शब्द
शब्द आओ मेरे पास,जो बुलायें, जाओ उनके पास भी
Friday, 17 January 2014
जयप्रकाश त्रिपाठी
रद्दी बीनते-बीनते
ठिठक जाते हैं नुक्कड़ पर
नीनू के पांव
आंखें फाड़-फाड़ कर
खूब तसल्ली से आसपास को
घूर लेने के बाद
सर्दी ओढ़कर सो जाता है उसी रेहड़ी के नीचे
बीते दिनो की तरह।
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