Friday, 12 July 2013

इतिहास और उपन्यास


डॉ.शरद पगारे

उपन्यास जीवन की अभिव्यक्ति है। इतिहास अतीत के मानवीय क्रिया-कलापों का विश्लेषणात्मक लेखा-जोखा है। वह एक ऐसा आईना है जिसमें बीती हुई गतिविधियाँ और मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की छवि जस-की-तस प्रस्तुत होती है। दोनों केन्द्र में मनुष्य है। दोनों उसका अध्ययन करते हैं। उपन्यास का क्षेत्र साहित्यिक होने से कल्पना के यथार्थ का समन्वय उपन्यास में देखा जा सकता है। जबकि इतिहास को यह स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। वह पूर्णरूपेण सत्यों पर आधारित है। कल्पना के यथार्थ के लिये इतिहास में कोई गुंजाइश नहीं है। वह सत्य और केवल सत्य पर ही आधारित है। इन सत्यों का विश्लेशणात्मक अध्ययन करना ज़रूरी हो जाता है।
प्रत्येक देश का इतिहास शासकों राजा का है। प्रत्येक देश का इतिहास शासकों राजा-महाराजाओं और इतिहास पुरूषों को सामने रख कर ही लिखा गया है। आम आदमी के लिये उसमें जगह नहीं है। जबकि उपन्यास किसी भी पात्र को नायक-नायिका बनाकर लिखा जा सकता है। उपन्यास लेखन के लिये इतिहास पुरूष या नारी की आवश्यकता नहीं है। वस्तुत-कभी-कभी उपन्यासकार इतिहास के प्रेरणादायी व्यक्तियों को लेकर उपन्यास की रचना करते हैं। उन्हें वे ऐतिहासिक सत्यों के साथ कल्पना के यथार्थ की मिश्रण कर उसे रोचक और जीवंत बना देते हैं। उपन्यासकार को एक और छूट मिली हुई है - वह अपने पात्रों का मनोविश्लेषण और अन्तरद्वंद्व भी प्रस्तुत करता है। जबकि यह सहूलियत इतिहासकार को प्राप्त नहीं है। वह तो परिस्थितियों से प्रेरित और प्रभावित इतिहास के नायक-नायिकाओं पर समाज के पड़ने वाले प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्याँकन करता है।
इतिहास के पास प्रचुर सामग्री है, जिसका उपयोग समय-समय पर साहित्यकार करते रहते हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत के पास अमूल्य और विस्तृत ऐतिहासिक सामग्री है। मानव की आदिम सम्यता के जन्म से लेकर बीसवीं सदी तक भारतीय मनुष्य ने जो यात्रा की है उसका एक बड़ा दस्तावेज विरासत के रूप में हमारे पास है। इसके साथ ही भारतीय इतिहास की एक और विशेषता है, जहाँ उसके पास अखिल भारतीय सामग्री है वह आँचलिक और क्षेत्रीय इतिहास में भी लेखा-जोखा प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसका उपयोग समय-समय पर साहित्यकारों ने किया है।
न केवल भारतीय साहित्यकारों ने अपितु यूरोप के उपन्यासकारों ने भी ऐतिहासिक सामग्री का भरपूर दोहन किया है। यूरोपीय उपन्यासकारों ने सुदूर ही नहीं निकट अतीत की घटनाओं और पात्रों से प्रेरित होकर उपन्यास लिखे हैं । विश्व प्रसिद्ध उपन्यासकार चार्ल्सडिकिन्स ने फ्रांस की क्रांति से प्रभावित होकर दो शहरों की कहानी टेल ऑफ टू सिरिज नामक चर्चित उपन्यास लिखा। फ्रांसीसी उपन्यासकार एलिक्जेंडर डूरमा का नार्ट्रिडम का कुबड़ा और इस्टीफेन ज्वींग के मेरी क्वीन ऑफ स्कॉट एवं मेरी एन्टारनेट विश्व प्रसिद्ध उपन्यास हैं। रूस के महान उपन्यासकार टॉलस्टॉय ने फ्रेंच सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट को नायक बनाकर युद्ध और शांति नामक बहुप्रशंसित उपन्यास लिखा। यूरोप के ऐतिहासिक उपन्यासों के नाम तो और भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं परन्तु हम मूल विषय भारतीय इतिहास तक ही सीमित रहेंगे।
