हेदी मिशेल
सीएटल में एक परिवहन योजनाकार मिशेल गिन्डर ने आधी छोड़ी पुस्तकों को पूरा पढ़ने के लिए खुद पर दबाव डाला। एक उत्साही पाठक गिन्डर कहती हैं कि वो उपन्यास को बीच में छोड़ने पर खुद को भगौड़े सरीखा महसूस करती थीं। तब, जॉन सेल्स के 2011 में आए ‘ए मोमेंट इन द सन’ और ‘स्टिल नौट नोइंग व्हाट इट वॉस अबाउट’, को धीमे-धीमे पढ़ते हुए, उन्होंने पुस्तक को बीच में बंद करने का चेतन फैसला लिया। उन्होंने ज्यादा दिलचस्प ‘गेम ऑफ थ्योरी’ श्रंखला को पढ़ना शुरू किया।
“उसे पढ़कर काफी अच्छा महसूस हुआ,” 39 वर्षीय सुश्री गिन्डर ने कहा। “किसी किताब को आधे में छोड़ने से अपराध बोध घर कर लेता है, लेकिन जब मैंने अंतत: पुस्तक को पूरा पढ़ लिया, यह इस बोध से मुक्त होने जैसा था।”
ई-रीडर वाले युग में, एक पुस्तक को छोड़ना आसान नहीं है: क्योंकि शेल्फ से दूसरी पुस्तक निकालने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन एक पुस्तक को समयपूर्व आधे में छोड़ना, विचित्र तौर पर अति-पीढ़ादायक होता है, जो पाठक को अपराध बोध से भर देता है।
“ये हमारी रचना के विपरीत है,” मैथ्यू विलहेल्म कहते हैं, जो कैलिफ के यूनियन सिटी के केसर पर्मेनेट में एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक हैं। “हमारी प्रवृत्ति चीज़ों को ‘पूरा’ अथवा ‘पूर्णरूप से समझने’ की होती है, हालांकि, वे ऐसे नहीं भी हों। ये प्रेरणा बहुत शक्तिशाली है और अपूर्ण कार्यकलापों को लेकर व्यग्रता को समझने में मददगार भी है,” वह कहते हैं।
बीच में रुकने का विचार काफी दबावपूर्ण है, लेकिन फिर भी, हम ऐसा करते हैं। बल्कि कभी-कभी तो इसका दम भी भरते हैं। अमेज़न.कॉम इंक द्वारा हाल ही में पाठकों के लिए शुरू किए ऑनलाइन समुदाय गुडरीड्स पर वेबसाइट ने अपने 18 मिलियन सदस्यों को अब तक की सबसे अधूरी पुस्तकों को श्रेणीबद्ध करने को कहा, जिसके लिए 7,300 सदस्यों ने वोटिंग की। सूची में शीर्ष पर थीं- जोसफ हेलर की अमेरिकन क्लासिक, ‘कैच 22’। ‘लॉर्ड्स ऑफ द रिंग्स’ श्रंखला की पुस्तकें दूसरे नंबर पर रहीं।
16 और उससे ज्यादा उम्र के पाठकों ने साल में औसतन आठ पुस्तकें पढ़ीं, प्यू रिसर्च सेंटर डाटा बताता है, जबकि 17 माध्यिका रही। सुश्री गिन्डर भी इसी गति से पढ़ती थीं। लेकिन वो कहती हैं कि पढ़ने के प्रति अपने बदले नज़रिए के चलते वो अब एक साल में करीब 31 पुस्तकें पढ़ लेती हैं। उनके शेल्फ अथवा किंडल में करीब 10 पुस्तकें हमेशा शुरू करने को होती हैं। जब वो एक पुस्तक छोड़ती हैं, तो अमूमन कुछ सैंकेड में ही दूसरी उठा लेती हैं।
सारा नेल्सन, जो अमेज़न.कॉम में पुस्तकों और किंडल की संपादकीय निदेशक हैं, देखती हैं कि किंडल पाठक अकसर पुस्तकें बीच में ही पढ़ना छोड़ देते हैं। वह मानती हैं कि ई-रीडर ने अतिलोलुप ग्राहकों को रूकने का लाइसेंस नहीं दिया है, लेकिन पुस्तक में सरसरी नज़र डालना और हटाना, उनके मिजाज़ पर निर्भर है। लिहाज़ा जबकि आप आधे में ही पढ़ना रोक सकते हैं, आप बाद में भी आसानी से पुस्तक पढ़ सकते हैं, वह कहती हैं। वो खुद एक पुस्तक को वापस डिजिटल शेल्फ में रखने से पहले उसके करीब 25 पृष्ठों को मंत्रमुग्ध होने के लिए पढ़ती हैं।
ओप्राह मैगज़ीन ‘ओ’ में पुस्तक संपादक लीग हेबर, जो ओप्राह विनफ्रे को उनके मशहूर ओप्राह बुक क्लब के विचारार्थ उम्मीदवार संबंधी सुझाव देती हैं, कहती हैं कि बेशक पुस्तकों को आधे में छोड़ देने की चिर-परिचित वजह ध्यान भंग होना और ऊबना है, लेकिन वो इसके लिए लेखनी के खिलाफ ज्यादातर प्रतिघाती व्यवहार को उत्तरदायी ठहराती हैं, जिसमें तकनीक, कहानी कहने की कला को पछाड़ देती है।
विशिष्ट श्रेणी के लोगों की पुस्तक को जल्द पूरा करने की ज्यादा संभावना होती है। डॉ.विलहेल्म का सिद्धान्त कि वे प्रतिस्पर्धी लोग, जिनकी शख्सियत टाइप-ए की होती है, के पुस्तक जल्द छोड़ देने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, क्योंकि उनके भीतर पुरस्कारों अथवा सज़ा से ज्यादा प्रोत्साहित होने की प्रवृत्ति होती है और “अगर कोई परिणाम अथवा सार्वजनिक मान्यता नहीं मिलेगी, तो वो पुस्तक को क्यों पूरा पढ़ें?”
