Wednesday, 24 July 2013

टापू पर विक्टर ह्यूगो की रचनाओं के उन्नीस साल

फ्रांस का साहित्य संसार

प्रतिभा के धनी विक्टर ह्यूगो ने 16 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय कविता लिखकर ख्याति के अंकुर संजो लिए थे। 25 वर्ष के होते-होते ह्यूगो युवा लेखक के रूप में फ्रांस भर में विख्यात हो गए। उनकी ख्याति उनकी आयु के साथ बढती ही गई और 1885 में जब उनकी मृत्यु हुई तो वे 83 वर्ष के थे; मगर उनकी अर्थी के पीछे इतना जनसमूह था कि फ्रांस में उस शताब्दी में किसी की अर्थी के पीछे इतनी भीड़ न थी। यह था उनकी शताब्दियों तक चलनेवाली ख्याति का एक प्रमाण। विश्व के महान लेखकों में ह्यूगो आज भी जीवित हैं। अटपटी घटनाओं और भावनाओं के 19वीं सदी के लेखकों में उनका तीसरा स्थान है। बाल्टर स्काट लार्ड बायरन की भाँति वे प्रसिद्ध रोमानी लेखक माने जाते हैं। कहानीकार, कवि, नाटककार और उपन्यासकार- वे क्या कुछ नहीं थे !
इस प्रतिभा का जन्म 1802 में फ्रांस में हुआ। 20 वर्ष की आयु में बचपन की प्रेमिका फॉसर से विवाह किया और 1827 में ‘कामवेल’, नाटक पर भारी ख्याति अर्जित की। 1831 में हंचबैक आफर नात्रे दम’ लिखकर उन्होंने विश्व के महान लेखकों में अपना स्थान बना लिया। नेपोलियन तृतीय के तानाशाही व्यवहार के प्रति उग्रता प्रकट करने पर उन्होंने फ्रांस छोड़कर गुर्नसी टापू में 19 वर्ष बिताए और वहीं अपने जीवन की श्रेष्ठ और प्रिय रचनाएँ रचीं। गरीब और शोषितों के समाज के अन्याय के प्रति खाका खींचनेवाला उपन्यास ‘लास मिजरेबुलस’ मानव के निर्दय व्यवहार की कहानी-‘द मैन हू लाफ्स’, तथा समुद्री संघर्ष की वैज्ञानिक कहानी ‘टायलर्स आफ द सी’ उन्होंने इसी निर्वासन में लिखीं। 1870 में नेपोलियन के पतन के साथ ही इनके लाखों अनुयायियों ने इन्हें फ्रांस वापस बुला लिया।

