Saturday, 6 July 2013

ब्लागिंग पर रवीन्द्र प्रभात की अनुपम पहल


डॉ. अरविन्द मिश्र

आवश्यकता, उपयोगिता, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया से सैकण्डों में अपनी बात के जरिए जुड़ने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुये आज ब्लॉगिंग जैसे द्रतगामी संचार माध्यम को पॉचवा स्तम्भ माना जाने लगा है। कोई इसे वैकल्पिक मीडिया तो कोई न्यू मीडिया की संज्ञा से नवाजने लगा है । हलांकि हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास महज ८ वर्ष का ही है मगर इसकी पैठ और प्रवृत्तियों पर लोगों की पैनी नजर है और नतीजतन इसके इतिहास लेखन की ओर रवीन्द्र प्रभात सरीखे जिम्मेदार साहित्यकर्मी का उन्मुख होना सहज ही है ...जबकि यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या हिन्दी ब्लॉग लेखन इतनी परिपक्वता पा चुका है कि उसका इतिहास लेखन आरम्भ हो जाय? इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है। इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर इतिहास लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है। कहना केवल यह है कि इतिहास का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण उसके समकालीन दस्तावेजीकरण से ज्यादा सटीक तरीके से हो सकता है। इस लिहाज से रवीन्द्र प्रभात की सद्य प्रकाशित पुस्तक "हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास" एक स्वागतयोग्य प्रकाशन है। पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा किया गया है ।

हर व्यक्ति की अपनी दृष्टि सीमाएं हैं ….और यह भी सही है कि दृष्टि भेद से दृश्य भेद हो जाते हैं …तथापि रवीन्द्र प्रभात के हिन्दी ब्लागिंग के समीक्षक और इतिहासकार के रूप का स्वागत है। निश्चय ही इस ऐतिहासिक कृति के लिए घोर परिश्रम किया गया है। रवीन्द्र जी साधुवाद के पात्र हैं। उन्होंने इतिहास लेखन के साथ ही पारम्परिक मीडिया में ब्लॉगिंग का परचम फहरा दिया है। पुस्तक में तथ्यों का समावेश करने में लेखक की पारखी दृष्टि से सूक्ष्म प्रेक्षण तक छूटा नहीं हैं। पढ़ते वक्त पुस्तक आनन्दित करती है और ज्ञानवर्धन तो करती ही है। हिन्दी ब्लागिंग का यह समकालीन दस्तावेजीकरण एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान है और वह भी एक एकल योगदान ........एक काबिले तारीफ़ काम।

पुस्तक में हिन्दी ब्लागिंग के शैशव काल से लेकर वर्ष 2011 के आरम्भ तक का दस्तावेजी संकलन है । हिन्दी ब्लॉग लेखन में महिलाओं की स्थति की समीक्षा है तो हिन्दी भाषा और साहित्य में ब्लागिंग की स्थिति निर्धारण पर विचारोत्तेजक टीका भी। वर्षवार विस्तृत समीक्षा के अंतर्गत विभिन्न ब्लागों के विषय वस्तु और उनकी गुणवत्ता के आकलन को सम्मिलित कियागया है। लेखक के अनुसार इस समय हिन्दी चिट्ठों की संख्या 25000 के पास है ...और साहित्य की लगभग सभी विधाएं वहां प्रतिनिधित्व पा रही है जैसे व्यंग, कथा-कहानी, कविता, गजलें आदि आदि ..इन सभी विधाओं के लोकप्रिय ब्लागों पर रवीन्द्र प्रभात की सम्यक दृष्टि पडी है और विस्तृत विवेचना भी हुई है ...उन्होंने सिनेमा ,राजनीति और खेल विषयों के ब्लागों पर भी निगाह डाली है। इतिहासकार को जिस तरह की व्यापक दृष्टि की दरकार होती है वह इस पुस्तक के अवगाहन से इंगित होती है।

पुस्तक में ब्लॉग और ब्लॉगरों के विषय में भी प्रभूत जानकारी उपलब्ध कराई गयी है। जैसे हिंदी ब्लॉगिंग का शैशव काल, हिंदी ब्लॉगिंग में शैशव काल के बाद की स्थिति, हिंदी ब्लॉगिंग में महिलाओं की स्थिति, हिंदी ब्लॉगिंग में साहित्य आदि । एक सौ अस्सी पृष्ठीय पुस्तक की छपाई,कागज क्वालिटी और कलेवर नयनाभिराम है। यह हार्ड बाउंड है ..मूल्य250/- उचित है। कुलमिलाकर एक पठनीय पुस्तक है यह। यदि आप हिंदी ब्लॉगिंग में हैं, तो इस किताब को अवश्य पढ़ना ही चाहिए, और न सिर्फ पढ़ना चाहिए, वल्कि एक अदद किताब रेफरेंस मटेरियल के तौर पर रखना चाहिए। कौन जाने कब किस संदर्भ सामग्री की जरूरत पड़ जाए।

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