भारतीय उपन्यासकारों ने भी भारतीय इतिहास के पात्रों पर उपन्यास लिखे हैं। जैसा कि पूर्व में सूचित किया है, इस देश के इतिहास के पार बहमूल्य अकूत सामग्री है जिसका दोहन पूरी तरह से नहीं किया जा सका है। रांगेय राघव ने मोहन जोदड़ो के ऊपर उपन्यास लिखा। ईसा से भी 4 हज़ार वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी की मोहन जोदड़ो और हड़प्पा की सम्यता का विकास हुआ था। यहाँ प्राप्त सामग्री और काल्पनिक यथार्थ के मिश्रण से मुर्दों का टीला नामक उपन्यास लिखा गया।
इतिहास के पास वास्तविक नायक-नायिकाएँ हैं। इतिहास में रहस्य, रोमांच, रोमांस और रूमानियत की बहुलता है। उसमें राजसी वैभव, विलास तथा शानो-शौकत की कमी नहीं है। मैगास्थनीज ने नन्द और मौर्य सम्राटों की जीवन शैली तथा राजप्रासाद का जो विवरण दिया है, वह अद्भुत है। उसने लिखा है कि मौर्य सम्राटों का राजप्रसाद वैभव में सुना, एक बटना और ग्रीक रोमन शासकों के राजमहलों को भी मात करता है। उसने पाटलीपुत्र के जनजीवन का भी विस्तुत वर्णन किया है। गुप्त साम्राट हर्षवर्धन के समय पर भी विस्तृत समग्री मिलती है। मुगलकालीन बाबर नामा, हुमायू नामा, आइने अकबरी मिलती है। अकबर नाम से मुगलों की शानऔ-शौकत का पता चलता है। साथ ही ईसा पूर्व की 6 ठी-शताब्दी से लेकर मराठा काल तक प्रेम कथायें बिखरी हुई है जिनका उपयोग उपन्यास लेखन के लिये किया जा सकता है।
एक इतिहासकार का तो कहना है कि कथाओं की अपेक्षा ऐतिहासिक विवरण अधिक मनोहारी और रोमांचक होते हैं। क्योंकि वे मानवीय महत्वाकाक्षांओं प्रेम जैसी संवेदनाओं और विलासी प्रवृत्ति के परिचायक है।
इतिहास की इस सामग्री का प्रचुर उपयोग गुजराती के महान उपन्यासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने किया। उन्होंने गुजरात से और भारतीय इतिहास से सामग्री लेकर कालजयी उपन्यासों की रचना की है। इनमें बहुचर्चित बहुप्रशंसित और अनेक भारतीय, भाषाओं में अनुदित गुजरात के नाथ, जय सोमनाथ भारत का प्रमुख तथा राजाधिराज विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मेरा तो यह मानना है कि इस देश के प्रत्येक प्रांत के इतिहास में ऐसी ऐतिहासिक सामग्री है जिसका उपयोग उपन्यास लिखने में किया जा सकता है। बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार विमल मित्र ने भी निकट अतीत के इतिहास पर बहुचर्चित उपन्यास दिये है जिनमें ब़िकी कौड़ियों के मोल, साहब बीबी और गुलाम तथा इकाई-दहाई सैकड़ा प्रमुख है।
अमृतलाल नागर ने भी दक्षिण के एक ऐतिहासिक कथानक पर सुहाग के नूपुर उपन्यास प्रस्तुत प्रमुख है। दक्षिण के कर्नाटक में एक ऐतिहासिक प्रणय कथा 9 वीं शताब्दी में घटित हुई जिसमें मालवा के धार नरेश महाराज मुंज और कर्नाटक राजा तैलब की बहन राकुमारी मृणालवती के बीच का प्रेम प्रकरण है। मुंज को युद्ध में हराने के बाद तैलब उसे कर्नाटक ले आया और बन्दीगृह में डाल दिया। मृणालवती ने उससे भेंट की और यह भेंट प्यार में बदल गयी । इसका पता चलने पर तैलब ने मुंज की हत्या करवा दी। इस प्रकरण पर बहुत ही सुन्दर रोमांटिक और रोमांचक उपन्यास लिखे जाने की पूरी संभावना है।
वैदिककालीन राजा विश्वामित्र कौशिक का चरित्र अद्भुत है। उनकी जीवन रेखा में कई मोड़ दिखायी देते हैं। वे गाधीराज के पुत्र होने से क्षत्रिय थे परन्तु महर्षि वरिष्ट की लोकप्रियता और श्रेष्टता तपस्या के दौरान मेनका से उनका सम्बन्ध हुआ, जिससे शकुन्तला पैदा हुई। उसने महाराज दुष्यन्त से प्रेम विवाह किया। विश्वामित्र ने विश्वप्रसिद्ध गायत्री मंत्र की रचना की सत्यवादी हरीशचन्द्र की कठोर परीक्षा की। ययाति पुत्री माधवी से भी उनका सम्बन्ध हुआ। अपने तप के बल पर महाराज त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग भिजवा दिया। भगवान राम का विवाह उन्होंने करवाया। अतः इस अद्भुत चरित्र पर उपन्यास लिखे जाने की अपार संभावना है।
