हिन्दी के प्रख्यात् साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और महापुरूषों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। प्रस्तुत उपन्यास 'यशोधरा जीत गई' में उन्होंने जननायक गौतम बुद्ध का चरित्र ऎतिहासिक दृषिट से प्रस्तुत किया है। 'यशोधरा जीत गई' उसी कड़ी की एक प्रमुख रचना है। 'यशोधरा जीत गई' में राष्ट्र की तात्कालिक स्थितियों में बुद्ध के जीवन का चित्रण हुआ है। वस्तुतः बुद्ध के समय में धर्म या राजनीति का विघटन शुरू हो गया था और देश में राजनीतिक और वैचारिक अराजकता छा रही थी। ऎसे समय में बुद्ध ने अपने तप-बल से करोड़ों भ्रमित और धार्मिक रूप से निस्सहाय मनुष्यों को मानसिक आश्रय और शान्ति प्रदान की। इस उपन्यास में बुद्ध के अजेय और सुदृढ़ व्यक्ति के निर्माण में संलग्न करूणा-कोमल यशोधरा का भी मार्मिक रूप प्रस्तुत किया गया है। जिसके समक्ष एक बार बुद्ध का तपोबल भी नत हो गया था।
Monday, 1 July 2013
यशोधरा जीत गई
हिन्दी के प्रख्यात् साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और महापुरूषों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। प्रस्तुत उपन्यास 'यशोधरा जीत गई' में उन्होंने जननायक गौतम बुद्ध का चरित्र ऎतिहासिक दृषिट से प्रस्तुत किया है। 'यशोधरा जीत गई' उसी कड़ी की एक प्रमुख रचना है। 'यशोधरा जीत गई' में राष्ट्र की तात्कालिक स्थितियों में बुद्ध के जीवन का चित्रण हुआ है। वस्तुतः बुद्ध के समय में धर्म या राजनीति का विघटन शुरू हो गया था और देश में राजनीतिक और वैचारिक अराजकता छा रही थी। ऎसे समय में बुद्ध ने अपने तप-बल से करोड़ों भ्रमित और धार्मिक रूप से निस्सहाय मनुष्यों को मानसिक आश्रय और शान्ति प्रदान की। इस उपन्यास में बुद्ध के अजेय और सुदृढ़ व्यक्ति के निर्माण में संलग्न करूणा-कोमल यशोधरा का भी मार्मिक रूप प्रस्तुत किया गया है। जिसके समक्ष एक बार बुद्ध का तपोबल भी नत हो गया था।
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