Friday, 28 February 2014

केदारनाथ अग्रवाल

वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन,
गौरव के गोबर -गणेश सा मारे आसन!

नारिकेल-से सिर पर बांधे धर्म -मुरैठा,
ग्राम -बधुटी की गौरी-गोदी पर बैठा!

नागमुखी पैत्रक संपत्ति की थैली खोले,
जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले!

ब्याज-स्तुति से बांट रहा है रूपया-पैसा,
सदियों पहले से होता आया है ऐसा!

सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को,
मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन दीनों को!

इन दीनों के ऋण का रोकड़-कांड बड़ा है,
अब भी किंतु अछूता शोषण-कांड पड़ा है।

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