Friday, 12 July 2013

पुस्तक प्रकाशन का ई ऑप्शन


बालेंदु शर्मा दाधीच

जस्ट जिंदगी के लेख ऐसे बनें राइटिंग के किंग में हमने बताया कि परंपरागत तरीके से किताब कैसे छपवाई जा सकती है। इसके अलावा आपके पास ई-बुक छपवाने का ऑप्शन भी है, जिसके जरिये आप लाखों रीडर्स तक पहुंच सकते हैं।
क्या आपने ई. एल. जेम्स का नाम सुना है या फिर अशोक बैंकर का? ई. एल. जेम्स ब्रिटिश लेखक हैं, जिनकी 'फिफ्टी शेड्स' किताबों की सीरीज ने इन दिनों दुनिया भर में धूम मचा रखी है। इस सीरीज की पहली दो किताबों की लाखों कॉपी बिक चुकी हैं और वह भी ई-बुक फॉर्मैट में। अशोक बैंकर भारत के ही लेखक हैं, जिन्होंने 12 भाषाओं में 70 किताबें रिलीज की हैं और भारत के बेस्टसेलर ई-बुक लेखक हैं। कैरी विल्किन्सन, ली चाइल्ड, जेम्स पेटरसन, स्टीग लारसन जैसे विदेशी लेखकों से लेकर शशि थरूर, चेतन भगत, रोमिला थापर, सुनील खिलनानी, मार्क टली, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, आर. के. नारायण और सिद्धार्थ देव जैसे लेखक ई-बुक्स को अपना चुके हैं। अगर आप भी लेखक हैं और संभावनाओं से भरी रोमांचक वर्चुअल दुनिया के रीडर्स तक पहुंचना चाहते हैं तो आपकी ई-बुक के लिये यह सही मौका है।

इतनी खास कैसे

जिस रफ्तार से डिजिटल तकनीकों का फैलाव हो रहा है और लोगों की मसरूफियत बढ़ रही है, उसमें ई-बुक्स की लोकप्रियता का बढ़ना तय है। लोगों के पास किताबें खरीदने के लिए बुकस्टोर तक जाने का वक्त नहीं है और न ही इत्मीनान से किताब पढ़ने की फुरसत। ई-बुक्स को इंटरनेट से डाउनलोड करना कुछ क्लिक्स का ही काम है, इसलिए किताब खरीदने की सहूलियत बहुत है। ये छपी किताबों की तुलना में सस्ती भी हैं और कई तरह के सुविधाजनक सबस्क्रिप्शन मॉडल्स उपलब्ध हैं। दुनिया में किताबों के सबसे बड़े ऑनलाइन स्टोर अमेजन डॉट कॉम की अमेरिका और ब्रिटेन शाखाओं ने अप्रैल और अगस्त में जारी अपने सालाना आंकड़ों में बताया है कि उन पर बिकने वाली ई-बुक्स की संख्या छपी किताबों से ज्यादा हो गई है। ई-बुक्स का इतिहास मुश्किल से दस-पंद्रह साल का है और छपी किताबों का सैकड़ों साल का। ऐसे में ई-बुक्स की कामयाबी कोई छोटी चीज़ नहीं है।
डिजिटल पाठक वर्ग को अब कोई अनदेखा नहीं कर सकता। इसीलिए पेंग्विन इंडिया ने हाल ही में 250 ई-बुक्स जारी की हैं। हार्पर कॉलिन्स, पुस्तक महल, डीसी बुक्स वगैरह भी अपनी किताबें ई-बुक फॉर्मैट में रिलीज कर रहे हैं। जब 70 फीसदी भारतीयों के पास मोबाइल फोन या दूसरी डिजिटल डिवाइस हैं तो प्रकाशक भी उन तक पहुंचना चाहेंगे और लेखक भी।

