Wednesday 10 July 2013

पाकिस्तान को साहित्य से आस


साहित्यिक मेला दक्षिण एशिया की गलियों में टहलता हुआ भारत के बाद अब पाकिस्तान की दहलीज पर दस्तक दे रहा है. आयोजकों को उम्मीद है कि पाकिस्तान दुनिया में अपनी छवि बदल पाएगा. लेकिन कैसे? आयोजकों की कोशिश है इन मेलों के जरिए पाकिस्तान की हिंसक छवि को बदलना और दुनिया के सामने इसकी साहित्यिक और सांस्कृतिक छवि को बढावा देना. कराची साहित्यिक मेले की निर्देशिका अमीना सैयद कहती हैं, "हमारी कोशिश रहेगी कि कट्टरवाद के नाम पर जाने जा रहे पाकिस्तान की भाषा, संस्कृति और तहजीब को हम दुनिया के सामने ला सकें. इससे पाकिस्तान की एक अच्छी छवि सामने आएगी." उर्दू कवि शबनम सईद कहती हैं, "सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि देश के नौजवान ही साहित्य पढ़ने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. अगर वे साहित्य पर ध्यान देना शुरू कर दें तो उनमें बहुत बदलाव आ सकता है." पाकिस्तानी लेखक जमील अहमद मानते हैं कि इस तरह के और कार्यक्रमों का आयोजन बहुत जरूरी है. इससे शांति और तरक्की के रास्ते खुलेंगे. यहां बात सिर्फ देश की छवि बदलने की नहीं है, सवाल है सम्मानजनक जीवन जीने का. जरूरत है दुनिया को इस बात का विश्वास दिलाने की कि पाकिस्तानी भी एक सभ्य जीवन जीना जानते हैं और देश बाकी दुनिया की तरह शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है. साहित्य धीरे धीरे पाकिस्तान में पंख पसार रहा है. खुद पाकिस्तान में हम नए लेखकों को उभरता देख रहे हैं जिन्हें दुनिया में पहचाना जा रहा है.
कला और संस्कृति के मामले में पाकिस्तान में कई बढ़िया कलाकार हैं, लेकिन उनके बारे में अकसर अंतरराष्ट्रीय मीडिया बात नहीं करता और दुनिया को उनके बारे में ज्यादा पता नहीं चल पाता है. देश के कई लेखक अंग्रेजी में लिख रहे हैं और कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मान हासिल कर चुके हैं.लाहौर में 2010 से शुरु हुए सालाना पुस्तक मेले में शामिल होने वालों की संख्या हर साल बढ़ रही है."
अमीना सैयद पाकिस्तान में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की अध्यक्ष भी हैं. वह कहती हैं, "पाकिस्तान के युवा लेखकों में जोश है. भारत में जिस तरह युवा लेखकों का मनोबल बढ़ाया जाता है और उनके काम की सराहना होती है, हमें उससे प्रेरणा मिलती है. हमारी कोशिश है कि पाकिस्तान में भी लेखकों को वैसा ही मंच और पाठकों का सहयोग मिले." 2010 से कराची में आयोजित हो रहे साहित्यिक मेले में शामिल होने वालों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ी है. पिछले साल ही इस मेले में 15,000 लोग आए थे. कार्यक्रम से जुड़ने वाले लेखकों और कलाकारों की संख्या भी 36 से बढ़ कर 144 हो गई है. सैयद के अनुसार इन मेलों में कलाकारों को अपनी कला के जरिए अपनी बात रखने का एक बढ़िया मंच मिलता है. उन्होंने माना कि पाकिस्तान के विकास के लिए साहित्य की दिशा में आगे बढ़ना बहुत जरूरी है. रजी अहमद कहते हैं, "हमारी कोशिश है कि इस तरह हम गूढ़ मुद्दों पर सुझाव और जानकारियां मुहैया करा सकें." साहित्यकार जमील अहमद मानते हैं कि लाहौर वह शहर है जिसकी जड़ों में सुनने-सुनाने और सवाल जवाब करने का इतिहास बसा है. इस तरह उस इतिहास को दोबारा जिया जा सकेगा. इन साहित्यिक कार्यक्रमों में शामिल हो रहे साहित्यकरों में पाकिस्तान की कामिला शम्सी, मोहसिन हामिद, मुहम्मद हनीफ और दानियाल मुइनुद्दीन के अलावा ब्रिटिश पाकिस्तानी तारिक अली और ब्रिटेन के मशहूर लेखक विलियम डैलरिम्पल भी होंगे. डैलरिम्पल ने हाल ही में अफगानिस्तान पर एक किताब लिखी है. आईबी/एसएफ (डीपीए)

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