Sunday, 30 June 2013

मशहूर पेंटर अखिलेश की पसंदीदा किताबें


हालांकि मैं हर तरह की किताबें पढ़ना पसंद करता हूं, लेकिन ऐसी किताबें खास तौर से पंसद आती हैं, जो अपनी बुनावट-बनावट में कला के नजदीक होती हैं। मेरी निगाह से गुजरी ऐसी ही पांच पसंदीदा किताबें ये हैं...
बिमल उर्फ जाएं तो जाएं कहां
कृष्ण बलदेव वैद का यह उपन्यास मुझे हिंदी में अपनी तरह का अकेला ऐसा उपन्यास लगता है, जिस पर उपन्यास लेखन की किसी भी नियमावली का कोई दबाव नहीं है। यह उपन्यास अपनी भाषा, अपना शिल्प और अपना सौंदर्य खुद अपने भीतर अर्जित करता है। मुझे इसे पढ़ने के पहले तक कभी नहीं लगा था कि हिंदी में भाषा के साथ और भाषा के भीतर घटित होने वाला कोई उपन्यास भी लिखा जा सकता है।
कुछ वाक्य
उदयन वाजपेयी की यह कविता पुस्तक मृत्यु और प्रेम पर एक तरह से मेडिटेशन है। उदयन मृत्यु और प्रेम के विचार को कविता में यथार्थवादी ढंग से शुरू कर एब्सट्रैक्ट के स्तर तक ले जाते हैं, जो एक पेंटर होने के नाते मुझे बहुत भाता है। आधुनिक हिंदी कविता में मृत्यु और प्रेम का इतना सुंदर संग-साथ बहुत कम जगह देखने को मिलता है। इस पुस्तक में तो खैर शुरू से अंत तक है।
राइटर्स ऑन आर्टिस्ट
यह किताब एक तरह से मित्र पुस्तक है, दो कला-माध्यमों के बीच मित्र-संवाद की मिसाल। दुनिया भर के महत्वपूर्ण लेखकों ने कलाकारों के काम पर बहुत स्नेह लेकिन गहरी अंतर्दृष्टि से लिखा है। यह किताब बताती है कि कैसे एक माध्यम में काम करने वाला कलाकार दूसरे माध्यम से प्रभावित होता और सीखता है। हिंदी में काश ऐसी किताब बन पाती!
डाली बाय डाली
यह महान पेंटर सल्वाडोर डाली की डायरी है। डाली ने इस किताब में खुद के बारे में ऐसी बातें लिखी हैं, जो परिचित डाली से अलग हैं। यह इस बात की तस्दीक है कि दुनिया जिस शख्स को जैसा जान-समझ कर फैसले देती है, उससे अलग भी उसका एक जीवन, सोच, अनुभव और दृष्टि होती है। किताब डाली के साथ उनके प्रेरणास्त्रोतों और खासतौर से उनकी पत्नी के बारे में भी कई दिलचस्प पहलुओं का बखान है।
योगवशिष्ठ
यह मेरी बहुत प्रिय पुस्तक है। इस पुस्तक में राम और उनके गुरु वशिष्ठ के बीच संवाद है। राम प्रश्न पूछते हैं, गुरु उन प्रश्नों का जवाब देते हैं। राम की जिज्ञासाएं कई तरह की हैं, गुरु के जवाब भी विविध हैं। सच पूछिए तो यह पुस्तक मैं मुनि वशिष्ठ के जवाबों में निहित ज्ञान और शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि उस कल्पना की उड़ान के लिए पढ़ता हूं, जो एक लेखक-विचारक में होती है और जिससे पढ़नेवाले के दिमाग में कुछ नई जगहें रोशन होती हैं। (नवभारत टाइम्स/अनुराग वत्स)

No comments:

Post a Comment