अनूठी दुनिया ई-बुक्स की

अगर आपने हैरी पॉटर की फिल्में देखी हैं तो इन फिल्मों में दिखने वाले खास अखबारों, किताबों में लगी तस्वीरों पर नजर जरूर गई होगी जो स्थिर नहीं बल्कि चलने-फिरने और बोलने वाली तस्वीरें हैं। बड़ी असंभव सी मगर दिलचस्प कल्पना है वह। लेकिन ई-बुक्स उसी कल्पना को सच कर रही हैं। ई-बुक में छपी किताबों जैसी सारी खूबियां (टेक्स्ट, चित्र, ग्राफ, कॉन्टेंट टेबल वगैरह) तो हैं ही, ऐसी भी कई खासियतें हैं जो किताबों के पास हो ही नहीं सकतीं। ये ऐसी किताबें हैं जिन्हें ज्यादा दिलचस्प और दमदार बनाने के लिए ऑडियो और विडियो भी शामिल किए जा सकते हैं। पेजों को आपस में लिंक करने की सुविधा भी है।

ई-बुक्स की खासियतें

- टेक्स्ट और चित्रों के साथ-साथ ऑडियो-विडियो भी शामिल करना मुमकिन।
- तकनीकी अनुवाद सुविधाओं का इस्तेमाल मुमकिन।
- टेक्स्ट टु स्पीच के जरिए किताबों की सामग्री सुनी जा सकती है।
- छपी किताबों की तुलना में सस्ती।
- डाउनलोड के जरिए तुरंत उपलब्ध, डाक से डिलिवरी की जरूरत नहीं।
- एक ही डिवाइस में हजारों ई-बुक रखना संभव।
- दूसरे पाठकों से नोट्स साझा करना संभव।
- पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल, कागज-स्याही का इस्तेमाल नहीं।
- टेक्स्ट को छोटा-बड़ा करने की सुविधा।
- भीतर की सामग्री को सर्च करना संभव।
- पारंपरिक किताबों की ही तरह बुकमार्क करना संभव।
- लाखों ई-बुक्स बिल्कुल फ्री उपलब्ध।
- पुरानी किताबों को हमेशा के लिए सहेजना संभव।
- कभी भी आउट ऑफ प्रिंट नहीं होतीं।
- भविष्य में सामग्री को अपडेट या संशोधित करना संभव।
- प्रकाशन पर लागत काफी कम।

ई-बुक के फॉर्मैट

आसान शब्दों में कहा जाए तो ई-बुक एक कंप्यूटर फाइल है, जिसे पढ़ने के लिए किसी डिजिटल डिवाइस की जरूरत पड़ती है। इन्हें पढ़ने के लिए किंडल, सोनी ई-बुक रीडर, बार्न्स ऐंड नोबल का नुक और कोबो ई-बुक रीडर जैसे खास रीडर्स उपलब्ध हैं। लेकिन आसानी से मिलने वाले ई-बुक रीडर ऐप्लिकेशंस का इस्तेमाल करते हुए इन्हें किसी भी तकनीकी डिवाइस पर पढ़ा जा सकता है, घर या दफ्तर के डेस्कटॉप कंप्यूटर और आई-पैड पर भी।
ई-बुक की फाइलों का कोई एक ही फॉर्मैट नहीं है बल्कि कई अलग-अलग डिजिटल डिवाइस और ऑपरेटिंग सिस्टमों के हिसाब से अलग-अलग फॉर्मैट में ई-बुक्स बनानी पड़ती हैं। अगर कोई किताब ई-बुक के रूप में रिलीज होती है तो वह कई फॉर्मैट्स में बनाकर रिलीज करनी होगी ताकि वह हर किस्म की मशीन का इस्तेमाल करने वाले पाठकों तक पहुंच सके। आईपैड, एंड्रॉयड टैब्लेट, माइक्रोसॉफ्ट विंडोज, ब्लैकबेरी स्मार्टफोन, किंडल वगैरह के लिए ई-बुक के अलग-अलग फॉर्मैट तैयार करने होते हैं।

