Friday 12 July 2013

शब्दों पर किसका अधिकार, गूगल का?


टॉम चैटफील्ड

गूगल ने एक नई बहस छेड़ दी है स्वीडिश भाषा में आप किसी ऐसी चीज़ को क्या कहेंगे, जो किसी सर्च इंजन के इस्तेमाल के बावजूद इंटरनेट पर न मिले? इस सप्ताह तक आप ' क्लिक करें ओगूगलबार' कह सकते थे, जिसे क्लिक करें स्वीडन की भाषा परिषद ने भी मान्यता प्रदान की थी. ओगूगलबार को अंग्रेजी में मोटे तौर पर 'अनगूगलेबल' कहा जा सकता है. सामान्य ऑनलाइन सर्च के लिए गूगल को अपने नाम का इस्तेमाल किए जाने का विचार पसंद नहीं आया. कंपनी ने इसका अर्थ गूगल से विशेष तौर पर जोड़ने को सुझाव दिया. इसके बाद स्वीडन की क्लिक करें भाषा परिषद ने इस शब्द को आधिकारिक सूची से हटा दिया. वैसे तो यहां कई सारी बातें कही जा सकती हैं लेकिन साल का अधिकांश हिस्सा मैंने भाषा और तकनीक के बारे में किताब लिखते हुए गुज़ारा.‘अनगूगलेबल’ और इसके दूसरी भाषाओं में समानार्थकों ने हमारे समय के सबसे अहम भाषाई विकास को दिखाया है. वह है, बायनरी शब्दकोश का विकास.
उदाहरण के लिए, बस कुछ शब्दों और विचार को देखें. आप ‘लाइक’, या ‘अनलाइक’ कैसे करेंगे? ‘फेवरिट’, और ‘अनफेवरिट’ को भला कैसे व्यक्त करेंगे? आप ‘फॉलो’ या ‘अनफॉलो’ कैसे करेंगे, दूसरे लोगों को ‘फ्रेंड’ या ‘अनफ्रेंड’ कैसे करेंगे? या फिर, आप ऑनस्क्रीन बॉक्स को लगातार ‘क्लिक’ या ‘अनक्लिक’ कैसे करेंगे? शब्दों पर अधिकार को लेकर एक गंभीर लड़ाई हो रही है. लुई कैरोल के ‘एलिस थ्रू द लुकिंग ग्लास’ में एक पात्र भाषा को लेकर कुछ यूं कहता है, “जब मैं किसी शब्द का इस्तेमाल करता हूं, तो इसका मतलब बस वही होता है, जो मैं चाहता हूं. न कम, न ज्यादा.” कैरोल दरअसल एक अहम मुद्दा उठा रही थीं. भाषा वह चीज़ है, जो हम मिलकर बनाते हैं और हम ही अपने शब्दों के सही मायने भी चुन सकते हैं. गूगल, हालांकि इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता. गूगल इंटरनेट की दुनिया के उम्द सर्च इंजन में गिना जाता है. गूगल ने खेल बिगाड़ दिया है, जिससे एक अलग ही तरह के विवाद की शुरुआत हो गई है. उसका मानना है, “या तो आप गूगल का इस्तेमाल वैसे करो, जैसे हम चाहते हैं, या फिर आप उसका इस्तेमाल ही नहीं कर पाएंगे.” गूगल जैसी कंपनी को शब्दों की व्याख्या क्या उसी ढंग से नहीं करनी चाहिए, जैसा कि लोग उसे समझते हैं, या फिर कुछ मामलों में उसे नई परिभाषा का सुझाव देना चाहिए? आखिरकार, स्वीडन की भाषा-परिषद का भाषा को किसी भी तरह के प्रभाव से मुक्त रखने का बयान भी एकबारगी उतना प्रभावी नज़र नहीं आता. इंटरनेट की भाषा भले ही एक आम बायनरी बात लगती हो, लेकिन शब्दों के छिपे हुए अर्थ अधिक मायने रखते हैं, शायद.
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