एमिल जोला : एमिल जोला विश्वविख्यात उपन्सासकार और पत्रकार थे। उनकी माँ फ्रांसीसी थीं, किंतु पिता मिश्रित इटालियन और ग्रीक नस्ल के थे। वे सैनिक और इंजिनियर थे। पिता की मृत्यु के उपरांत जोला और उनकी माँ आर्थिक संकट में फँस गए। संबंधियों की सहायता से जोला की शिक्षा दीक्षा संभव हो सकी। जोला ने बाल्यावस्था में ही साहित्य के प्रति अपनी अभिरुचि दिखाई। जब वे स्कूल में छात्र थे, तभी उन्होंने एक नाटक लिखा, जिसका शीर्षक था 'चपरासी को मूर्ख बनाना'। स्कूल छोड़ने के बाद जोला ने क्लार्क का काम शुरू किया। बाद में उन्होंने एक प्रकाशन संस्था में नौकरी की। जोला ने साहित्यिक कार्य भी आरंभ कर दिया था। वे एक पत्र के लिये लेख लिखते थे, दूसरे के लिये कहानियाँ और एक तीसरे के लिये समीक्षा। जोला विशेष रूप उपन्यास लिखने की ओर आकृष्ट हुए। जोला के जीवन का अंतिम महत्वपूर्ण कार्य था एक यहूदी सैनिक अफसर, द्रेफ्‌, की शासक वर्ग के आक्रोश से रक्षा। जोला ने अपने प्रसिद्ध पत्र, 'मेरा अभियोग हैं', में सशक्त स्वर में न्याय का पक्ष उठाया और इस आंदोलन के फलस्वरूप द्रेफ्‌मुक्त हुए। यहूदियों की रक्षा में यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अभियान था। जोला की मृत्यु असमय ही विचित्र प्रकार से हुई। कोयले की गैस से दम घुटने के कारण वे अपने घर पर मृत अवस्था में पाए गए।
जोला की रचनाएँ दो भागों में बाँटी जा सकती हैं। यथार्थवादी रचनाएँ और समाजवाद की प्रेरक रचनाएँ। जिस यथार्थवादी शैली को जोला ने अपनाया, उसे प्रकृतवाद कहा गया है। प्रकृतवाद यथार्थ का निर्मम अनावरण करता है। वह कुछ भी दाब ढककर नहीं रखता। इस प्रकार प्रकृतवाद जीवन के कठोर और क्रूर रूप का निस्संकोच अंकन करता है। जो दृश्य साहित्य और कला में वर्जित और गर्हित समझे जाते थे, उनका भी प्रकृतवाद उद्घाटन करता है। प्रकृतवाद जीवन की कुरूपता और विरूपता से कतराता नहीं। कथासाहित्य में पूरे स्कूल (पंथ या मत) के प्रवर्तक और जनक जोला थे। इनके ही पथचिह्नों पर मोपासाँ, फ्लौवेयर, गौंकू बंधु और दौदे आदि बाद में चले। जोला ने कला को वैज्ञानिक पद्धति प्रदान की। वे नोटबुक और पेंसिल लेकर बाजारों में निकल जाते थे। जो कुछ भी वे देखते थे, उसका पूरा विवरण वे अपनी नोटबुक में लिख लेते थे। कैसे दृश्य, दुकानें, व्यक्ति आदि उन्होंने देखे, सभी का तफसील में वर्णन इनकी नोटबुक में रहता था। बाद में आवश्यकता के अनुसार इस वर्णन को अपनी कथा का अंग बना लेते थे। इस प्रकार जोला की कला हमें जीवन के बहुत समीप ले आती है। इसमें मद्यप, वेश्याएँ, जुआरी आदि अपने वास्तविक रूप में हमें मिलते हैं।
प्रकृतवादी शैली के जनक और आचार्य के रूप में जोला सर्वमान्य हो चुके हैं। अपने उपन्यास, 'ला सुमुआ' में वे एक मद्यप का यथातथ्य वर्णन करते हैं, जिसके कारण एक पूरा परिवार नष्ट भ्रष्ट हो गया। दूसरी कोटि के उपन्यासों में जोला कथनाक और पात्रों को समाजवादी विचारदर्शन की स्थापना के लिये गौण बनाते हैं। इस श्रेणी के उपन्यासों में चार गौस्पैल, 'पीड़ा'  और 'सत्य' का उल्लेख हो सकता है। पहली श्रेणी के उपन्यासों में 'नाना' बहुत लोकप्रिय हुआ है। यह एक अभिनेत्री की जीवनकथा है जिसे कोई अस्पष्ट रेखा ही वेश्या के पेशे से विभाजित करती है। जोला की सर्वश्रेष्ठ रचना 'पराजय' है, जिसमें 1870 के युद्ध में फ्रांस की पराजय का वर्णन है। जोला के उपन्यासों में हमें 19वीं सदी के संपूर्ण फ्रांसीसी जीवन का व्यापक चित्र मिलता है।
ला न फान्ते: जीन डो ला फांतेन फ्रांस के बाल-कथाकार एवं कवि थे। चैटो थिएरी (फ्रांस) में सन् 1621 में जन्मे ला फांतेन ने धर्मशास्त्र तथा कानून की शिक्षा ग्रहण की और कुछ समय बाद वे पेरिस चले गए। वहाँ उन्होंने ग्रामीण काव्यसंवाद, वीरकाव्य, गाथाकाव्य, गीतिकविता आदि लिखना प्रारंभ किया। 1665 में उनकी कहानियाँ प्रकाशित हुई। सन् 1668 से 1694 के बीच उन्होंने पंचतंत्र के ढंग की कल्पित कथाओं की 12 पुस्तकें प्रकाशित कराई। सन् 1695 में उसकी मृत्यु हो गई। अपने प्रकृतिप्रेम, मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि तथा आह्लादकारी हास्य विनोद के कारण उसने इन कल्पित आख्ययिकाओं के रूप रंग में नया विस्तार किया। नैतिक उपदेशक के रूप में वह प्राय: निराशावादी था किंतु मनुष्य की कमजोरियों की जानकारी के बावजूद उसमें कटुता नहीं आ पाई। सुख प्राप्ति के इच्छुक लोगों को उसने एकांतवास तथा प्रकृतिसंपर्क में रहने की सलाह दी है। वह उस समय का महान् कलाकार था जब सौभाग्य से चौदहवें लूई के शासनकाल में फ्रांस में सुख्यात लेखकों की अच्छी जमात विद्यमान थी।
मिलान कुंदेरा : 1 अप्रैल 1929 को चेकोस्लोवाकिया के ब्रनो में जन्मे उपन्यासकार जो देशनिकाला मिलने के बाद 1975 में फ्रांस चले गए तथा 1981 में वहाँ के नागरिक बन गए। उनकी कृतियों में द अनबेयरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग,   द बुक ऑफ लाफ्टर ऐंड फॉरगेटिंग तथा द जोक प्रमुख हैं। कुंदेरा ने चेक तथा फ्रेंच दोनों भाषाओं में लिखा है। उन्होंने स्वयं अपनी सभी पुस्तकों को फ्रेंच में रूपांतरित कर प्रकाशित कराया। इसलिए उनकी फ्रेंच की पुस्तकें भी अनुवाद के बजाय मूल रचना के रूप में ही स्वीकृत हैं। चेकोस्लोवाकिया की कम्युनिस्ट सरकार ने उनकी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया था जो 1989 की बेलवित क्रांती के पश्चात कम्युनिस्ट सरकार के पतन होने तक जारी रहा।

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