Saturday 6 July 2013

चांद @ आसमान डॉट कॉम


विमल कुमार

पत्रकार, कवि विमल कुमार कविता के लिए 1987 में भारत भूषण पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. इसके अलावा हिंदी अकादमी भी उन्हें पुरस्कृत कर चुकी है, लेकिन अपने उसूलों की ख़ातिर वह पुरस्कार ठुकरा भी चुके हैं. पत्रकारिता और कविता लेखन के अलावा वह व्यंग्य और कहानियां भी लिखते हैं और कई संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं. उनका उपन्यास है, चांद @ आसमान डॉट कॉम. उपन्यास के शीर्षक से यह भ्रम होता है कि यह तकनीक की दुनिया में आ रही क्रांति और बदलाव को केंद्र में रखकर लिखी गई कृति होगी,  लेकिन उपन्यास पढ़ने के बाद यह भ्रम टूट जाता है. इस उपन्यास के ब्लर्ब पर लिखा है-चांद @ आसमान डॉट कॉम का रूपक कल्पना और यथार्थ के बीच मनुष्य की आवाजाही का रूपक है, जहां मनुष्य अपने लिए कुछ हासिल कर भी कुछ हासिल कर नहीं पाता है, वह त्रिशंकु की तरह फंसा रहता है.
विमल कुमार ने अपने इस उपन्यास में प्रेम की गहरी तड़प के ज़रिए मनुष्य की इस त्रिशंकु स्थिति को अपने व़क्त के आईने में ढूंढने की कोशिश की है. यह एक प्रेमकथा ही नहीं, बल्कि अपने समय की एक त्रासद कथा भी है. विमल कुमार का यह उपन्यास प्रेम में असफल होने की कुंठा कथा है और इसे समय की त्रासद कथा बनाने की लेखक ने जो कोशिश की है, उसमें वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाया है. इस उपन्यास के केंद्रीय पात्र मिहिर में साहस का घोर अभाव है. पत्नी और बच्चों के घर में होते हुए वह प्रेम की तलाश में भटकता रहता है, लेकिन प्रेम को परिणति तक पहुंचाने का साहस उसमें नहीं है. उसकी पत्नी नंदिता का एक वाक्य उसके पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित कर देता है-मिहिर, तुम्हारे साथ सबसे बड़ी बात यह है कि तुम कल्पना में जीते हो. यह क्यों नहीं देखते कि तुम्हारे पांवों के नीचे कोई ज़मीन है या नहीं. यह पूरा वाक्य इस उपन्यास पर भी लागू होता है, जहां कल्पना के आधार पर बग़ैर किसी ज़मीन के स़िर्फ व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर कथा कहने की कोशिश की गई है.
इस उपन्यास की कथा इसके केंद्रीय पात्र मिहिर, उसकी पत्नी नंदिता और उसकी प्रेमिका सुगंधा के इर्द-गिर्द चलती है. उपन्यास में बहुधा यह लगता रहता है कि मिहिर के बहाने लेखक अपनी बात कह रहा है, अपने जीवनानुभवों को बांट रहा है. इस उपन्यास में लेखक ने पत्र या डायरी के अंशों का इस्तेमाल करके पाठकों को एक नए तरह का कथास्वाद देने की कोशिश की है. यह माना जाता है कि पत्र और डायरी की जो प्रकृति होती है, वह लेखक की आत्मकथा की तरह ही होती है. पत्र और डायरी अपने स्वभाव से ही निजी होते हैं और वे ज़्यादातर अपने बेहद क़रीबियों को ही संबोधित किए जाते हैं. पत्रों में कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं और विचारों को बग़ैर किसी लाग-लपेट के अभिव्यक्त करता है, जिसके केंद्र में वह स्वयं होता है. उपन्यास में जब इस टूल का इस्तेमाल किया जाता है तो लेखक की कोशिश या मंशा यह होती है कि वह ख़ुद को नेपथ्य में रखकर पत्र एवं डायरी के माध्यम से अपनी बात पाठकों के सामने रखे. पत्रों और डायरी का इस्तेमाल वह इस तरह से करता है कि पाठकों से एक कनेक्ट स्थापित हो सके. विमल कुमार ने भी अपने इस उपन्यास में अपनी बात डायरी और पत्रों के माध्यम से बख़ूबी कहने का प्रयास किया है. कुछ बेहद रूमानी पत्र इस उपन्यास में हैं. (चौथी दुनिया से साभार)

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