ज़ख़ार प्रीलेपिन
ज़ख़ार प्रीलेपिन का जन्म १९७५ में हुआ। उन्होंने लबाचेव्सकी नीझेगरोदस्की राजकीय विश्वविद्यालय के भाषा संकाय से एम.ए. किया है। ज़ख़ार ने अपना जीवन एक आम मज़दूर के रूप में शुरू किया। फिर वे चौकीदार से लेकर पल्लेदार तक रहे। ज़ख़ार प्रीलेपिन ने चेचेनिया के युद्ध में भी भाग लिया। अब वे पत्रकार हैं। ज़ख़ार प्रीलेपन लंबे समय तक येव्गेनी लवलीन्स्की के नाम से इंटरनेट पत्रिकाओं में लेख लिखते रहे। परंतु सन २००४ में उन्होंने रूस की केंद्रीय और क्षेत्रीय साहित्यिक पत्रिकाओं में भी लिखना शुरू कर दिया। वे रूस के अनेक युवा लेखक सम्मेलनों में भाग ले चुके हैं। ज़ख़ार प्रीलेपिन की पहली किताब 'परालोगिया' (विकृति) चेचेन-युद्ध के बारे में लिखा गया एक उपन्यास है। अपनी इस पहली ही पुस्तक से ज़ख़ार दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए। यह पुस्तक राष्ट्रीय स्तर पर बेस्टसेलर पुरस्कार के लिए अंत तक संघर्ष करती रही। उनकी दूसरी पुस्तक 'सानक्या' की तुलना आलोचक मक्सीम गोर्की के उपन्यास 'माँ' से करते हैं। इस पुस्तक का भी रूसी आलोचकों ने हार्दिक स्वागत किया और यह भी नेशनल बेस्टसेलर पुरस्कार की शॉर्ट-लिस्ट में रही। ज़ख़ार प्रीलेपिन की तीसरी पुस्तक है - 'ग्रेख' (पाप)। यह उनकी उन कहानियों का संग्रह है जो समय-समय पर पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। लेकिन एक साथ इन कहानियों के सामने आते ही उनका नया अर्थ निकाला जाने लगा और इन नए संदर्भों में पाठकों ने उन्हें गहरी दिलचस्पी के साथ पुनः पढ़ा। ज़ख़ार प्रीलेपिन २००६ में रूसी बुकर पुरस्कार और २००७ में 'यस्नाया पल्याना' पुरस्कार के अंतिम दावेदारों में शामिल रहे।
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