बच्चे
कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय
जीव होता है। मेरी लड़की ने उस दिन पूछ लिया कि नाखून क्यों बढते हैं, तो
मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे
कुछ दिन तक अगर उन्हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप
अकसर उन्हें डाँटा करते हैं। पर कोई नहीं जनता कि ये अभागे नाखून क्यों इस प्रकार
बढ़ा करते हैं। काट दीजिए,
वे चुपचाप दंड
स्वीकार कर लेंगे;
पर निर्लज्ज
अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर। आखिर ये इतने बेहया क्यों हैं?
कुछ लाख
वर्षों की बात है,
जब मनुष्य जंगली
था; बनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन रक्षा
के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। दाँत भी थे, पर
नाखून के बाद ही उसका स्थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंद्वियों
को पछाड़ना पड़ता था,
नाखून उसके लिए
आवश्यक अंग था। फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा। पत्थर के
ढेले और पेड़ की डालें काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही
अस्त्र थे)। उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये। इन हड्डी के हथियारों में सबसे
मजबूत और सब से ऐतिहासिक था देवताओं के राजा का वज्र, जो
दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था। मनुष्य और आगे बढ़ा। उसने धातु के हथियार
बनाये। जिनके पास लोहे के शस्त्र और अस्त्र थे, वे
विजयी हुए। देवताओं के राजा तक को मनुष्यों के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी
कि मनुष्यों के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे। असुरों के पास अनेक विधाएँ थीं, पर
लोहे के अस्त्र नहीं थे,
शायद घोड़े भी
नहीं थे। आर्यों के पास ये दोनों चीजें थीं। आर्य विजयी हुए। फिर इतिहास अपनी गति
से बढ़ता गया। नाग हारे,
सुपर्ण हारे, यक्ष
हारे, गन्धर्व हारे, असुर हारे, राक्षस
हारे। लोहे के अस्त्रों ने बाजी मार ली। इतिहास आगे बढ़ा। पलीते-वाली बंदूकों ने, कारतूसों
ने, तोपों ने, बमों ने
बमवर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़-भरे घाट तक घसीटा है, यह
सबको मालूम है। नख-धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे हैं। अब भी प्रकृति मनुष्य को उसके
भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है, अब
भी वह याद दिला देती है कि तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख
वर्ष पहले के नख-दन्तावलम्बी जीव हो - पशु के साथ एक ही सतह पर विचरने वाले और
चरने वाले।
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