेव निकोलायेविच को जेल में एक हत्यारे से मिलने की अनुमति नहीं दी गई. अपने लेखन के लिए उन्हें इसकी आवश्यकता थी.
अप्रैल १९, १९१० : गांव के पुस्तकालय के बाहर हमने ग्रामोफोन बजाया और उसे सुनने के लिए बहुत से लोग एकत्र हो गये. लेव निकोलायेविच ने किसानों से बात की. कुछ ने पुच्छलतारा के विषय में और कुछ ने ग्रामोफोन के डिजाइन के विषय में उनसे पूछा.
जुलाई ८, १९१० : लेव निकोलायेविच हमारे लिए एक नये फ्रेंच लेखक मिले की एक अच्छी कहानी पढ़कर सुनाई. कल उन्होंने हमारे लिए उसका "la luiche ecrassee" पढ़ा था, जिसे उन्होंने स्वयं पसंद किया था.
जुलाई २८, १९१० : आज शाम लेव निकोलायेविच ने हमारे लिए मिले की एक अच्छी छोटी कहानी "Le repos hebdomadaire" पढ़ी, जिसे उन्होंने स्वयं बहुत पसंद किया, और एक अन्य कहानी , "Le Secreta" पढ़ना प्रारंभ किया.
अक्टूबर १४, १९१० : लेव निकोलायेविच दॉस्तोएव्स्की का ’दि कर्माजोव ब्रदर्स’ (The Karamazova Brothers ) पढ़ रहे हैं और उन्होंने कहा कि यह बहुत खराब है. विवरणात्मक परिच्छेद अच्छे हैं, लेकिन संवाद निम्नकोटि के हैं. मानो दॉस्तोएव्स्की स्वयं बोल रहे हैं, न कि चरित्र. उनके कथन वैयक्तिक नहीं हैं.
अक्टूबर १९, १९१० : शाम के समय लेव निकोलायेविच ’दि करमाजोव ब्रदर्स’ पढ़ने में तल्लीन थे. उन्होंने कहा, "आज मैंने महसूस किया कि दॉस्तोएव्स्की में लोगों को क्या मिलता है ! उनके पास आश्चर्यजनक आइडियाज हैं." फिर उन्होंने दॉस्तोएव्स्की की आलोचना प्रारंभ कर दी और एक बार फिर कहा कि सभी चरित्र दॉस्तोएव्स्की की जुबान बोलते हैं ---- नितांत शब्दाडंबर.
सोफिया अन्द्रेएव्ना तोल्स्तोया की डायरी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण अंश
फरवरी १४, १८७० (यास्नाया पोल्याना) : एक दिन जब मैं पुश्किन की जीवनी पढ़ रही थी, मेरे मन में आया कि मैं भावी पीढ़ियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती हूं, जो लेव निकोलायेविच तोल्स्तोय के जीवन के विषय में कुछ जानना चाहेगें. मैं न केवल उनके दैनन्दिन जीवन, बल्कि उनकी मनोदशा का रिकार्ड रख सकती हूं ---- कम से कम जितना मेरी सामर्थ्य में है. यह विचार मेरे मन में पहले भी उत्पन्न हुआ था, लेकिन तब मैं बहुत व्यस्त थी.
अब उसे प्रारंभ करने का उपयुक्त समय है .

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