ई-बुक, पीडीएफ और एमएस वर्ड

कुछ लोग समझते हैं कि किताब का पीडीएफ संस्करण बना दिया जाए, तो ई-बुक तैयार हो गई। कुछ और लोग सोचते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट वर्ड की फाइल भी ई-बुक के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। ई-बुक इन दोनों से पूरी तरह अलग है। पीडीएफ फाइल का आकार डिवाइस के आकार के हिसाब से बदलता नहीं है, जबकि ई-बुक लैपटॉप पर अलग, डेस्कटॉप पर अलग, ई-बुक रीडर पर अलग, टैब्लेट पर अलग और स्मार्टफोन पर अलग आकार में दिखाई देगी। इसका मतलब यह नहीं है कि अलग-अलग डिवाइस पर उसके हर पन्ने का आकार खींचकर छोटा, बड़ा या लंबा हो जाएगा। अगर आप उसे स्मार्टफोन पर पढ़ रहे हैं तो एक ही कॉन्टेंट कई पेज में बदल जाएगा जबकि डेस्कटॉप पर पढ़ते वक्त दो-तीन पन्ने मिलकर एक पेज में बदल जाएंगे, हालांकि अक्षरों का आकार पढ़ने लायक बना रहेगा। ई-बुक की सामग्री डिवाइस के मुताबिक फ्लो (लचीलापन) करती है।

डिलिवरी कैसे

ई-बुक की डिलिवरी के लिए डाउनलोड का तरीका भी अपनाया जाता है और सीडी-डीवीडी के जरिये भी वितरण किया जाता है। अपनी डिजिटल डिवाइस पर ई-बुक डाउनलोड करने के लिए पब्लिशर की वेबसाइट या फिर किसी ई-बुक मार्केटिंग वेबसाइट पर जाएं और मांगी गई रकम का क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर ई-बुक डाउनलोड कर लें। चूंकि ये डिजिटल फाइलें भर हैं इसलिए अपने पास मौजूद ई-बुक्स को ईमेल, फाइल शेयरिंग, सोशल नेटवर्किंग या दूसरे डिजिटल तरीकों से भी दूसरों को भेज सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि एक बार खरीदने के बाद आप उस ई-बुक की कितनी भी कॉपी दूसरों को दे सकते हैं। ई-बुक्स के भीतर डिजिटल राइट्स मैनेजमेंट (डीआरएम) की व्यवस्था होती है इसलिए उन्हें एक बार में एक ही शख्स इस्तेमाल कर सकता है। बिल्कुल उसी तरह, जैसे छपी किताबों के साथ होता है। ऐसा लेखकों के हितों की रक्षा के लिए है।

किसे फायदा

लेखक: ई-बुक्स से लेखकों के लिए इंटरनेट के जरिये बड़ा विश्वव्यापी बाजार खुल जाता है। इकॉनमी ऑफ स्केल (बड़े पैमाने पर बिक्री) का लाभ उठाकर कई ई-बुक लेखक करोड़पति बन गए हैं। पारंपरिक किताबों की तुलना में इंटरनेट पर बिकने वाली ई-बुक्स की संख्या की निगरानी करना भी आसान है क्योंकि इन्हें प्रफेशनल ढंग से बेचने वाली वेबसाइट उपलब्ध हैं, जैसे http://www.amazon.com/। लेखक छपी किताब के साथ-साथ उसका ई-बुक संस्करण भी निकालने लगे हैं, हालांकि लिखने, टाइपिंग आदि का खर्चा एक बार ही होता है। अपडेट करना आसान होने से आपकी ई-बुक हमेशा ताजा और प्रासंगिक बनी रहेगी।
ई-बुक प्रकाशकों के रूप में प्रकाशकों का एक नया वर्ग उभर रहा है, जो बेहद आसान शर्तों पर और फटाफट लेखकों की आकर्षक प्रफेशनल क्वॉलिटी की ई-बुक्स तैयार करके देते हैं। ये पुराने जमाने के प्रकाशकों से उलट है, जहां लेखकों को महीनों और कई बार बरसों चक्कर काटने पड़ते थे।
पाठक: पाठकों को भी ई-बुक्स से बहुत फायदा है क्योंकि ये न सिर्फ सस्ती मिलती हैं बल्कि हमेशा सुलभ भी हैं। जिन किताबों के प्रिंट एडिशन खरीदना महंगा पड़ता है, उनके ई-बुक संस्करण आसानी से खरीदे जा सकते हैं। विदेशों में छपी मशहूर किताबों के छपे संस्करण मंगवाना भले ही मुश्किल हो, उनके ई-बुक संस्करण चुटकियों में खरीदे और पढ़े जा सकते है। सर्च और कॉपी-पेस्ट की सुविधा रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स के बहुत काम की है।
प्रकाशक: प्रकाशक अपनी किताबों के ई-बुक संस्करण जारी कर ऐसे बाजार तक पहुंच सकते हैं, जहां पहले उनकी पहुंच नहीं थी। यह भौगोलिक सीमाओं से परे वर्चुअल बाजार है, जिसके लाभ वर्चुअल नहीं, बल्कि असली हैं। वे ई-बुक प्रकाशकों से व्यावसायिक गठबंधन कर ई-बुक क्रांति को अपने नुकसान की बजाय फायदे में बदल सकते हैं। छपी किताबों के उलट, इस फॉर्मैट में चाहे जितनी कॉपी बनाएं, कीमत में खास फर्क नहीं आता।

