दुनिया की सबसे बड़ी प्रेस
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस दुनिया का सबसे बड़ी विश्वविद्यालय प्रेस है। यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का एक विभाग है और इसका संचालन उपकुलपति द्वारा नियुक्त 15 शिक्षाविदों के एक समूह द्वारा किया जाता है जिन्हें प्रेस प्रतिनिधि के नाम से जाना जाता है। उनका नेतृत्व प्रतिनिधियों के सचिव द्वारा किया जाता है जो ओयूपी के मुख्य कार्यकारी और अन्य विश्वविद्यालय निकायों के प्रमुख प्रतिनिधि की भूमिका निभाता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय सत्रहवीं सदी के बाद से प्रेस की देखरेख के लिए इसी तरह की प्रणाली का इस्तेमाल करता आ रहा है। विश्वविद्यालय ने 1480 के आसपास मुद्रण व्यापार में कदम रखा और बाइबल, प्रार्थना पुस्तकों और अध्ययनशील रचनाओं का प्रमुख मुद्रक बन गया। इसकी प्रेस द्वारा शुरु की गयी एक परियोजना उन्नीसवीं सदी के अंतिम दौर में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी बन गई और बढ़ती लागतों से निपटने के लिए इसने अपना विस्तार जारी रखा। अपने शैक्षणिक और धार्मिक शीर्षकों से मेल स्थापित करने के लिए ऑक्सफोर्ड ने पिछले सौ सालों में बच्चों की पुस्तकों, स्कूल की पाठ्य पुस्तकों, संगीत, पत्रिकाओं, वर्ल्ड्स क्लासिक्स सीरीज और सबसे ज्यादा बिकने वाली अंग्रेजी भाषा शिक्षण पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन किया है।
शब्दों का विश्व बैंक
आधुनिक काल में हिन्दी के पहले शब्दकोश ‘समांतर कोश’, ‘द हिंदी-इंग्लिश इंग्लिश-हिंदी थिसारस ऐंड डिक्शनरी’ जैसे महाग्रंथ और ‘अरविंद लैक्सिकन’ के रूप में इंटरनेट पर विश्व को हिन्दी-अंग्रेजी के शब्दों का सबसे बड़ा ऑनलाइन ख़ज़ाना देने वाले अरविंद कुमार अब ‘शब्दों का विश्व बैंक’ बनाने की तैयारी में जुटे हैं। उनके डाटाबेस में हिन्दी-इंग्लिश के लगभग 10 लाख शब्द हैं। शब्दों को लेकर उनका जुनून बरकरार है। कुछ दिन पहले किसी ने उनसे पूछा कि आपके डाटा में ‘तासीर’ शब्द है या नहीं। उन्होंने चेक किया। शब्द था ‘प्रभाव’ के अंतर्गत। यह उसका अर्थ होता भी है- जैसे दर्द की ‘तासीर’। वह चाहते तो इससे संतोष कर सकते थे, लेकिन उनका मन नहीं माना। हिन्दी में तासीर शब्द को उपयोग आम ज़िंदगी में है तो उसका संदर्भ ‘आहार’ या ‘औषध’ की आंतरिक प्रकृति या स्वास्थ्य पर उसके ‘प्रभाव’ के संदर्भ में होता है। उन्हें लगा कि इसके लिए एक अलग मुखशब्द बनाना ठीक रहेगा। उन्होंने सटीक इंग्लिश शब्द की तलाश शुरू कर दी। लेकिन इसमें उन्हें किसी कोश से कोई सहायता नहीं मिली। प्रोफ़ेसर मैकग्रेगर के ‘आक्सफ़र्ड हिंदी-इंग्लिश कोश’ में मिला– इफेक्ट, ऐक्शन, मैनर ऑफ अपिरिएशन लेकिन ‘तासीर’ के मुखशब्द के तौर इनमें से कोई भी शब्द रखना उन्हें ठीक नहीं लगा। इधर-उधर चर्चा भी की, लेकिन बात नहीं बन रही थी। अंततः वह शब्द गढ़ने में लग गये। कई दिन बाद ‘तासीर’ मुखशब्द के साथ अन्य शब्द जोड़ पाए– तासीर, असर, क्रिया, परिणाम, प्रभाव, प्रवृत्ति, वृत्ति, उदाहरण :‘उड़द की तासीर ठंडी होती है अत: इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए।’
बुक मार्केट अस्सी अरब
भारत अंग्रेजी भाषा की किताबों के प्रकाशन में दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है। कुल पब्लिकेशन मार्केट 80 अरब रुपये के आंकड़े को छू रहा है। फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिकेशन्स के मुताबिक भारत में किताब प्रकाशन का बाजार 15 गुना की दर से बढ़ रहा है। आज हर साल विभिन्न भारतीय भाषाओं में करीब दो लाख किताबें छपती हैं, जिनमें से 30 हजार अंग्रेजी की होती हैं। इंग्लिश में भारत से ज्यादा किताबें सिर्फ अमेरिका व इंग्लैंड में ही छपती हैं। पैरिस इंटरनैशनल बुक फेयर व फ्रैंकफर्ट बुक फेयर जैसे बड़े आयोजनों में भारत को 'गेस्ट ऑफ ऑनर' बनाया जाना साबित करता है कि साहित्य की दुनिया में भारत के महत्व को दुनिया भर में स्वीकारा जा रहा है।
