Wednesday, 26 June 2013

विश्व के प्रसिद्ध बीजगणितज्ञ



स्मृति आदित्य

गणित। चाहे वह बीजगणित हो या अंकगणित। कुछ विलक्षण विद्यार्थियों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा हो जिसे इस विषय ने न डराया हो। गणित के जानेमाने प्रोफेसर महेश दुबे की आकर्षक पुस्तक 'विश्व के प्रसिद्ध बीजगणितज्ञ' को पढ़ने के बाद लगा कि जरूरत इस विषय को रोचकता और मधुरता के साथ प्रस्तुत करने की है। गणित से दूरी का एक सबसे अहम कारण इस विषय के बारे में प्रचलित भ्रांतियां हैं। और उससे भी बड़ा कारण इन भ्रांतियों को निरंतर पोषित करने वाले लोग हैं। इस पुस्तक के लेखक हैं प्रो. महेश दुबे।
इस पुस्तक के माध्यम से यह जानना बेहद दिलचस्प रहा कि कैसे महान बीजगणितज्ञ यूक्लिड से लेकर गाल्वा और गाल्वा के उत्तराधिकारी सोफस ली से लेकर सर्वदमन चावला तक ने इस अनूठी और गणितीय गौरवमयी परंपरा को गहनतम साधना के साथ आगे बढ़ाया। और ना सिर्फ बढ़ाया वरन् नई परिपाटी के साथ, नए विचारों और नए सिद्धांतों के साथ विषय को सुसमृद्ध भी किया।
पुस्तक इस मायने में भी रोचक है कि गंभीर और क्लिष्ट समझे जाने वाले विषय सहेजने संवारने वाले 'दिमाग' कितने सरल, कितने विलक्षण थे तथा यह भी कि पाश्चात्य से आयातित ज्ञान वास्तव में भारतीय प्राचीन परंपरा के वैदिक युग की अप्रतिम देन है। आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य, भास्कराचार्य, अल्ख्वाजारिज्मी, थाबित इब्नकुर्रा और खय्याम जैसे नामों ने बीजगणित के समीकरणों, करणियों, कुट्टक आदि को तरशाने में कितने कठिन पड़ाव पार किए हैं।
मात्र एक पंक्ति में कहा जाए तो यह पुस्तक गणित के प्राध्यापक महेश दुबे के 40 वर्षीय गहन अनुभव-अध्ययन-अध्यापन का सार्थक निचोड़ और त्रिवेणी संगम है। विस्तार से कहें तो आर्यभट्ट के काल 499 ई. से लेकर 12वीं-13वीं सदी तक और उससे भी आगे के कालक्रमानुसार परिदृश्य में आए बीजगणितज्ञों के माध्यम से बीजगणित की विकास यात्रा को पेश करती है।
पुस्तक के द्वारा दिलचस्प अंदाज में जाना जा सकता है कि महान गणितज्ञों की अभिरूचियां और सोच किस तरह से असाधारण थी।
पुस्तक में प्रस्तुत 28 महान विभूतियों को पढ़ते हुए उनके जीवन और बीजगणित के लिए उनके समर्पण के रोचक पक्षों को सुंदर-काव्यात्मक रूप में जानना रोमांचित करता है।
बीजगणित जैसा विषय कल्पना से परे है कि कोई हमें उससे जुड़े आश्चर्यजनक प्रामाणिक तथ्य ‍प्रथम बात तो हिन्दी में पुस्तकाकार (180 पृष्ठ में) प्रस्तुत कर दें और उसमें भी तथ्यों को कभी संस्कृत के श्लोकों से, कभी स्वरचित काव्यात्मक पंक्तियों से तो कभी लालित्यपूर्ण सरस शैली में पूरी पठनीयता से एक साथ रख दें। गहनतम शोध और सुविचारित-सुसंगत तथ्यों के आधार पर रची-बुनी यह पुस्तक निश्चित रूप से उपयोगी, अद्‍भुत, ज्ञानवर्धक और संग्रहणीय बन पड़ी है।

No comments:

Post a Comment