कुछ ई-बुक प्रकाशक

http://eprakashak.com/
pothi.com
http://dataoutsourcingindia.com/
http://www.suntecindia.com/
http://dataplusvalue.com/
http://www.ebookit.com/index.php

ई-बुक पर खर्च

सौ पेज की ई-बुक का पूरा पैकेज (पांच फॉर्मैट्स में ई-बुक निर्माण, दस ब्रैंडेड डीवीडी बॉक्स, दस ब्रैंडेड डीवीडी, कवर डिजाइन, ब्रैंडेड वेब पेज, सर्च इंजन सबमिशन और गाइडेंस, होम डिलिवरी) ई-प्रकाशक डॉट कॉम पर 4000 रुपये में उपलब्ध है। दूसरी वेबसाइटों पर यह 5500 रुपये से लेकर 9000 रुपये तक की दर पर मुहैया कराई जाती है।

डिस्ट्रिब्यूशन कैसे करें

ई-बुक्स को गूगल, ऐपल और अमेजन के ऑनलाइन स्टोर्स के जरिये तो बेचा ही जा सकता है, ई-कॉमर्स पोर्टलों, बुक-वेबसाइटों और अपनी निजी वेबसाइट के जरिये भी वितरित किया जा सकता है। ये ठिकाने तय कमिशन लेकर आपकी किताबों की लिस्टिंग करते हैं जहां से इच्छुक लोग तय रकम देकर उन्हें डाउनलोड कर लेते हैं। कुछ ठिकाने हैं:
- Amazon.com
-itunes.apple.com
-ebookstore.sony.com
-barnesandnoble.com
-kobobooks.com
-play.google.com
-ingramcontent.com
-flipkart.com
-ebay.co.in

कितनी हो किताब की कीमत

ई-बुक्स की कीमत छपी किताबों की तुलना में 10 से 50 फीसदी तक होती है। लेखक अगर अपनी ई-बुक की कीमत सौ रुपये से कम रखें तो बेहतर है क्योंकि ई-बुक के कॉन्सेप्ट के पीछे उनकी आसान उपलब्धता के साथ-साथ कम कीमत भी बड़ा पहलू है। हालांकि विदेशों में 100 डॉलर तक की ई-बुक्स दिखना भी कोई असामान्य बात नहीं है लेकिन आमतौर पर वहां भी आम ई-बुक्स की कीमत पांच-छह डॉलर यानी करीब 300 रुपये तक ही रखी जाती है। ज्यादा कीमत रखते हुए कम ई-बुक्स बेचें या फिर कम कीमत रखते हुए ज्यादा, फैसला लेखक को ही करना है। वैसे महंगी ई-बुक्स भी खूब दिखती हैं। अमेजन पर 15 हजार डॉलर (करीब आठ लाख रुपये) तक की कीमत वाली ई-बुक्स भी उपलब्ध है, लेकिन वे बहुत ही ज्यादा विशेषज्ञता वाले विषय पर आधारित किताबें हैं जिन्हें पेशेवर संस्थानों के बीच बेचने के लिए तैयार किया जाता है। (नवभारत टाइम्स से साभार)


2 comments: