Saturday 6 July 2013

अलेक्सान्दर पूश्किन की कविताएं





[मूल रूसी भाषा से अनुवाद : मदन लाल मधु]

येकातिरिना बाकूनिना के लिए

सुनी क्या तुमने जंगल से आती आवाज़ वो प्यारीगीत प्रेम के, गीत रंज के, गाता है वह न्यारेसुबह - सवेरे शान्त पड़े जब खेत और जंगल सारेपड़ी सुनाई आवाज़ दुखभरी कान में हमारेयह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने ?
मिले कभी क्या घुप्प अंधेरे जंगल में तुम उससेगाए सदा जो बड़े रंज से अपने प्रेम के किस्सेबहे कभी क्या आँसू तुम्हारे मुस्कान कभी देखी क्याभरी हुई हो जो वियोग में ऎसी दृष्टि लेखी क्यामिले कभी क्या तुम उससे ?
साँस भरी क्या दुख से कभी आँखों की वीरानी देखगीत वो गाए बड़े रंज से दे अपने दुख के संदेशघूम रहा इस किशोर वय में जंगल में प्रेमी उदासबुझी हुई आँखों में उसकी अब ख़त्म हो चुकी आससाँस भरी दुख से क्या कभी तुमने ?
 


प्रेमपत्र को विदाई
विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश थातुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहापर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न छोड़ी राहहाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग मेंप्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जलहै समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकलभूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक करमेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआवह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआलिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी कीलाख पिघल रही थी ऐसे मानो हो वह रूठी-सी
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए कालेबदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवालेपीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मनजीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।


सब ख़त्म हो गया
सब ख़त्म हो गया अब हममें कोई सम्बन्ध नहीं हैहम दोनों के बीच प्रेम का अब कोई बन्ध नहीं हैअन्तिम बार तुझे बाहों में लेकर मैंने गाए गीततेरी बातें सुनकर लगा ऎसा, ज्यों सुना उदास संगीत ।
अब ख़ुद को न दूंगा धोखा, यह तय कर लिया मैंनेडूब वियोग में न करूंगा पीछे तय कर लिया मैंनेगुज़र गया जो भूल जाऊंगा, तय कर लिया है मैंनेपर तुझे न भूल पाऊंगा, यह तय किया समय ने
शायद प्रेम अभी मेरा चुका नहीं है, ख़त्म नहीं हुआ हैसुन्दर है, आत्मीय है तू, प्रिया मेरी अभी बहुत युवा हैअभी इस जीवन में तुझ से न जाने कितने प्रेम करेंगेजाने कितने अभी मर मिटेंगे और तुझे देख आहें भरेंगे ।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय


धीरे-धीरे लुप्त हो गया दिवस-उजाला
धीरे-धीरे लुप्त हो गया दिवस उजाला,
सांध्य कुहासा छाया है नीले सागर पर,
आए आए पवन झकोरा, लहर उछाला
मेरे नीचे लहराओ तुम विह्वल सागर।
दूर कहीं पर साहिल नज़र मुझे है आता,
मुझ पर जादू करने वाली दक्षिण धरती,मैं अनमन बेचैन उधर ही बढ़ता जाता,
स्मृतियों की सुख-लहर हृदय को व्याकुल करती।
अनुभव होता मुझे - भरी हैं आँखें फिर से
हृदय डूबता और हर्ष से कभी उछलता,
मधुर कल्पना चिर-परिचित फिर आई घिर केवह उन्मादी प्यार पुराना पुनः मचलता,आती याद व्यथाएँ, मैंने जो सुख पाला,इच्छा आशाओं की छलना, पीड़ित अन्तर ...आए आए पवन झकोरा, लहर उछाला,
मेरे नीचे लहराओ तुम विह्वल सागर।
उड़ते जाते पोत, दूर तुम मुझको ले जानाइन कपटी, सनकी लहरों को चीर भयंकर,किन्तु न केवल करुण तटों पर तुम पहुँचाना
मातृभूमि है जहाँ, जहाँ हैं धुंध निरन्तर,वहीं कभी तो धधक उठी थी मेरे मन मेंप्यार-प्रणय, भावावेशों की पहली ज्वाला,कला-देवियाँ छिप-छिप मुस्काईं आँगन में
था यौवन को मार गया तूफ़ानी पाला,
जहाँ ख़ुशी तो लुप्त हुई थी कुछ ही क्षण मेंहृदय-चोट ने दर्द सदा को ही दे डाला।
तभी-तभी तो मातृभूमि तुमसे भागा थानए-नए अनुभूति-जगत का मैं दीवाना,
भागा तुमसे दूर हर्ष-सुख का अनुगामीयौवन, मित्रों से था जिनको कुछ क्षण जाना,जिनकी ख़ुशियों, रंग-रलियों के चक्कर में पड़
अपना सब-कुछ, प्यार, हृदय का चैन लुटाया,खोई अपनी आज़ादी, यश, मान गँवायाछला गया जिन रूपसियों से उन्हें भुलाया,मेरे स्वर्णिम यौवन में जो लुक-छिप आईंउन सखियों की स्मृतियों का भी चिह्न मिटाया ...किन्तु हृदय तो अब भी पहले सा घायल हैमिला न कोई मुझको दर्द मिटाने वाला,मरहम नहीं किसी ने रखा इन घावों पर
आए आए पवन झकोरा, लहर उछाला
मेरे नीचे लहराओ तुम विह्वल सागर।
 