अल-बिरूनी की पुस्तकें
अल-बिरूनी एक महान भाषाविद् था और उसने अनेक पुस्तकें लिखी थीं। अपनी मातृभाषा ख़्वारिज़्मी के अलावा जो उत्तरी क्षेत्र की एक ईरानी बोली थी और जिस पर तुर्की भाषा का प्रबल प्रभाव था, वह इब्रानी, सीरियाई और संस्कृत का भी ज्ञाता था। यूनानी भाषा का उसे कोई प्रत्यक्ष ज्ञान तो न था लेकिन सारियाई और अरबी अनुवादों के माध्यम से उसने प्लेटो तथा अन्य यूनानी आचार्यों के ग्रंथों का अध्ययन किया था। अरबी और फ़ारसी का उसे गहन ज्ञान था और ‘किताब-उल-हिन्द’ सहित उसने अधिकांश पुस्तकें फ़ारसी ही में लिखी थीं क्योंकि वही उस युग की अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी। उसी में समस्त सभ्य संसार के वैज्ञानिक ग्रंथ संग्रहीत थे और वही विज्ञान तथा साहित्य की विभिन्न शाखाओं में उपलब्ध बहुमूल्य योगदानों का माध्यम थी। अल-बिरूनी का आरंभिक जीवन एक ऐसे युग में बीता था जिसके दौरान मध्य एशिया में बहुत तेजी के साथ और बड़े प्रचंड राजनीतिक परिवर्तन हुए थे और उनमें से कुछ परिवर्तनों का प्रभाव उसके जीवन और कृतियों पर भी पड़ा था।
इब्नबतूता ने लिखा रिहला
विश्व-यात्री इब्नबतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृत्तांत जिसे रिह्ला कहा जाता है चौदहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा रोचक जानकारियाँ देता है। मोरक्को के इस यात्री का जन्म तैंजियर के सबसे सम्मानित तथा शिक्षित परिवारों में से एक जो इस्लामी कानून अथवा शरियत पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था में हुआ था। अपने परिवार की परंपरा के अनुसार इब्नबतूता ने कम उम्र में ही साहित्यिक तथा शास्त्ररूढ़ शिक्षा हासिल की। अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत इब्नबतूता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए-नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों तक गया। 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया इराक फारस यमन ओमान तथा पूर्वी आफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था। मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्नबतूता सन् 1333 में स्थलमार्ग से सिधं पहुंचा। उसने दिल्ली के सुल्तान महुम्मद बिन तुगलक के बारे में सुना था और कला और साहित्य के एक दयाशील संरक्षक के रूप में उसकी ख्याति से आकर्षित हो बतूता ने मुल्तान और उच्छ के रास्ते होकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। सुल्तान ने विद्वता से प्रभावित कर उसे दिल्ली का फाजी या न्यायाधीश नियुक्त कर दिया था।
बारह वर्ष में लिख दी किताब
रॉबर्ट ब्राउनिंग अंग्रेजी कवि एवं नाटककार थे। नाटकीय कविता, विशेषकर नाटकीय एकालापों में अतुल्य दक्षता के कारण उन्हें विक्टोरियन कवियों में अग्रणी स्थान प्राप्त है। ब्राउनिंग अपने माता पिता, रॉबर्ट और सारा एना ब्राउनिंग की पहली संतान थे और उनका जन्म लन्दन, इंग्लैंड के एक उपनगर कैम्बरवैल में हुआ था। उनके पिता बैंक ऑफ इंग्लैंड में एक लिपिक थे तथा उन्हें अच्छा वेतन मिलता था। उनकी वार्षिक आय लगभग 150 पाउंड थी। रॉबर्ट के पिता ने एक पुस्तकालय का गठन किया, जिसमें लगभग 6000 किताबों का संग्रह था। इनमें से कई किताबें दुर्लभ थीं। इस प्रकार रॉबर्ट का पालन पोषण एक साहित्यिक संसाधनों से भरे घर में हुआ। उनकी माँ, जिनके वे बहुत निकट थे, बड़े विद्रोही स्वभाव की थीं। साथ ही वे एक प्रतिभा संपन्न संगीतकार भी थीं। उनकी छोटी बहन सारिऐना भी बहुत प्रतिभाशाली थी। बाद के वर्षों में वही ब्राउनिंग की सहयोगी बनीं। उनके पिता ने साहित्य और ललित कलाओं में उनकी रूचि बढ़ाई। बारह वर्ष की आयु होने तक ब्राउनिंग ने कविताओं की एक पुस्तक लिख डाली थी, परन्तु कोई प्रकाशक ना मिलने के कारण उसे स्वयं ही नष्ट कर दिया।
