(बीबीसी)
कैंसर से लड़ने के बाद युवराज सिंह ने मैदान पर दोबारा वापसी की
क्लिक करें भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने अपनी किताब 'द टेस्ट ऑफ माइ लाइफ' में कैंसर से अपने संघर्ष की दास्तान को पेश किया है.
इस किताब में उन्होंने विस्तार से बताया है कि क्लिक करें कैंसर के कारण उनकी जिंदगी में क्या-क्या बदलाव हुए. ये किताब मंगलवार को रिलीज़ हो रही है.
भारत को 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका अदा करने वाले युवराज सिंह को 2012 के शुरुआत में कैंसर होने की बात सामने आई.
अमरीका के बोस्टन शहर में दो महीनों से भी ज्यादा समय तक उनका इलाज चला. ये उनका जज्बा ही था कि भारत वापसी के चंद महीनों बाद युवराज की क्रिकेट टीम में वापसी हुई और उन्होंने श्रीलंका में टी20 वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया.
संघर्ष की कहानी
कैंसर से सफलतापूर्वक जूझने वाले युवराज सिंह लिखते हैं, "जब आप बीमार होते हैं, जब आप पूरी तरह निराश होने लगते हैं, तो कुछ सवाल एक भयावह सपने की तरह बार बार आपको सता सकते हैं. लेकिन आपको सीना ठोंक कर खड़ा होना चाहिए और इन मुश्किल सवालों का सामना करना चाहिए."
अमरीका से इलाज कराने के बाद भारत लौटने के अनुभवों को उन्होंने विस्तार से अपनी किताब में लिखा है.
वो लिखते हैं, "मेरी मुलाकात दिल्ली में इंडियन कैंसर सोसाइटी की मानद सचिव से हुई. उन्होंने कहा, ‘युवी, जिस तरह आपने खुल कर अपनी लड़ाई लड़ी है, आप जाने अंजाने कैंसर से बचने वाले लोगों के लिए एम्बेसडर बन गए हैं. इस देश में जहां कैंसर के पचास लाख मरीज हैं, वहां ये मानना मुश्किल लगता है कि किसी सिलेब्रिटी को कभी ये बीमारी नहीं हुई. इससे पहले कैंसर से पीड़ित कोई जानी मानी हस्ती मेरे दिमाग आती है तो वो हैं नरगिस दत्त.’"
युवराज सिंह
2011 के वर्ल्ड कप में भारत की खिताबी जीत में युवराज सिंह का खासा योगदान रहा
युवराज का कहना है कि उन्होंने पूरी हिम्मत के साथ इस बात को स्वीकारा कि उन्हें कैंसर है.
टीम इंडिया के धांसू बल्लेबाज रहे युवराज सिंह लिखते हैं, "खूबसूरत नरगिस दत्त के कैंसर से ग्रस्त होने के बाद देश में क्या मैं पहला व्यक्ति था जिसे ये बीमारी हुई? मुझे ऐसा नहीं लगता. हो सकता है कि शायद मैं भारत में पहला ऐसा व्यक्ति हूँ जिसे कैंसर के साथ जीने और इसके बारे में बात करने, इसे अपनाने, इसकी वजह से बाल चले जाने और इससे लड़ने से डर नहीं लगता है."
अपनी किताब का मकसद वो वो यूं बयान करते हैं, "ये कहानी है मेरी कैंसर से पहले की जिंदगी, कैंसर के दौरान जिंदगी और कैंसर के बाद वाली जिंदगी की...ये कहानी है संघर्ष की, इनकार की, कबूलने की और उसके बाद नए संघर्षों की."
तकदीर का खेल
युवराज ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि कैंसर से जंग जीतने के बाद उन्हें इस बात की चिंता सताती रहती थी कि वो क्लिक करें क्रिकेट में कब और कैसे वापसी करेंगे. ऐसे में इस किताब को लिखना उन्हें सुकून देता था.
युवराज कहते हैं कि मशहूर साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग की किताब ‘It’s Not About The Bike’ ने उन्हें खूब हिम्मत दी. युवराज के लिए उनकी किताब ने एक दोस्त और एक मार्गदर्शक का बखूबी काम किया.
युवी लिखते हैं, "कुछ साल पहले मैंने लांस आर्मस्ट्रांग की किताब ‘It’s Not About The Bike’ पढ़नी शुरू की लेकिन इसे पूरी नहीं पढ़ पाया था.हो सकता है, जैसा कि अकसर कहा जाता है, यही तकदीर में लिखा था. शायद मुझे वापस लांस की तरफ आना था और किसी और समय इस किताब को पूरा पढ़ना था."
सुख नहीं, दुख बांटने भी जरूरी
आर्मस्ट्रांग और युवराज
युवराज को आर्मस्ट्रांग ने बहुत प्रभावित किया
युवराज के अनुसार वो अपनी किताब के जरिए अपनी कहानी इसलिए लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं ताकि ऐसे हालात में जी रही लोग ये न समझें कि वो अकेले हैं.
युवराज लिखते हैं, "जिस तरह हम अपनी जीत और सुख को दूसरों के साथ बाँटते हैं, उसी तरह हमें अपना दुख भी बाँटना चाहिए ताकि जो और लोग दुख झेल रहे हों, वो भी महसूस कर सकें कि वो अकेले नहीं हैं. अगर अपनी कहानी बता कर मैं किसी एक व्यक्ति की भी मदद कर पाऊँ, तो मुझे खुशी होगी. ठीक वैसे ही जैसे लांस आर्मस्ट्रांग की कैंसर की कहानी ने मेरी मदद की थी."
युवराज आगे लिखते हैं, "मुझे प्रतीत होगा कि मेरी जिंदगी का जो साल गुम गया, वह बर्बाद नहीं गया."
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