जाड़े की सुबह
पाला भी है, धूप खिली है, अद्भुत्त दिन है!पर तू मेरी रानी अब तक नींद मगन है -जागो, जागो, मधुरे अब तो जाग उठो तुमनिद्रा सुख में डूबे अपने नयन उघारो,स्वयं उत्तरी तारे-सी बन ज्योति अनूठीजाग, उत्तरी विभा-प्रभा की छटा निहारो!
याद तुम्हें, कल कैसा था तूफ़ान भयंकरघुप्प अन्धेरा-सा छाया था धुँधले नभ पर,पीला-पीला धब्बा-सा बन चाँद गगन मेंझाँक रहा था धूमिल-धूसर मेघ सघन से,तुम उदास-सी बैठी थीं, आकुल-व्याकुल होकिन्तु आज ... प्रिय झाँको तो तुम वातायन से :
कैसा निर्मल, कैसा नीला-नीला अम्बरउसके नीचे ज्यों क़ालीन बिछाकर सुन्दरसुख से लेटी बर्फ़ चमकती रवि-किरणों मेंकाली-सी छाया दिखती झलमले वनों में,ओढ़े पाले की चादर फ़र वृक्ष हरा हैऔर बर्फ़ के नीचे नाला चमक रहा है।
पीत-स्वर्ण कहरुबा चमक कमरे में छाईचट-चट जलती लकड़ी, अंगीठी सुखदायी,बैठ इसी के निकट और कुछ चिन्तन करनाभला लगेगा स्वप्न-जगत में मुक्त विचरना,किन्तु न क्या ये अच्छा, स्लेज इधर मँगवाएँभूरी घोड़ी उसमें हम अपनी जुतवाएँ?
और सुबह की इसी बर्फ़ पर स्लेज बढ़ाएँमेरी प्यारी, ख़ूब तेज़ घोड़ी दौड़ाएँजाएँ हम सूने खेतों में, मैदानों मेंकुछ पहले जो बहुत घने थे, उन्हीं वनों में,पहुँचें ऐसे वहाँ, जहाँ है नदी किनारामेरे मन की ललक, मुझे जो बेहद प्यारा।


मैंने प्यार किया था तुमको
मैंने प्यार किया था तुमको और बहुत सम्भव है अब भीमेरे दिल में उसी प्यार की सुलग रही हो चिंगारी,किन्तु प्यार यह मेरा तुमको और न अब बेचैन करेगानहीं चाहता इस कारण ही अब तुम पर गुज़रे भारी।
मैंने प्यार किया था तुमको, मूक-मौन रह, आस बिनाहिचक, झिझक तो कभी जलन भी मेरे मन को दहकाए,जैसे प्यार किया था मैंने सच्चे मन, कोमलता सेहे भगवान, दूसरा कोई, प्यार तुम्हें यों कर पाए!
 
आया के प्रति
मेरे बुरे दिनों कि साथी, मधुर संगिनी
बुढ़िया प्यारी, जीर्ण-जरा!
सूने चीड़ वनों में तुम्हीं राह देखतीं
कब से मेरी, नज़र टिका।
पास बैठकर खिड़की के भारी मन से
तुम पहरेदारी करतीं।
और सिलाइयाँ दुर्बल हाथों में तेरे,
कुछ क्षण को धीमी पड़तीं।
टूटे-फूटे फाटक से अँधियारे पर
दॄष्टि तुम्हारी जम जाती,
और किसी बेचैनी, चिन्ता, शंका से
हर पल धड़क उठे छाती,
कभी तुम्हें लगता है जैसे छाया-सी
सहसा है सम्मुख आती...
 
क्या रखता है अर्थ तुम्हारे लिए नाम मेरा
क्या रखता है अर्थ तुम्हारे लिए नाम मेरा?डूबा हुआ उदासी में लहरों का विह्वल स्वरकहीम दूर के तट पर जैसे जाता हहर, बिखर,सूने वन में रात्रि समय ध्वनि खो जाती जैसेमेरा नाम तुम्हारी स्मृति में मिटे कभी वैसे।लिखें गए हों स्मृति के पट पर कुछ अक्षरउस भाशःआ में जिसे समझना, पडः़अना हो दुष्कर,उसि तरह से मुड़े-मुड़ाए, जर्जर काग़ज़ परचिन्ह नाम छोड़ेगा मेरा धुँधला-सा नश्वर।
क्या रखा है उसमें? जिसको विस्मृति ने निगलानई भावना, नए प्यार का जब हो कुसुम खिला,ला न सकेगा तेरे मन में वह स्मृतियाँ प्यारीजल न सकेगी उससे कोमल, निर्मल चिंगारी।किन्तु उदासी और व्यथा जब मन को आ घेरेनाम याद कर लेना मेरा तुम धीरे-धीरे,कहना ख़ुद से- याद किसी को मैं अब भी आतीकिसी हृदय में मैं बसती हूँ, याद न मिट पाती।
 
...के नाम
मुझे याद है वह अद्भुत्त क्षणजब तुम मेरे सम्मुख आईं,निर्मल, निश्छल रूप छटा-सीजैसे उड़ती-सी परछाईं।
घोर उदासी, गहन निराशाजब जीवन में कुहरा छाया,मन्द, मृदुल तेरा स्वर गूँजामधुर रूप सपनों में आया।
बीते वर्ष, बवंडर आएहुए तिरोहित स्वप्न सुहाने,किसि परि-सा रुप तुम्हाराभूला वाणी, स्वर पहचाने।
सूनेपन, एकान्त-तिमिर मेंबीते, बोझिल, दिन निस्सारबिना आस्था, बिना प्रेरणारहे न आँसू, जीवन, प्यार।
पलक आत्मा ने फिर खोलीफिर तुम मेरे सम्मखु आईं,निर्मल, निश्छल रूप छटा-सीमानो उड़ती-सी परछाईं।
हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित हैफिर से झंखृत अन्तर-तार,उसे आस्था, मिली प्रेरणाफिर से आँसू, जीवन, प्यार।

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