Saturday 6 July 2013

बेस्ट सेलर महाराजा, महारानी


दीवान जरमनी दास

पटियाला के महाराजा भूपेंदर सिंह अपनी अजब-गजब आदतों के लिए खासे मशहूर रहे हैं। उनके दीवान जरमनी दास ने भारतीय राजे-महाराजाओं के बारे में लिखते हुए उनकी एक विचित्र सनक का जिक्र किया है। इसमें वे अपने एक खास महल में तंत्र-मंत्र की गतिविधियां करते थे। उस अवसर पर आने वाले हर अतिथि को निर्वस्त्र ही रहना होता था। पूरा कर्मकांड उनके महल के स्वीमिंग पूल के आसपास होता था। इसमें उनके राज्य के अंग्रेज अधिकारी और उनकी पत्नियां और अन्य अंग्रेज औऱ देसी महिलाएं भी भाग लेती थीं। पूरी रात वे सुरापान और कर्मकांड चलता था। जरमनी दास का कहना है कि इस अवसर पर क्या-क्या होता था लिखा भी नहीं जा सकता है। दीवान जरमनी दास ने महाराजा, महारानी नामक बेस्ट सेलर बुक्स लिखी हैं। उन्होंने इस किताब में खुल कर लिखा है कि इस अवसर पर क्या-क्या होता था। इन घटनाओं को हम खुल कर यहां नहीं लिख सकते हैं। महाराजा भूपिंदर सिंह पटियाला का जन्म 12 अक्तूबर 1891 को मोती बाग पैलेस, पटियाला में हुआ था। पिता महाराजा राजिंदर सिंह की मौत के बाद राज्य के शासक बनें भूपिंदर सिंह ने 38 वर्षों तक राज किया। सिख परिवार परिवार में पैदा हुए इस शासक के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 10 से अधिक बार शादी की थी। एक अनुमान के अनुसार 88 बच्चों के पिता थे। इनके पास विश्व प्रसिद्ध "पटियाला हार"था, जिसे प्रसिद्ध ब्रांड कार्टियर एसए द्वारा निर्मित किया गया था। इनकी पत्नी महारानी बख्तावर कौर इतनी सुंदर थीं कि उनको क्वीन मैरी की उपाधि प्राप्त थी।
किताबों की दुनिया चाहे डिजिटल हो रही हो, लेकिन छपी हुई किताबों का जुनून कम नहीं हो रहा। यही कारण है कि हिन्‍दी के प्रकाशकों ने बीते एक वर्ष में उन किताबों को पुन: प्रकाशित किया है, जो पिछले पचास से पच्चीस वर्षों में बाजार से बाहर थीं, मगर पाठकों को उनकी तलाश थी। इनमें कहानी, उपन्यास और कविता से लेकर इतिहास की किताबें शामिल हैं। हाल ही में हिन्‍दी के विख्यात लेखक रांगेय राघव का उपन्यास ‘कल्पना’ वाणी प्रकाशन से आया है। इसका पहला संस्करण पचास वर्ष पूर्व 1961 में आया था और उसके बाद अब यह स्वतंत्र पुस्तक के रूप में मौजूद है। इसी प्रकार भारतीय ज्ञानपीठ जल्द ही पचास साल पुरानी किताब ‘रूपांबरा’ प्रकाशित करने जा रहा है। 1960 में ‘रूपांबरा’ प्रकाशित हुई थी और उसके बाद से अनुपलब्ध है। पुरानी किताबों को नये कलेवर में पेश करने वालों में साहित्य अकादमी भी पीछे नहीं है। पिछले वर्ष उसने प्रेमचंद कहानी रचनावली का प्रकाशन किया है। खास बात यह कि यहाँ प्रत्येक कहानी के साथ यह दर्ज है कि वह किस साल किस पत्रिका में पहली बार हिन्‍दी या उर्दू में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद साहित्य के विशेषज्ञ कमल किशोर गोयनका ने रचनावली का संपादन किया है।
राजकमल प्रकाशन समूह कन्नड़ भाषा के महत्वपूर्ण लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता यूआर अनंतमूर्ति के तीन उपन्यासों ‘संस्कार’, ‘अवस्था’ और ‘भारतीपुर’ को करीब बीस वर्ष बाद पुन: प्रकाशित कर रहा है। गम्‍भीर ही नहीं, पुराना लोकप्रिय कथा साहित्य भी नये रंग-रूप में लौट रहा है। अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक हार्पर कॉलिंस, इंडिया ने उर्दू के सबसे लोकप्रिय जासूसी कथाकार इब्ने सफी की दो उपन्यास सीरीज हिंदी में प्रकाशित की है। इनमें एक है जासूसी की दुनिया और दूसरी इमरान सीरीज। 1928 में इलाहाबाद की सिराथु तहसील के नारा गाँव में पैदा हुए सफी का पहला उपन्यास 1952 में छपा था और उनके प्रशंसकों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तक शामिल थे। हिन्‍द पॉकेट बुक्स ने भी देश की आजादी के पूर्व के महाराजाओं और महारानियों की जिंदगियों में झांकती दो अनुपलब्ध किताबें ‘महाराजा’ और ‘महारानी’ प्रकाशित की हैं। इन किताबों को दीवान जरमनी दास ने लिखा है, जो कई राजघरानों के नजदीक रहे। इसी प्रकाशन गृह से रामकुमार भ्रमर के महाभारत और कृष्ण जीवन पर लिखे वृहद उपन्यास क्रमश: चार और पांच खंडों में करीब 25 वर्ष बाद पुन: प्रकाशित हुए हैं।
हिंदी की कुछ पुरानी किताबें हमेशा बेस्ट सेलर के रूप में मौजूद रही हैं। वे प्रकाशन के बाद से ही लगातार बाजार में बनी रहीं। टॉप 10 पर एक नजर* :
-गोदान (उपन्यास), प्रेमचंद, 70 संस्करण
-गुनाहों का देवता (उपन्यास), धर्मवीर भारती, 60 संस्करण
-सूरज का सातवां घोड़ा (उपन्यास), धर्मवीर भारती, 60 संस्करण
-रंगभूमि (उपन्यास), प्रेमचंद, 50 संस्करण
-मधुशाला (कविता), हरिवंश राय बच्चन, 50 संस्करण
-भारत भारती (खंडकाव्य), मैथिलीशरण गुप्त, 47 संस्करण
-साकेत (महाकाव्य), मैथिलीशरण गुप्त, 40 संस्करण
-त्यागपत्र (उपन्यास), जैनेंद्र, 40 संस्करण
-चित्रलेखा (उपन्यास), भगवती चरण वर्मा, 40 संस्करण
-सारा आकाश (उपन्यास), राजेंद्र यादव, 40 संस्करण

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