Friday, 5 July 2013

दीवानों की तरह उनके पीछे पड़े पब्लिशर


10 करोड़ रुपये से ज्यादा रॉयल्टी

संजय खाती

यह शिव की कृपा है या स्टोरी का चमत्कार? या फिर हमने ही पुराने मिथकों में कुछ नया तलाश लिया है? अमीश त्रिपाठी सच में पहले इंडियन राइटर हैं, जिन्हें एक फिल्म स्टार जैसी पॉप्युलैरिटी हासिल हुई है। चेतन भगत उनसे पहले काफी नाम कमा चुके हैं, लेकिन अमीश की कलम के लिए पब्लिक की दीवानगी नई मिसालें कायम कर रही है। 36 बरस के अमीश आईआईएम के ग्रेजुएट हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी का सफर राइटिंग की ओर मोड़ लिया। आज शिव गाथा की उनकी तीन किताबें (मेलुहा के मृत्युंजय, नागाओं का रहस्य और वायुपुत्रों की शपथ), जिन्हें शिवा ट्रिलॉजी कहा जाता है, उन्हें 10 करोड़ रुपये से ज्यादा रॉयल्टी दिला चुकी हैं। अगली किताबों के लिए उन्हें अभूतपूर्व एडवांस ऑफर हुआ है। पब्लिशर दीवानों की तरह उनके पीछे पड़े हैं। फेसबुक और साइट पर हजारों लोग उनसे जुड़ रहे हैं और करन जौहर एक भव्य फिल्म बनाने की तैयारी में जुट गए हैं।
जिन लोगों ने शिवा ट्रिलॉजी नहीं पढ़ी है, उन्हें थोड़े में बता दूं कि यह शिव नाम के एक कबाइली हीरो की कहानी है, जो इंसान से भगवान तक का सफर तय करता है। शिव यहां अपनी पौराणिक गाथा से अलग एक नए एडवेंचर में दिखते हैं। कहानी में जबर्दस्त ड्रामा, सस्पेंस, एंटरटेनमेंट और झटकेबाजी है, जो पाठक को बांधे रखती है। लेकिन कहानी का वक्त आज का नहीं, हजारों बरस पहले का है, जब भारत में भगवान राम का बनाया हुआ मेलुहा साम्राज्य हुआ करता था। यानी यह शिव की मॉडर्न कथा नहीं है। इसे एक नया पुराण या मिथक कहा जा सकता है।
मिथक को नए तरह से कहने और यहां तक कि आज के जमाने से उन्हें जोड़ने का काम लिटरेचर में काफी होता रहा है। हिंदी में ही नरेंद्र कोहली रामकथा अपने तरीके से कह चुके हैं। इंग्लिश में अशोक बैंकर जैसे राइटर्स इस रास्ते पर चल चुके हैं। यहां तक कि दीपक चोपड़ा और दूसरे लोग कॉमिक्स के जरिए पुराण की कायापलट कर रहे हैं। लेकिन अमीश ने जो किया, वह अलग है। जैसा कि हमने कहा, वह शिव के ट्रडिशनल कैरेक्टर को एक बेहद मजेदार और नए पुराण के बीच रख देता है। यह काम करने से दूसरे लोग झिझक रहे थे। शायद इसलिए कि वे भारतीय परंपरा से ज्यादा खेलना नहीं चाहते थे। या फिर वे लिटरेचर के धीमे, गहरे और ईमानदार अनुशासन में बंधे थे।
अमीश के लिए ये बातें बेमानी थीं, क्योंकि वे लिटरेचर से नहीं आए। शिवा ट्रिलॉजी एकदम पॉप्युलर सीरीज है, जिसमें आपको हैरी पॉटर जैसी बुनावट तो नहीं, लेकिन किसी यंग एडल्ट स्टोरी जैसा मजा मिलता है। कहानी में वर्णन का बोझ नहीं है। जोर सस्पेंस और ठीक वक्त पर एक नया मोड़ दे देने पर है। और यह सब आसान भाषा में कहा गया है। यहां तक कि चेतन भगत भी इसके मुकाबले ज्यादा गहरे और मुश्किल लग सकते हैं। शिवा ट्रिलॉजी एक आम रीडर के लिए एकदम फिट है।
लेकिन क्या माजरा बस इतना ही है? नहीं। संयोग ही रहा होगा, लेकिन अमीश ने शिव को बिलकुल सही चुना। आप राम या कृष्ण के साथ इतनी आजादी नहीं ले सकते। ये पहले से ईश्वर के अवतार हैं और इनकी गाथा लीला के तौर पर बहुत कुछ मानवीय जमीन पर कही गई है। त्रिदेवों में बाकी- विष्णु और ब्रह्मा, एक हीरोइक कहानी में ठीक नहीं लगते। अकेले शिव ही हैं, जो माचो हैं, औघड़ हैं और रहस्यमय भी। इसीलिए वह इस धरती पर इतने ज्यादा रूपों और तरीकों से पूजे जाते हैं। वह किसी भी बेचैन और बगावती नौजवान के हीरो बन सकते हैं। वह इतने आजाद और अकेले हैं कि उन्हें पॉप कल्चर में आसानी से फिट किया जा सकता है। कांवड़ कल्चर के तौर पर आप इस अपील को देख सकते हैं।
लेकिन फिर भी हैरानी हुए बिना नहीं रहती कि प्यार और तकरार की लाल-गुलाबी कहानियों को हिट बना रही भारत की यंग जेनरेशन एकदम से किसी मिथकीय किस्से पर मर मिटे, जो नई कहानी के बावजूद है तो पुराना ही। ऐसा कैसे हुआ? मुझे लगता है एक और बात यहां काम कर रही है। वह यह कि अपने विदेशी साथियों की तरह इंडियन यूथ भी धर्म से नई पहचान बना रहा है। आपने नोट किया होगा कि तमाम तरक्की और टेक्नॉलजी के बावजूद आस्था इस जेनरेशन से गायब नहीं हुई है, बल्कि वह पिछली पीढ़ी जितनी ही मजबूत है। फर्क है तो यह है कि कर्मकांड एकदम पहले जैसे नहीं रहे। युवा मॉडर्न तरीके से अपनी आस्था जता रहा है। मेलुहा में उसे अपनी चाहत और मिजाज के लायक शिव के दर्शन हो रहे हैं। यह शिव उसे इसलिए भी पसंद होंगे कि वे एक तानाशाह ईश्वर नहीं, हमारी तरह सहज मनुष्य हैं।
इस सहज मनुष्य से युवा जुड़ा महसूस कर रहे हैं या हमारे ईश्वर बदल रहे हैं?

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