Tuesday, 11 February 2014

धूमिल

करछुल बटलोही से बतियाती है और चिमटा तवे से मचलता है, चूल्हा कुछ नहीं बोलता, चुपचाप जलता है और जलता रहता है। बच्चे आँगन में आंगड़बांगड़, घोड़ा-हाथी, चोर-साव खेलते हैं, राजा-रानी खेलते हैं और खेलते रहते हैं, चौके में खोई हुई औरत के हाथ कुछ नहीं देखते, वे केवल रोटी बेलते हैं और बेलते रहते हैं, कुल रोटी तीन, पहले उसे थाली खाती है, फिर वह रोटी खाता है।

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