पाठक, मेरे मित्र, हर पुस्तक तुम्हारे लिए ही लिखी जाती है। मैं प्रकाशक को अपनी बात का यकीन दिला सकता हूँ, संपादकों और आलोचकों से बहस कर सकता हूँ। मगर तुम्हारा फैसला ही असली और आखिरी होता है। जजों की भाषा में, उसके खिलाफ अपील नहीं हो सकती। लेखक तो तुमसे भेंट करने के लिए ही जीता है। मेरे समूचे जीवन में तीन तरह की परेशानियाँ लगातार बनी रही हैं। तुमसे भेंट होने के पहले मैं प्रतीक्षा में और यह अनुमान लगाते हुए परेशान होता रहता हूँ कि हमारी यह भेंट कैसी रहेगी। फिर भेंट के समय मुझे परेशानी होती रहती है, जो कि स्वाभाविक है और समझ में आ सकती है। अंत में मैं भेंट की हर तफसील को याद करते और यह अंदाज लगाते हुए परेशान होता रहता हूँ कि मैंने कैसा प्रभाव छोड़ा। अपने पाठकों के तरह-तरह के चेहरे मुझे दिखाई देते हैं। कुछ के माथों पर बल पड़ गए हैं। भला मैं ऐसे शब्द कहाँ से लाऊँ कि उनके ये बल दूर हो जाएँ? दूसरों ने ऐसा मुँह बना लिया है मानों कोई बदजायका और अटपटी चीज उसके मुँह में चली गई हो। तीसरों के चेहरे पर ऊब का भाव है, जो सबसे अधिक भयानक और निराशाजनक चीज है। अगर मेरी पुस्तक में तुम्हें कोई सही विचार मिले, तो उसके नीचे रेखा खींच देना। अगर कोई गलत विचार मिले, तो दो रेखाएँ खींच देना। अगर तुम्हें इसमें रत्ती भर भी झूठ मिले, तो किताब को ही फौरन दूर फेंक देना - यह कौड़ी काम की नहीं।
Friday, 17 January 2014
रसूल हमजातोव
पाठक, मेरे मित्र, हर पुस्तक तुम्हारे लिए ही लिखी जाती है। मैं प्रकाशक को अपनी बात का यकीन दिला सकता हूँ, संपादकों और आलोचकों से बहस कर सकता हूँ। मगर तुम्हारा फैसला ही असली और आखिरी होता है। जजों की भाषा में, उसके खिलाफ अपील नहीं हो सकती। लेखक तो तुमसे भेंट करने के लिए ही जीता है। मेरे समूचे जीवन में तीन तरह की परेशानियाँ लगातार बनी रही हैं। तुमसे भेंट होने के पहले मैं प्रतीक्षा में और यह अनुमान लगाते हुए परेशान होता रहता हूँ कि हमारी यह भेंट कैसी रहेगी। फिर भेंट के समय मुझे परेशानी होती रहती है, जो कि स्वाभाविक है और समझ में आ सकती है। अंत में मैं भेंट की हर तफसील को याद करते और यह अंदाज लगाते हुए परेशान होता रहता हूँ कि मैंने कैसा प्रभाव छोड़ा। अपने पाठकों के तरह-तरह के चेहरे मुझे दिखाई देते हैं। कुछ के माथों पर बल पड़ गए हैं। भला मैं ऐसे शब्द कहाँ से लाऊँ कि उनके ये बल दूर हो जाएँ? दूसरों ने ऐसा मुँह बना लिया है मानों कोई बदजायका और अटपटी चीज उसके मुँह में चली गई हो। तीसरों के चेहरे पर ऊब का भाव है, जो सबसे अधिक भयानक और निराशाजनक चीज है। अगर मेरी पुस्तक में तुम्हें कोई सही विचार मिले, तो उसके नीचे रेखा खींच देना। अगर कोई गलत विचार मिले, तो दो रेखाएँ खींच देना। अगर तुम्हें इसमें रत्ती भर भी झूठ मिले, तो किताब को ही फौरन दूर फेंक देना - यह कौड़ी काम की नहीं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment