न एक्को टिप्पन्नी-सिप्पनी, न कौनो ताक-झांक
आखिर एतना नाराजी क कौनो तो वजह होई
हम त रउवा लोगन के साथ कौनो एइसन गलती-सलती भी ना कइले बानीं,
हम ना जानि पावत हईं
कि बिलाग चलावै वाले बड़े-बड़े
मगजमरुअन के बीच हमारि हालत
लतमरुअन अइसन काहे होइ गइल बा।
बड़ी मेहनति से एग्गो सुत्तर हाथ में आवति दिखत ह
कि जब केहू के बिलाग पर कौनो टिप्पन्नी-सिप्पन्नी ना करति हईं
त ऊ लोग की बिरादरी से बाहर होव ही के परी।
ऊ लोग आपस में आजकल खू मुंह में मुंह सटाइ के
पच्च-पच्च पुच्ची मारत हउवैं,
लबर-लबर लिबरावत हउवैं,
केहू तुलसीदास होत जात बा
त चार लाइन पोंकि के केहू मुकितबोध के ब्रहम राछस के नाई
अपने मनवे डांस-डांस थिरकउले में मगन बा।
...त भइया ई शंकर बाबा लोगन के बरात में आपुन त तीन-तेरह क दशा होई जाई
चला भइया
कौनो बात नाहीं,
कब्बौं तक रउवा लोगन के मति-बुद्धी में हमार ढूंढि मची।
तब तक के लिए ...राम-राम, जै भोजपुरी!
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