वह कहते हैं कि इसके विपरीत ज़्यादा शांतचित्त, बी-प्रकार के लोगों को अगर लगता है कि फलां पुस्तक पूरी नहीं पढ़ पाएगें, तो शायद वो पुस्तक पढ़ना शुरू ही नहीं करेगें। डॉ.विलहेल्म कहते हैं कि एक पुस्तक को खत्म करने का सबसे महत्वपूर्ण प्रोत्साहक सामाजिक दबाव है, इसलिए पुस्तक क्लब पाठकों को परिशिष्ट भाग में लाने हेतु ज्यादा अच्छे हैं।
मैरी विल्कस टॉरनर जैसे लाइब्रेरियन, जो यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉयस, अर्बाना-शैंपेन, के ग्रैजुएट स्कूल ऑफ लाइब्रेरी ऐंड इनफोर्मेशन साइंस में सहायक लेक्चरर हैं, हमेशा पाठकों को जब वे चाहें तो रुकने की इजाज़त देती हैं। वो इसे बचपन में पाठन को एक कार्य समझने वाली गतिविधि के रूप में देखती हैं। “मैंने पाया कि 30 की उम्र के लोग, पुस्तक खत्म करने पर अपराधबोध से ग्रसित होते हैं-उन्होंने इस संदर्भ में ठीक वैसे महसूस किया होगा, जैसे कभी उनसे बचपन में प्लेट पर रखा सब कुछ खाने को कहा गया होगा,” वह कहती हैं। सांस्कृतिक रूप से साक्षर होने के लिए आप उनपर सरसरी निगाह डालते हैं। लेकिन हम सभी को खुद को छोड़ने की इजाज़त देनी होती है।
सही पुस्तकों का चयन एक व्यक्ति के जीवन में पढ़ी जा सकने वाली पुस्तकों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ाता है, वह कहती हैं।
कुछ मनोविज्ञानी पुस्तकों के प्रति सहिष्णुता को कार्य के प्रति दृढ़ता के नज़रिए से देखते हैं। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसन में नैदानिक सहायक प्रोफेसर मीना दसारी निजी अभ्यास में ज्यादातर बच्चों के साथ काम करती हैं। वह इसे कार्य प्रबंधन की क्षमता से जोड़ती हैं, तब भी अगर पुरस्कार और असंतोष अस्थिरता इस बात पर निर्भर हो कि उन भावनाओं की वजह क्या है। “अगर आप कहते हैं, मैं उतनी स्मार्ट नहीं, तब शायद आप उसका परित्याग कर देगें,” वह कहती हैं। “लेकिन अगर आप कहते हैं, ये महज़ एक कठिन पुस्तक है, उम्मीद है कि आप उसे पूरा पढ़ लेगें। इसके अलावा, अगर आपके साथियों अथवा बुक क्लब ने पुस्तक पूरी पढ़ ली है, वो बाहरी दबाव शक्तिशाली हो सकते हैं। “जब मैं बुक क्लब में थी, उस दौरान मैंने ज्यादातर पुस्तकें पूरी पढ़ डालीं,” डॉ.दासारी कहती हैं।
सुश्री हेबर ने बताया था कि ओप्राह मैगज़ीन की कुछ पुस्तकें काफी कठिन थीं।
“अगर आप गलत वक्त पर कोई पुस्तक पढ़ते हैं, तो आप उससे नहीं जुड़ पाएगें,” वह कहती हैं। जोनाथन फ्रैनज़ेन की ‘द करेक्शन्स’ में पूरी तरह लीन होने से पहले कुछ वक्त तक ये पुस्तक पढ़ना शुरू किया और फिर बीच में ही रुक गईं, वो इस उपन्यास को पूरा पढ़ने का श्रेय इसे छुट्टियों में पढ़ने के प्रयास को देती हैं। वह कहती हैं कि अपनी नियमित जिंदगी के बाहर जाकर पढ़ने से पुस्तक को नए मायने मिले।
लेकिन ऐसी भी कुछ जादुई पुस्तकें हैं, जिन्हें आप अपनी जिंदगी के विभिन्न चरणों में अलग ढंग से पढ़ते हैं, वह कहती हैं आगे ये जोड़ते हुए कि एक युवती कदाचित ‘अन्ना कारेनीना’ को जुनून के साथ पूरा करेगी। अपनी जिंदगी के अगले चरण में एक मां शायद इस मुख्य किरदार को मतलबी और गैरज़िम्मेदार समझ सकती है।
सुश्री हेबर कहती हैं कि प्रकाशक चाहते हैं कि पाठक पूरी पुस्तकें पढ़ें, ताकि वो लेखक को अंगीकार कर उसकी और रचनाएं खरीद सकें। लेकिन बतौर पूर्व पुस्तक संपादक, वो पुस्तक उद्योग के अंदर के लोगों की सीमा रेखा के दबाव को समझ सकती हैं और स्वीकारती हैं कि ज्यादा से ज्यादा पुस्तकों का उचित ढंग से संपादन करने के लिए यथोचित वक्त दिया जाना चाहिए। अगर वो पाती हैं कि एक पुस्तक के शुरुआती 25 पृष्ठ खराब ढंग से संपादित किए गए हैं, सुश्री हेबर स्वीकारती हैं कि वो उसे एक किनारे रख देगीं। उनके ज्यादातर दोस्तों और साथियों की तरह, वह कहती हैं कि वो फिर भी उसे लेकर खुद को दोषी मानती हैं।
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