Saturday, 6 July 2013

अपनी संतान को चांटा मारना सीखें


डॉ. सुनील वैद

प्रस्तुत पुस्तक अंग्रेजी के बेस्ट सेलर ‘लर्न टू स्लैप योर चाइल्ड’ का हिन्दी अनुवाद है। पेशे से डॉक्टर, लेखक डॉ. सुनील वैद ने पुस्तक का शीर्षक ही ऐसा रखा है कि ‘बाल-अधिकार’ के इस युग में यह शीर्षक प्रथमतया खटकने वाला लग सकता है। पर, लेखक ने आरंभ में ही यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने यह पुस्तक निर्णायक महसूस होने का खतरा उठाते हुए लिखी है। ‘चांटा मारने’ से उनका अर्थ प्रतीकात्मक है। लेखक ने अपना उद्देश्य यह घोषित किया है कि वह पालन-पोषण का एक अनुशासित तरीका सिखाना चाहते हैं जिसके तहत अभिभावक व बच्चों के संबंध इतने मधुर हों कि कभी शारीरिक व मानसिक रूप से थप्पड़ मारने की आवश्यकता ही न रह जाए। उन्होंने अनुशासन को संदर्भानुसार पुरस्कार और सजा के तर्कसंगत चयन के रूप में परिभाषित किया है।
लेखक ने ‘सुनहरा मध्यम मार्ग’ अपनाने की राय दी है। उनके अनुसार पश्चिम जहां पूर्ण स्वतंत्रता की बात करता है, वह एक अति है और अति-अनुशासन एक दूसरी अति। लेखक के अनुसार कोई भी अति अधूरी-संपूर्णता है और मध्यम-मार्ग हमेशा बेहतर है। मेडिसिन और मनोविज्ञान के गहरे अध्येता डॉक्टर-लेखक का दृष्टिकोण आस्था-संवलित है। मध्यम मार्ग से पले-पढ़े बच्चे के लिए ईश्वर के पास अपने द्वारा निर्धारित दिशा में ले जाने की गुंजाईश बची रहती है। लेखक का मानना है कि मध्यम मार्ग से पले-बढ़े बच्चे थोड़ा परिपक्व होने पर ‘चयन के अधिकार’ का अधिक बेहतर उपयोग करता है।
लेखक ने बच्चे के व्यक्तित्व की विशिष्टता को पहचानने के उपाय बताये हैं। लेखक ने आरंभ में ही कुछ विशेष स्वभाव के बच्चों और उनके माता-पिता आदि की पात्रों के रूप में परिकल्पना की है। ये पात्र भारतीय मध्यवर्गीय सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था में पाये जाने वाले विभिन्न प्रवृत्तियों और परिस्थितियों वाले प्रतिनिधि पात्र हैं। ये पात्र डॉक्टर-लेखक के विजन में आते रहते हैं, और मरीज के रूप में उनके क्लिनिक भी आते हैं। अपनी व्याख्याओं के बीच-बीच उदाहरण के तौर पर वह इन पात्रों को लाते रहते हैं। इस शैली में उन्होंने पालन-पोषण की अलग-अलग चुनौतियों और पैरेंटिंग की अलग-अलग शैलियों को बखूबी समझाया है।
पुस्तक में विषय के बारे में लेखक के वैज्ञानिक ज्ञान और उनकी लेखकीय कल्पनाशीलता का संतुलन अच्छा है। लगभग 300 पृष्ठों की इस किताब में विजडम बिखरा पड़ा है। किसी भी प्रसंग में लेखक अपनी व्याख्या के रूप में जो प्रतिपादन कर रहे हैं उसके संबंध में जो अकादमिक वैज्ञानिक शोध व निष्कर्ष हैं वह उस स्थान पर ही बॉक्स में दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त लेखक की व्याख्याओं के सामयिक निष्कर्ष भी जगह-जगह सूत्र रूप में बॉक्स में दिए हैं। यह सब कुछ पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाता है।
जहां आप लेखक से सहमत न भी हों वहां भी लेखक आपको स्वयं के साथ संवाद में बनाए रखते हैं। अनुवाद बुरा तो नहीं, पर जगह-जगह रुखड़ा है और याद दिला जाता है कि यह अनुवाद है।

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