Monday, 1 July 2013

उत्तर रामचरित - भवभूति


उत्तर रामचरित महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। उत्तर रामचरित के सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। जनापवाद के कारण राम ना चाहते हुए भी सीता का परित्याग कर देते हैं। सीता के त्याग के बाद विरही राम की दशा का तृतीय अंक में करुण चित्र प्रस्तुत किया गया है, जो काव्य की दृष्टि से इस नाटक की जान है। भवभूति ने इस दृश्यकाव्य में दांपत्य प्रणय के आदर्श रूप को अंकित किया है। कोमल एवं कठोर भावों की रुचिर व्यंजना, रमणीय और भयावह प्रकृति चित्रों का कुशल अंकन इस नाटक की विशेषताएँ हैं। उत्तररामचरित में नाटकीय व्यापार की गतिमत्ता अवश्य शिथिल है और यह कृति नाटकत्व की अपेक्षा काव्यतत्व और गीति नाट्यत्व की अधिक परिचायक है। भवभूति की भावुकता और पांडित्यपूर्ण शैली का चरम परिपाक इस कृति में पूर्णत: लक्षित होता है। उत्तर रामचरित पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें घनश्याम, वीरराघव, नारायण और रामचंद्र बुधेंद्र की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके अनेक भारतीय संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अधिक प्रचलित 'निर्णयसागर' संस्करण है, जिसका प्रथम संस्करण सन् 1899 में बंबई से प्रकाशित हुआ था। इसके और भी अनेक संपादन निकल चुके हैं।

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