Sunday, 30 June 2013

यहां जिंदगी संवरती है


रश्मि माहेश्वरी

किताबें बेहतर जिंदगी का रास्ता बनाती हैं। किताबों के घर यानी पुस्तकालय की इसमें अहम भूमिका है। नीदरलैंड्स में लीडन यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी की शुरूआत 1587 में 31 अक्टूबर को हुई थी। इस पुस्तकालय को यूरोप की सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण दर्जा दिया जाता है। सांस्कृतिक विकास और ज्ञान-विज्ञान के प्रसार में जिन केंद्रों ने अपना योगदान दिया, उनमें इस पुस्तकालय का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। पुस्तकालय की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 35 लाख पुस्तकों के साथ 10 लाख ई-बुक्स, करीब 30 हजार ई-जर्नल्स, 60 हजार पांडुलिपियां और 12 हजार ड्रॉइंग्स आदि का व्यापक संग्रह मौजूद है।
16वीं शताब्दी में हुए डच विद्रोह के बाद सांस्कृतिक अवधारणाओं में कई स्तरों पर बदलाव देखने को मिले।
जल्द ही शिक्षा के विस्तार के बारे में सोचा जाने लगा और 1575 में लीडन यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई। इसके बाद लेक्चर हॉल्स के करीब पुस्तकालय की अहमियत का अनुभव हुआ। स्पेन के खिलाफ हुए डच विद्रोह के अग्रणी नेता प्रिंस ऑफ ऑरेंज, विलियम प्रथम, जो लीडन यूनिवर्सिटी की स्थापना में निर्णायक साबित हुए, ने पुस्तकालय के लिए पहली पुस्तक दान में दी। इतिहास के ऎसे ही महत्वपूर्ण पड़ाव में 1595 में आए "नॉमनक्लेटर" का जिक्र भी किया जाता है। यह इस पुस्तकालय का प्रथम कैटलॉग (सूचीपत्र) था। इसे दुनिया भर में किसी संस्थागत पुस्तकालय का पहला प्रकाशित सूचीपत्र भी माना जाता है।
यह पुस्कालय अपने वर्तमान स्थान विटे सिंजेल, लीडन की नई इमारत में वर्ष 1983 में शिफ्ट हुआ। इस विशाल इमारत की स्थापना का श्रेय वास्तुकार बार्ट वान कास्टील को दिया जाता है। 1988 में पुस्तकालय का प्रथम ऑनलाइन सूचीपत्र उपलब्ध हुआ। इतिहासकारों की नजर में इस पुस्तकालय को पुस्तकों के समृद्ध संग्रह के साथ ही इनकी सालों साल उचित सार-संभाल आदि और शैक्षिक विकास में मददगार होने के चलते अहम धरोहर का दर्जा दिया जाता रहा है। "फस्ट्र्स" नाम से यहां जो सूचीपत्र बनाया गया, उसकी तुलना आज के पुस्तकालयों के "स्पेशल कलेक्शंस" से की जाती है।
इस पुस्तकालय का उद्देश्य महज पुस्तकों का संग्रह ही नहीं रहा, बल्कि ज्ञान-विज्ञान के हर सरोकार से इसका जुड़ाव रहा है। डिजिटल प्रकाशन के मामले में भी इसकी खूब चर्चा होती है। 400 से अधिक डाटाबेस के साथ 30 हजार से अधिक ई-जर्नल्स, करीब 5 हजार न्यूजपेपर्स और मैगजीन्स के साथ ई-बुक्स और रेफरेंस वर्क इसका सहज उदाहरण पेश करते हैं। "लीडन यूनिवर्सिटी डिजिटल रिपॉजिटरी" के जरिए सभी शोध निबंधों को ऑनलाइन उपलब्ध करवाया जाता है। वर्ष 2007 से पुस्तकालय ने सुविधाओं के नवीकरण के लिए विशेष प्रयास किया है।
दिसम्बर 2007 से संपूर्ण पुस्तकालय में वायरलैस एक्सेस का लाभ उठाया जा सकता है। मार्च 2008 में पूर्ण नवीकरण के बाद स्पेशल कलेक्शंस रीडिंग रूम की शुरूआत हुई। इस साल मार्च माह में यहां पुस्तक प्रदर्शनी के लिए नए एग्जिबिशन स्पेस का आरंभ हुआ है। लीडन यूनिवर्सिटी पुस्तकालयों में आज के दौर में यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी, सोशल एंड बिहेवियरल साइंसेज लाइब्रेरी, लॉ, मैथमेटिक्स एंड नेचुरल साइंसेज लाइब्रेरी और ईस्ट एशियन लाइब्रेरी को शुमार किया जाता है। योजना के अनुसार वर्ष 2015 में ईस्ट एशियन लाइब्रेरी को इसके वर्तमान स्थान से यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी की शीर्ष मंजिल पर बनने वाले नए फ्लोर पर शिफ्ट किया जाएगा।
पुस्तकालय के विशेष संग्रह में पाश्चात्य पांडुलिपियों के साथ बॉडेल निजेन±युइस कलेक्शन अहम है, जिसमें पुराने नक्शों और ड्रॉइंग्स आदि का संग्रह है। एशियाई संग्रह में वर्तमान में करीब 30 हजार पांडुलिपियां और विभिन्न विषयों पर करीब 2 लाख किताबें शामिल हैं। इस क्रम में डच सोसाइटी ऑफ लैटर्स की स्थापना 1766 में हुई, जिसके जरिए भाषायी विषयों के अध्ययन का उद्देश्य रखा गया। सोसाइटी का 1876 में इस पुस्कालय से जुड़ाव हुआ। 1822 में यहां पिं्रट रूम की स्थापना हुई। इसमें 16वीं शताब्दी से वर्तमान तक की कई कलाकृतियों का समावेश है।
बड़े पोर्ट्रेट्स, ड्रॉइंग्स और करीब 80 हजार फोटोग्राफ्स आदि यहां की खासियतों में शुमार हैं। गॉल्जियस, विशेर, रैंबे्रंड्ट, ट्रूस्ट, मॉरिस आदि कई चर्चित डच कलाकारों की कलाकृतियों के साथ दुनिया के कई अन्य नामचीन कलाकारों के बेहतरीन आर्ट वर्क को भी यहां देखा जा सकता है। पुस्तकालय में वर्ष 2000 में स्थापित स्केलिजर इंस्टीट्यूट के जरिए लेक्चर्स, सिम्पोजिया और स्पेशल कोर्स आदि की व्यवस्था के साथ कनिष्ठ और वरिष्ठ शोधार्थियों के लिए स्कॉलरशिप का इंतजाम भी किया जाता है। संस्थान की स्थापना लीडन के विद्वान जोसेफस जस्टस स्केलिजर के नाम पर की गई है। पुस्तकालय में पुरातत्व विज्ञान, मानव विज्ञान, कला, खगोल विज्ञान, दर्शन, राजनीति, धर्म व विज्ञान सहित कई विषयों पर बेहतरीन पुस्तकों का संग्रह किया गया है। यहां कुछ व्यक्तिगत संग्रहों के समावेश के साथ संस्थागत संग्रहों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है।

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