अरुंधती रॉय
इस राजनीतिक कार्यकर्ता ने अपने पहले उपन्यास "द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स" के लिए 1997 में बुकर्स पुरस्कार जीता। यह एक गैर प्रवासी भारतीय लेखक की सबसे अधिक बिकने वाली किताब थी। तब से उन्होंने कई किताबें लिखी हैं जिसमें उनके राजनीतिक रुख़ और आलोचना पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। उन्हें बुकर के अलावा अन्य कई पुरस्कार भी मिले हैं जिसमें 2006 में मिला हुआ साहित्य अकादमी पुरस्कार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।अमिताव घोष
उसी वर्ष बंगाली लेखक अमिताव घोष को उनके छटवें उपन्यास "सी ऑफ पोप्पिएस" के लिए सूची में नामांकित किया गया, अर्थात एक ही वर्ष में दो भारतीयों को नामांकित किया गया। यह उनकी आइबिस तिकड़ी पर पहली पुस्तक है जो 1930 में ओपियम युद्ध के पहले स्थापित हुई। उनका नवीनतम उपन्यास "रिवर ऑफ स्मोक" (2011) दूसरा संस्करण है और तीसरा अभी प्रकाशित होना बाकी है। वर्ष 2007 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।इंद्रा सिन्हा
यह ब्रिटिश भारतीय लेखक वर्ष 2007 में भोपाल गैस कांड पर इनके द्वारा लिखे गए उपन्यास - एनीमल्स पीपल के कारण फ़ाइनल सूची में थे। ये लेखक घटना के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जोश के साथ अभियान चला रहे हैं और इस संदर्भ में उन्होंने एक विज्ञापन, भी किया है, कई साक्षात्कार भी दिए हैं और इस संदर्भ में कई लेख भी लिखे हैं। 10 उच्च ब्रिटिश कॉपीराइटरों में हमेशा स्थान प्राप्त करने वाले सिन्हा ने गैर काल्पनिक भी लिखा है और प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया है।वी. एस. नायपॉल
ये प्रसिद्ध उपन्यासकार मुख्य रूप से भारत के नहीं हैं परंतु मूल रूप से वे भारतीय ही हैं और यही उन्हें इस सूची में शामिल होने योग्य बनाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे पहले भारतीय हैं जो नामों की संक्षिप्त सूची में शामिल हुए और 1971 में उन्होंने "इन अ फ्री स्टेट" के लिए बुकर पुरस्कार प्राप्त किया। 1979 में "अ बैंड इन द रिवर" के लिए उन्हें पुन: शॉर्टलिस्ट किया गया। इस उपन्यास को #83 मॉडर्न लाइब्रेरी की 20 वीं शताब्दी के 100 उत्तम उपन्यासों की सूची में शामिल किया गया है।अनीता देसाई- अनीता देसाई को न सिर्फ एक बार बल्कि तीन बार बुकर्स पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। पहली बार 1980 में विभाजन के बाद उनके उपन्यास "क्लीयर लाइट ऑफ डे" के लिए चुना गया। 1984 में "इन कस्टडी" के लिए जिस पर 1993 में एक फिल्म भी बनी थी। तीसरी और अंतिम बार 1999 में उनके द्विसांस्कृतिक उपन्यास "फास्टिंग, फीस्टिंग" के लिए। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त देसाई का अंतिम उपन्यास वर्ष 2011 में "द आर्टिस्ट ऑफ डिसअपीयरेंस" था।
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