Tuesday 25 June 2013

किताबें ही प्रजा, किताबें ही राजा

         हमारे आसपास बिखरी हैं किताबें। नई किताबें..पुरानी किताबें..। अच्छी किताबें..बुरी किताबें..। बड़ों की किताबें..बच्चों की किताबें..। किताबों का साम्राज्य है..किताबों का शासन है..। किताबें ही प्रजा हैं..किताबें ही राजा हैं..। किताबों की सड़क है और किताबों की ही इमारत है.। वाह, कितना सुखद स्वप्न है यह, या फिर एक कोरी कल्पना..। आज के इंटरनेट युग में किताबों का ऐसा संसार कहां? किताबें तो अब किताबों की बातें बन चुकी हैं। हमारे पास इतना समय ही कहां कि इस इंटरनेट की दुनिया से बाहर आएं और किताबों के पन्ने पलटें। हम तो रच-बस गए हैं इंटरनेट के मायाजाल में। फंस गए हैं जानकारियों के ऐसे चक्रव्यूह में, जहां से बाहर निकलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन लगता है। सबकी खबर है हमें, केवल स्वयं को छोड़कर। आओ किताबों की इस खत्म होती दुनिया में मन की किताब खोलें और उस किताब में एक नाम जोड़ें विश्वास का..आत्म-अनुशासन का..आत्मसम्मान का..स्वाभिमान का..। आओ शुरुआत करें और प्रयास करें मन की एक नई किताब लिखने का। आज की पीढ़ी का मानो किताबों से नाता ही टूट गया। हर बात के लिए उनके पास ‘गूगल बाबा’ हैं ना! एक यही ‘बाबा’ हैं, जो हमें हर जगह हमेशा ले जाने को तैयार हैं। इसके बिना तो आज किसी भी ज्ञान की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती।
युवाओं के हाथों में किताब तो है, पर उसे वे ऐसे देखते हैं मानो कोई अजूबा हो। छोटे-छोटे नोट्स से ही उनका काम चलता है। अच्छा भी है शायद, अब किसी पोथी से उनका वास्ता ही नहीं पड़ता। पोथी देखकर वे बिदकने लगेंगे। हमारे पास ज्ञान के लिए ‘गूगल बाबा’ हैं, यह सच है। पर इनके दिए ज्ञान को हम कब तक अपने दिमाग में रखते हैं? ‘गूगल बाबा’ के ज्ञान से केवल परीक्षा ही दी जा सकती है। पर हमारे पूर्वजों ने जो ज्ञान दिया है, वह तो जीवन की परीक्षा में पास होने के लिए दिया है, जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए दिया है। आज उनके दिए ज्ञान का उपयोग कम से कम हो पा रहा है।
शोध बताते हैं कि ‘गूगल बाबा’ की शरण में रहने वालों की स्मृति कमजोर होने लगी है। आखिर कहां जाएंगे कमजोर याददाश्त लेकर हम सभी? सब कुछ है ‘गूगल बाबा’ के पास। पर शायद नहीं है, तो मां का ममत्व, पिता का दुलार, बहन का अपनापा या फिर प्रेमी या प्रेयसी का प्यार। हम जब मुसीबत में होते हैं, तब चाहकर भी ‘गूगल बाबा’ हमारे सिर पर हाथ नहीं फेर सकते। हमारे आंसू नहीं पोंछ सकते। हमें सांत्वना नहीं दे सकते। ‘बाबा’ हमें ज्ञानी तो बना सकते हैं, पर एक प्यारा-सा बेटा, समझदार भाई, प्यारे-से पापा, अच्छा पति नहीं बना सकते। इसलिए कहता हूं ‘बाबा’ को घर के आंगन तक तो ले आओ, पर घर के अंदर घुसने न दो। अगर ये घर पर आ गए, तो समझो हम सब अपनों से दूर हो जाएंगे, हम गैरों से घिर जाएंगे। यहां सब कुछ तो होगा, पर कोई अपना न होगा। कैसे रहोगे फिर उस घर में?
किताबों से दोस्ती करो। ये हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। हमारे सुख-दुख में यही काम आएंगी। जब ये हमसे बातें करेंगी, तो हमें ऐसा लगेगा, जैसे मां हमें दुलार रही हैं, पिता प्यार से सिर पर हाथ फेर रहे हैं, बहना और दीदी हमसे चुहल कर रही हैं। अपनापे और प्यार का समुद्र लहराने लगेगा। किताबें हमसे कुछ कहने के लिए आतुर हंै। वह दिन बहुत ही यादगार होगा, जब यही किताबें तुमसे ज्ञान प्राप्त करेंगी। हम सब गर्व से कह उठेंगे कि किताबों जैसा कोई नहीं। तो हो जाओ तैयार पढ़ने के लिए एक किताब प्यारी-सी। (myhindiforum.com से साभार)

No comments:

Post a Comment