फ़ज़ल इमाम मल्लिक
ब्लॉगिंग या चिट्ठाजगत को आमतौर पर नए मीडिया के रूप में देखा जा रहा है। इस बात की चर्चा भी की बार-बार की जाती है कि ब्लॉगिंग ने उन लेखकों को भी मंच प्रदान किया है जिनकी पहुंच पत्र-पत्रिकाओं में नहीं होती थी। मीडिया के इस वैकल्पिक स्वरूप को लोगों ने बड़े पैमाने पर अपनाया और ब्लॉगिंग की दुनिया से एक बड़ा वर्ग जुड़ा। ब्लागिंग ने हिंदी के आकाश को विस्तार दिया और पाठकों की एक नई दुनिया का विस्तार भी हुआ। हालांकि इस दुनिया में जो है जैसा है की तर्ज पर जो पेश किया जाने लगा उसने ब्लॉगिंग की दुनिया पर सवाल भी खड़े किए क्योंकि पाठकों की इस नई दुनिया में अनचीन्हे और अनजाने लोगों ने पैठ तो बनाई लेकिन उसमें विचारों को तरजीह कम दी गई, भड़ास और गुबार निकालने की प्रवृति ज्यादा दिखाई दी। ज़ाहिर है कि इससे ब्लागिंग पर ही नहीं ब्लागरों के सामने भी संकट खड़ा हुआ। ब्लाग पर लिखने-पढ़ने वालों की एक बड़ी जमाअत ने भाषा की जो नई इबारत गढ़ी उसमें और सब कुछ था सिवाय भाषा की तमीज़ के। गालीगलौज से होते हुए निजी खुन्नस तक का ज़रिया बन गया ब्लाग और एक तबक़ा ऐसा भी रहा जिसने इस पर रोक लगाने की बजाय इसकी हिमायत की और इस क़वायद में ख़ुद सामिल होकर इसके मज़े भी लेने लगा।
लेकिन जैसा होता है, ब्लॉगिंग में इस तरह की बढ़ती प्रवृति ने इसे नुक़सान भी काफ़ी पहुंचाया और लोगों ने इसे गंभीरता से लेना बंद कर दिया। लेकिन इन सबके बावजूद ब्लॉगिंग आज अभिव्यक्ति का नए माध्यम के तौर पर स्थापित हुआ है तो इसकी वजह वे गंभीर ब्लागर हैं जो लगातार अपनी सक्रियता से संचार माध्यमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए हुए हैं और साहित्य के साथ-साथ दूसरे विषयों पर लगातार लिख-पढ़ रहे हैं। अविनाश वाचस्पति और रवींद्र प्रभात का नाम भी ऐसे ही ब्लागरों में आता है जो लगातार इस क्षेत्र में अपनी धमक का अहसास हमें कराते आ रहे हैं। ब्लॉगिंग की दुनिया से शुरुआती दौर से जुड़े अविनाश वाचस्पति और रवींद्र प्रभात के संपादन में ब्लागिंग पर आई पहली किताब ‘हिन्दी ब्लॉगिंग :अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति’ ने इस दुनिया के कई अनछुए पहलुओं को हमारे सामने रखा है।
‘हिन्दी ब्लॉगिंग :अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति’ में चिट्ठाजगत से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। ब्लॉगिंग के तकनीकी पक्ष के साथ ही उसके सामाजिक सरोकारों और मीडिया के नए स्वरूप की जानकारी मिलती है।श्रीश शर्मा ,रवि रतलामी ,शैलेश भारतवासी ,बीएस पाबला ,विनय प्रजापति ने इसके तकनीकी पक्ष पर बात की है और इनसे नए ब्लागरों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा। सिद्धेश्वर सिंह का लेख ‘हिन्दी ब्लॉग : सृजन ,संकट और कुछ उम्मीदें’ से संभावनाओं के ने द्वार खुलते हैं। केवल राम, खुशदीप सहगल, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी और बालेन्दु शर्मा दाधीच के आलेख भी महत्त्वपूर्ण हैं। पुस्तक में ब्लॉगिंग के इतिहास और हिंदी ब्लाग की जानकारी भी महत्त्वपूर्ण है। फिर ब्लॉगिंग के दूसरे पक्षों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।
No comments:
Post a Comment