गुजरात के इतिहास में ऐसी पात्र की जानकारी मिलती है जिस पर उपन्यास लिखने की असीम संभावना है। 4 वीं शताब्दी में महाराज रामकरण सिंह वघेला गुजरात के शासक थे । उनकी महारानी कमल देवी अपूर्व सुन्दरी थी। राजकुमारी देवलदेवी अपनी माँ से भी ज़्यादा सुन्दरी थी। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर हमला किया। युद्ध में रामकरण सिंह वघेला हार गये। अपनी बेटी देवल देवी के साथ उन्होंने देवगिरी नरेश शंकर देव के यहाँ शरण ली। उधर कमल देवी हमलावरों के हाथ पड़ गई। उसे दिल्ली भेज दिया गया। अलाउद्दीन ने उसे हरम में दाख़िल कर लिया। कमल देवी केउकसाने पर अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी एक सेना भेजी। मुसलमानों को आता देख रामकरण ने अपनी बेटी की शादी राजकुमार सिंघन से कर दी। देवल देवी के सौन्दर्य से प्रभावित सिंघना भी उससे शादी करना चाहता था। रिवाज के मुताबिक देवल देवी जब देवी की पूजा करने मंदिर जाने लगी तब रास्ते में मुस्लिम सेना ने उसका अपहरण कर उसका डोला दिल्ली भेज दिया । सुलतान ने उसके विवाह अपने बेटे खिपर खान के साथ कर दिया। मलिक काफूर के दबाव में आकर सुल्तान ने खिपर खान और देवल रानी को ग्वालियर के किले में क़ैद कर लिया और अपने बेटे खेपर खान को अन्धा कर उसकी हत्या कर दी। देवल देवेी को दिल्ली लाया गया और उससे सुल्तान ने शादी कर ली। सुलतान के दूसरे बेटे ने मलिक काफूर की हत्या कर देवल रानी से निकाह किया। कुछ दिन बाद मुबारक शाह के गुलाम ने उसकी भी हत्या कर दी और देवल रानी से निकाह कर लिया। दिल्ली की इन हत्याओं और षड़यंत्रों से नाराज़ होकर लाहौर के सूबेदार गाजी दुगलक ने उस गुलाम को मार दिया और तुगलक राज्य की स्थापना की। देवल रानी इतिहास के अँधेरे में खो गयी। देवल रानी-खिजरखान की प्रणय कथा पर अमीर खुसरो ने एक ग्रन्थ लिखा । देवल रानी की सुन्दरता उसके लिये अभिशाप बन गयी। उसकी माँ कमल देवी ने जो त्रासदी सृजित की उस पर ऐतिहासिक उपन्यास लिखने की बहुत संभावना है। भारतीय इतिहास में इस प्रकार के अनेक पात्र मिलते हैं। उन पर ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जा सकते हैं।
ऐतिहासिक उपन्यास एक काल खंड या समय में विशेष अभिव्यक्ति करता है। कोई भी उपन्यास मात्र नायक-नायिका को लेकर ही नहीं बुना जा सकता। उनके साथ ही उनसे संबधित पात्रों, तथा लोक जीवन के कुछ पुरूषों का उनसे समन्वय करना चाहिये। मूल कथा के साथ अन्तरकथाओं का बुनना ज़रूरी है। साथ ही समकालीन प्रकृति से भी उनका समन्वय होना चाहिये। एक कुशल लेखक प्रकृति के उतार चढ़ाव के माध्यम से पात्रों के मनोभावों का उदघाटन करते हैं। इतिहास का रोमांच और रहस्य कथा में रस घोलता है, उसे अतिरिक्त सौन्दर्य प्रदान करता है। आचार्य चतुर सेन शास्त्री का वैशाली की नगर बधू और वृंदावन लाल वर्मा की झांसी की रानी, मृगनयनी इसी श्रेणी के उपन्यास है। दुर्भाग्य से भारतीय इतिहास का जितना उपयोग करना चाहिये नहीं किया गया । विश्वास है कि भावी साहित्यकार और उपन्यासकार भारतीय इतिहास का समुचित उपयोग कर हिन्दी साहित्य को कालजयी उपन्यास देंगे।

No comments:

Post a Comment