कथाकार शिवमूर्ति को लमही सम्मान
लखनऊ में मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर कथाकार व उपन्यासकार शिवमूर्ति को लमही सम्मान से सम्मानित किया गया था। इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि व आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा था कि आज हर पुरस्कार संदेह पैदा करता है। पुरस्कार इतने अधिक हो गए हैं कि कोई लेखक ऐसा नहीं होगा जिसे कोई पुरस्कार न मिला हो। ऐसे में पुरस्कारों की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को लेकर सवाल भी उठते हैं। वास्तव में पुरस्कार और सम्मान की विश्वसनीयता इसी में है कि वह किसे दिया जा रहा है। पुरस्कार मिलने से मित्रों की संख्या कम होने लगती है और शत्रु बढ़ने लगते हैं। समारोह में साहित्य में यथार्थ के चित्रण को लेकर वक्तव्यों में विरोध भी उभरा। ग्रामीण यथार्थ के चित्रण के लिए प्रशंसित साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि साहित्य आम आदमी का रोजनामचा है। इसके माध्यम से आम आदमी के जीवन और समाज को जाना जा सकता है। वहीं वाजपेयी का कहना था कि सिर्फ यथार्थ का चित्रण करना ही साहित्य का काम नहीं है। यथार्थ इतिहास रचता है। साहित्य का यथार्थ से संबंध संवाद का भी हो सकता है और द्वंद्व का भी। उन्होंने कहा कि साहित्य में प्रतियथार्थ रचना अधिक यथार्थवादी कार्य हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य ही एकमात्र राजनीतिक प्रतिपक्ष है। बाकी प्रतिपक्ष तो दिखावे का है। राजनेता एवं राजनीतिक दल केवल अपनी बारी की प्रतीक्षा में रहते हैं।
समारोह में शिवमूर्ति के जिला सुल्तानपुर के गांव कुरंग, नरवहनपुर, ओरझा से रामकरन यादव, भीष्मप्रताप सिंह, जमुना प्रसाद, राम पियारे, राम खेलावन, जोखू पाल समारोह में शामिल हुए थे। शिवमूर्ति ने उनका नाम लेकर सबसे परिचय कराया और उनसे जुड़े किस्से भी सुनाए। शिवमूर्ति ने बताया कि किस प्रकार वे अपने साथियों के साथ साइकिल पर बैठकर कई किलोमीटर चले जाते थे। एक बार वे अपने गांव के साथी के साथ उपेंद्रनाथ अश्क से मिलने गए थे और उन्हें एक पराठे से काम चलाना पड़ा।
अशोक वाजपेयी का कहना था कि शिवमूर्ति से हमें इस बात की भी प्रेरणा मिलती है कि महत्वपूर्ण होने के लिए ज्यादा लिखना जरूरी नहीं है। उन्होंने खुद का उपहास उड़ाते हुए कहा कि हम तो बेकार ही हजार कविताएं लिख बैठे हैं। समारोह में शिवमूर्ति को लमही परिवार की ओर से लमही सम्मान के अंतर्गत स्मृति चिह्न, मानपत्र, 15 हजार रुपये की सम्मान राशि प्रदान की गई। इस मौके पर सुशील सिद्धार्थ के अतिथि संपादन में निकले लमही के शिवमूर्ति विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ। समारोह में मानपत्र का वाचन कथाकार किरण सिंह ने किया। आरंभ में संयोजक विजय राय ने स्वागत किया। समारोह में वैभव सिंह ने शिवमूर्ति पर आधारित वक्तव्य दिया। संचालन ओम निश्चल ने किया।
शिवमूर्ति कहते हैं कि गांव के दुख-दर्द, अन्याय, असमानता, शोषण ने उन्हें कलम उठाने के लिए प्रेरित किया। इस बात पर तो विवाद हो सकता है कि साहित्य से क्रांति होती है या नहीं लेकिन यह जरूर है कि इससे क्रांति की जमीन तैयार होती है। साहित्य सबको प्रिय लगे यह जरूरी नहीं लेकिन इसमें सबके हित की भावना जरूर होनी चाहिए। प्रधानमंत्री के भोज में एक थाली की कीमत सात हजार रुपये से अधिक होती है जबकि एक ऐसे आदमी जिसकी रोज की आमदनी 28 रुपये है, उसे गरीबी रेखा से ऊपर माना जाता है। एक वक्त की थाली के लिए सात रुपये ही आते हैं। आज समाज में गरीब और अमीर के बीच का अंतर हजार गुना, लाख गुना होता जा रहा है। वह कहते हैं कि साहित्य में विचारधारा उसी प्रकार होनी चाहिए जिस प्रकार चीनी पानी में पूरी तरह घुलकर शर्बत बन जाता है। हर गलत का प्रतिरोध ही लेखक की राजनीति होनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment