श्रुति अग्रवाल
कहते हैं जिस भाषा में हम स्वप्न देखते हैं या जिस भाषा में अपना दुःख व्यक्त करते हैं वही हमारी अपनी भाषा होती है। उसी भाषा में व्यक्त की गई संवेदनाएँ हमारे अंतर्मन को गहराई से छू सकती हैं...इससे हमारा लगाव और जुड़ाव इस कदर होता है कि हम भले ही किसी दूसरी भाषा का जामा पहन लें लेकिन इसे खुद से जुदा नहीं कर सकते ।
आधुनिक युग की नींव योरपीयन और पश्चिमी साहित्य ने रखी है। उनका यह भी मानना था कि हिन्दुस्तानी लोग पश्चिमी साहित्य के गूढ़ वाक्यों में छिपे जिंदगी के अनूठे रहस्यों को तभी समझ पाएँगे जब ये साहित्य उन्हें उनकी अपनी भाषा अर्थात हिन्दी में उपलब्ध होगा।
अनगढ़ शब्दों के कुशल रचियता आलोक श्रीवास्तव इस कथन की सत्यता पहचानते थे। साथ ही वे मानते थे कि आधुनिक युग की नींव योरपीयन और पश्चिमी साहित्य ने रखी है। उनका यह भी मानना था कि हिन्दुस्तानी लोग पश्चिमी साहित्य के गूढ़ वाक्यों में छिपे जिंदगी के अनूठे रहस्यों को तभी समझ पाएँगे जब ये साहित्य उन्हें उनकी अपनी भाषा अर्थात हिन्दी में उपलब्ध होगा।
इसी विचार के बाबद उन्होंने नींव रखी ‘संवाद प्रकाशन’ की, जिसके तहत वे अब तक 100 से ज्यादा विदेशी उपन्यासों का हिन्दी भाषा में अनुवाद करवा चुके हैं। इस पहल के कारण ऐसे सुधी पाठक जो इंग्लिश या अन्य यूरोपियन भाषा का अच्छा ज्ञान नहीं रखते, वे उनके साहित्य से रू-ब-रू हो पाए।
वेबदुनिया से बातचीत में आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि अब तक अनुवादित हो चुकी किताबों में से कुछ ऐसी हैं, जो उनके दिल के बेहद करीब हैं। इनमें पश्चिम के आधुनिक नृत्य-कला को जन्म देने वाली इजाडोरा डंकन की आत्मकथा 'माय लाइफ' शामिल है। इजाडोरा ने अपनी इस आत्मकथा में खुद की जिंदगी को बेहद खूबसूरत शब्दों में पिरोया है, जिस पर उसके व्यक्तित्व और कवि मन की गहरी छाप नजर आती है।
वहीं आलोक के प्रयासों के कारण फ्रांस के प्रसिद्ध साहित्यकार विक्टर ह्यूगो का ला-मिजाराबेल नामक उपन्यास भी हिन्दी भाषा में उपलब्ध है। गौरतलब है कि इस उपन्यास ने विश्व पटल के अनेक महान नेताओं को उनके जीवन का मकसद दिखाया है। इसके अलावा उनके पास एक लंबी फेहरिस्त है जिसमें विश्व की बेहतरीन किताबें शामिल हैं।
अपने अथक प्रयासों के बाद भी आलोक अपनी उपलब्धियों से खुश नहीं हैं। उनके दिलो-दिमाग में ऐसी कई किताबें छाई हुई हैं जिनको वे हिन्दी भाषा में अनुवादित करवाना चाहते हैं। लेकिन इनमें से कुछ को वे समय और पूँजी की कमी के कारण तो कुछ को कॉपीराइट एक्ट के कारण हिन्दी में अनुवादित नहीं कर पा रहे हैं।
इसके साथ ही उन्हें हिन्दी जगत के पाठकों से भी खेद है कि वे पुस्तकों की महत्ता नहीं समझते ...अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी में पाठक संख्या बेहद कम है। इसके साथ ही ऐसा कोई जरिया भी नहीं जहाँ बेहतरीन हिन्दी साहित्य को लोगों तक पहुँचाया जा सके।
इसके साथ ही उन्हें हिन्दी जगत के पाठकों से भी खेद है कि वे पुस्तकों की महत्ता नहीं समझते ...अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी में पाठक संख्या बेहद कम है। इसके साथ ही ऐसा कोई जरिया भी नहीं जहाँ बेहतरीन हिन्दी साहित्य को लोगों तक पहुँचाया जा सके। रेलवे स्टेशन के व्हीलर पर सस्ता साहित्य पसंद किया जाता है वहीं सर्वोदय के स्टॉल पर गाँधीवादी और आध्यात्म का संसार ही नजर आता है।
इन सबके बीच हिन्दी साहित्य में चल रहा घटनाक्रम आम लोगों के बीच सही तरह से पहुँच ही नहीं पाता, लेकिन इन सभी नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद आलोक का रचनात्मक सफर जारी है...उन्हें विश्वास है कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब हिन्दी में सुधी पाठकों की संख्या में खासा इजाफा होगा। और यूरोप का ऐसा साहित्य जिसने यूरोप में जागृति की अलख जगाई थी। उसके प्रकाश से हिन्दुस्तान भी रोशन होगा। और वे गाब्रिएल गार्सिया मार्खेज की लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा और हेमिंग्वे की आत्मकथा जैसी खूबसूरत किताबों को भी हिन्दी में अनुवादित करवा पाएँगे।
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