Friday, 28 February 2014

दुन्या मिखाईल


मैं आसमान की तस्वीर बनाना चाहता हूँ। बनाओ, मेरे बच्चे।
मैनें बना लिया। और तुमने इस तरह रंगों को फैला क्यूं दिया?
क्यूंकि आसमान का कोई छोर ही नहीं है।
मैं पृथ्वी की तस्वीर बनाना चाहता हूँ। बनाओ, मेरे बच्चे।
मैनें बना लिया। -और यह कौन है? वह मेरी दोस्त है।
-और पृथ्वी कहाँ है? उसके हैण्डबैग में।
मैं चंद्रमा की तस्वीर बनाना चाहता हूँ। बनाओ, मेरे बच्चे।
नहीं बना पा रहा हूँ मैं। क्यों? लहरें चूर-चूर कर दे रही हैं इसे बार-बार।
मैं स्वर्ग की तस्वीर बनाना चाहता हूँ। बनाओ, मेरे बच्चे। मैनें बना लिया।
लेकिन इसमें तो कोई रंग ही नहीं दिख रहा मुझे। रंगहीन है यह।
मैं युद्ध की तस्वीर बनाना चाहता हूँ। बनाओ, मेरे बच्चे। मैनें बना लिया।
और यह गोल-गोल क्या है? अंदाजा लगाओ। खून की बूँद? नहीं। कोई गोली? नहीं।
फिर क्या? बटन, जिससे बत्ती बुझाई जाती है।
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