प्रेम
शिकार से
लौटते हुए मैं बगीचे के मध्य बने रास्ते पर चला जा रहा था, मेरा
कुत्ता मुझसे आगे-आगे दौड़ा जा रहा था। अचानक उसने चौंककर अपने डग छोटे कर दिए और
फिर दबे कदमों से चलने लगा, मानो उसने
शिकार को सूँघ लिया हो। मैंने रास्ते के किनारे ध्यान से देखा। मेरी नजर गौरेया के
उस बच्चे पर पड़ी जिसकी चोंच पीली और सिर रोंएदार था। तेज हवा बगीचे के पेड़ों को
झकझोर रही थी। बच्चा घोंसले से बाहर गिर गया था। और अपने नन्हे अर्द्धविकसित पंखों
को फड़फड़ाते हुए असहाय-सा पड़ा था।
कुत्ता
धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँच गया था। तभी समीप के पेड़ से एक काली छाती वाली बूढ़ी
गौरेया कुत्ते के थूथन के एकदम आगे किसी पत्थर की तरह आ गिरी और दयनीय एवं
हदयस्पर्शी चीं…चीं..चूँ…चूँ…चें…चें… के साथ कुत्ते के चमकते दाँतों वाले खुले
जबड़े की दिशा में फड़फड़ाने लगीं।
वह बच्चे को
बचाने के लिए झपटी थी और अपने फड़फड़ाते पंखों से उसे ढक-सा लिया था। लेकिन उसकी
नन्ही जान मारे डर के काँप रही थी, उसकी आवाज फट
गई और स्वर बैठ गया था। उसने बच्चे की रक्षा के लिए खुद को मौत के मुँह में झोंक
दिया था।
उसे कुत्ता
कितना भयंकर जानवर नजर आया होगा! फिर भी यह गौरेया अपनी ऊँची सुरक्षित डाल पर बैठी
न रह सकी। खुद को बचाए रखने की इच्छा से बड़ी ताकत ने उसे डाल से उतरने पर मजबूर
कर दिया था। मेरा टेजर रुक गया, पीछे हट गया…
जैसे उसने भी इस ताकत को महसूस कर लिया था।
मैंने कुत्ते
को जल्दी से वापस बुलाया और सम्मानपूर्वक पीछे हट गया। नहीं, हँसिए
नहीं। मुझमें उस नन्ही वीरांगना चिड़िया के प्रति, उसके
प्रेम के आवेग के प्रति श्रद्धा ही उत्पन्न हुई।
मैंने सोचा, प्रेम
मृत्यु और मृत्यु के डर से कहीं अधिक शक्तिशाली है। केवल प्रेम पर ही जीवन टिका
हुआ है और आगे बढ़ रहा है।
भिखारी
मैं एक सड़क
के किनारे जा रहा था। एक बूढ़े जर्जर भिखारी ने मुझे रोका। लाल सुर्ख और आँसुओं
में तैरती–सी आँखें,
नीले होंठ,गंदे
और गले हुए चिथड़े सड़ते हुए घाव... ओह,गरीबी ने कितने
भयानक रूप से इस जीव को खा डाला है। उसने अपना सड़ा हुआ, लाल, गंदा
हाथ मेरे सामने फैला दिया और मदद के लिए गिड़गिड़ाया।
मैं एक–एक
करके अपनी जेब टटोलने लगा। न बटुआ मिला, न घड़ी हाथ
लगी, यहाँ तक कि रूमाल भी नदारद था... मैं अपने साथ कुछ भी
नहीं लाया था और भिखारी अब भी इंतजार कर रहा था। उसका फैला हुआ हाथ बुरी तरह काँप
रहा था, हिल रहा था।
घबराकर, लज्जित
हो मैंने वह गंदा,
काँपता हुआ हाथ
उमगकर पकड़ लिया,
‘‘नाराज मत होना, मेरे
दोस्त! मेरे पास भी कुछ नहीं हैं,भाई!’’
भिखारी अपनी
सुर्ख आँखों से एकटक मेरी ओर देखता रह गया। उसके नीले होंठ मुस्करा उठे और बदले
में उसने मेरी ठंडी उँगुलियाँ थाम लीं, ‘‘तो क्या
हुआ, भाई!’’ वह धीरे से बोला, ‘‘इसके
लिए भी शुक्रिया,
यह भी तो मुझे कुछ
मिला, मेरे भाई!’’ और मुझे ज्ञात हुआ कि मैंने भी अपने उस भाई
से कुछ पा लिया था।
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