जो बीत गई सो बीत गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
यह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
हरिवंश राय 'बच्चन' की यह पंक्तियां आज भी काव्यप्रेमियों की जुबान पर है। उनकी रचना मधुशाला हिंदी साहित्य की बेस्ट सेलर है। इलाहाबाद में 27 नवंबर 1907 को जन्मे बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली और भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। उन्होंने कुछ समय पत्रकारिता की और एक स्कूल में पढ़ाया भी। पढ़ाते हुए ही उन्होंने एमए किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही वह 1941 में अंग्रेजी के लेक्चरर हो गए। उन्होंने ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया। वहीं से उन्होंने 1952 में अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की डिग्री ली। कैंब्रिज से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की डिग्री लेने वाले वह पहले भारतीय थे। भारत वापस लौट कर कुछ समय के लिए उन्होंने आल इंडिया रेडियो के साथ निर्माता के तौर पर काम किया। फिर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के कहने पर 1955 में बच्चन विदेश मंत्रालय के हिंदी विभाग से जुड़ गए और इस काम को वे अपनी सेवानिवृत्ति तक करते रहे। पहली पत्नी श्यामा के असमय देहांत के बाद बच्चन ने तेजी सूरी के साथ विवाह किया। बच्चन का रचनात्मक काल 1932 से 1995 तक चला। 'तेरा हार' उनकी कविताओं का पहला संकलन था। 1935 में 'मधुशाला' के प्रकाशन के बाद उन्हें हिंदी कवि के रूप में पहचान मिली। उमर खैय्याम की रूबाइयत का असर बच्चन की रचना शैली पर था। मधुशाला, मधुबाला और मधुकलश में यह असर खूब दिखा। पहली पत्नी की असामयिक मृत्यु का यह गहरा दुख उनकी रचाना 'निशा निमंत्रण' में व्यक्त हुआ। इसके बाद बच्चन ने एकांत संगीत, आकुल अंतर और सतरंगिनी की रचना की।
1943 में बंगाल में भुखमरी से आहत होकर उन्होंने 'बंगाल का कल' नामक काव्य संग्रह लिखा। जनता के दुख से दुखी बच्चन ने 1946 में 'हलाहल' का प्रकाशन किया। मिलन यमिनी, प्रणय पत्रिका, घर के इधर उधर, आरती और अंगारे बुद्ध और नाचघर और दो चट्टानें ने उनकी अन्य रचनाएं थी। बॉलीवुड में भी उन्होने यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला के लिए 'रंग बरसे' और आलाप के लिए 'कोई गाता मैं सो जाता' जैसे लोकप्रिय गीत लिखे।
बच्चन साहब को साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार, पद्म भूषण और सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया। 18 जनवरी 2003 को 96 वर्ष की उम्र में बच्चन ने आखिरी सांस ली।
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