पथराया नेहों का टाल कहाँ जाएँ
गली-गली फैले हैं जाल कहाँ जाएँ।
देख-देख मौसम के धोखे बंद किए हारकर झरोखे
बैठे हैंअंधियारे पाल कहाँ जाएँ।
आए ना रंग के लिफ़ाफ़े बातों के नीलकमल हाफे
मुरझाई रिश्तों की डाल कहाँ जाएँ।
कुहरीला देह का नगर है मन अपना एक खंडहर है
सन्नाटे खा रहे उबाल कहाँ जाएँ?
गली-गली फैले हैं जाल कहाँ जाएँ।
देख-देख मौसम के धोखे बंद किए हारकर झरोखे
बैठे हैंअंधियारे पाल कहाँ जाएँ।
आए ना रंग के लिफ़ाफ़े बातों के नीलकमल हाफे
मुरझाई रिश्तों की डाल कहाँ जाएँ।
कुहरीला देह का नगर है मन अपना एक खंडहर है
सन्नाटे खा रहे उबाल कहाँ जाएँ?
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