पुस्तकों की बाढ़
इन दिनों पश्चिमी देशों में आज की दुनिया के बारे में ऐसी आशावादी तस्वीर प्रस्तुत करनेवाली पुस्तकों की बाढ़ आई हुई है। इनमें सबसे चर्चित पुस्तक है स्टीवेन पिंकर की –द बेटर एजिंल्स आफ अवर नेचर-व्बाय वायलेंस इज डीक्लाइंड। इस पुस्तक में पिंकर ने एक बहुत सनसनीखेज दावा किया है कि मध्य पूर्व में आतंकवाद, सूड़ान में नरसंहार और सोमालिया में गृहयुद्ध से कराहती 21वी सदी मानवीय इतिहास की सबसे कम हिंसक और दरिंदगी वाली सदी है। न केवल हत्याएं वरन यातना, गुलामी, घरेलू हिंसा, नफरतजन्य अपराध पहले की तरह बहुत आम नहीं रहे। हालांकि वे स्वयं मानते हैं कि उनके दावे को लोग आसानी से हजम नहीं कर सकते क्योंकि हमें हिंसा के इतने सारे उदाहरण रोज देखने को मिल जाते हैं और हमारी आंखे धोखा खा जाती हैं क्योंकि हम याद उदाहरणों के आधार पर हम संभाव्यताओं का हिसाब लगाते हैं। हमारे पास हर तरफ से हिंसा की खबरें आती हैं। और हम समझते हैं हत्या, बलात्कार, कबीलाई युद्ध और आत्मघाती हमलावर सब हमारे आसपास घूम रहे हैं।
शाहरुख की किताब और किंडल
फिल्म अभिनेता शाहरुख खान भी एक क़िताब पूरी करना चाहते हैं, जिसे वह काफी दिनों से लिख रहे हैं, लेकिन उन्हें अफसोस है कि अक्सर दूसरे कामों में व्यस्त हो जाने के कारण वह इसके लिए समय नहीं निकाल पाते। वह कहते हैं – मेरे पास किंडल है। वह किंडल के बिना घर से बाहर नहीं निकलते हैं। शूटिंग के बाद ज़्यादतर वक़्त या तो बच्चों के साथ बिताते हैं या फिर किंडल के साथ। किंडल 21वीं सदी के तकनीकी चमत्कारों में जुड़ी एक नई कड़ी है। किंडल एक तिहाई इंच से पतली एक मैगज़ीन की तरह है, जिसका वजन एक आम किताब से भी काफी कम होता है। आकार है 6 इंच से लेकर करीब 10 इंच तक और वजन महज तीन सौ ग्राम। तेज़ी से डिजिटल होती दुनिया में इसका इस्तेमाल आने वाले दिनों में हर वह व्यक्ति करता नज़र आ सकता है जिसे किताबों से प्यार है। स्कूलों में ये बच्चों को भारी भरकम बस्तों से निजात दिला सकता है क्योंकि इसमें एक बार में आप डेढ़ हज़ार से लेकर साढ़े तीन हज़ार तक किताबें स्टोर कर सकते हैं। किंडल हमेशा ऑन लाइन रहता है। इसके लिए आपको न तो अलग से कोई इंटरनेट कनेक्शन लेने की ज़रूरत है और न ही कोई मासिक या वार्षिक शुल्क देना है। आप दुनिया में कहीं भी जाएं, ये उपकरण 3 जी तकनीक से हमेशा अपने मदर सर्वर से जुड़ा रहता है। आप को जो भी किताब पढ़नी हो, बस उसे सेलेक्ट करना है और 60 सेकंड में ये किताब आपके किंडल पर डाउनलोड हो जाएगी। इसकी जो खूबी इसे लैप टॉप या पाम टॉप से भी बेहतर बनाती है वो है इसे किसी क़ागज़ की पत्रिका की तरह पढ़े जाने की खूबी। जी हां, इसमें किसी भी तरह की चमक नहीं होती है और तेज़ रोशनी में भी इसका आंखों पर कोई असर नहीं पड़ता। इसे एक बार चार्ज करने के बाद आप पूरे एक हफ्ते तक लगातार किताबें पढ़ सकते हैं और ज़रूरत होने पर अपने ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स भी पीडीएफ फॉर्मेट में इसमें ले जा सकते हैं। पांच लाख नई किताबों वाले इसके सर्वर पर रोज़ाना नई किताबें और पत्रिकाएं जुड़ रही हैं। सन 1923 से पहले प्रकाशित हुई करीब 18 लाख किताबें इस पर मुफ्त में पढ़ने के लिए मौजूद हैं।
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