Saturday, 15 February 2014

नोम चॉम्स्की

जहाँ तक मानव स्वतन्त्रता का प्रश्न है, यदि आप यह कल्पना कर बैठते हैं कि इसकी कोई आशा नही है तो इसका अर्थ हुआ कि आप यह आशवासन दे रहे हैं कि भविष्य में भी इसकी कोई उम्मीद नही है। किन्तु यदि आप यह मानते हैं कि स्वतन्त्रता हमारी मूल प्रवृति है, कि चीज़ों को बदलने की सम्भावना है, कि आशा करना सम्भव है... तो हो सकता है कि आपकी आशा सही निकले, तथा हो सकता है कि एक बेहतर संसार की रचना की जा सके! फैसला आपका है!         

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